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आत्मा पर उद्धरण

आत्मा या आत्मन् भारतीय

दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।

भीतर के साथ बाहर का निश्चित विभाजन अगर बना रहे तो हमारा जीवन सुविहित, सुश्रृंखलित, सुसंपूर्ण हो जाता है, किंतु वही हमारे जीवन में नहीं हो पा रहा है।

रवींद्रनाथ टैगोर

अहं का स्वभाव होता है अपनी ओर खींचना, और आत्मा का स्वभाव होता है बाहर की तरफ़ देना—इसलिए दोनों के जुड़ जाने से एक भयंकर जटिलता की सृष्टि हो जाती है।

रवींद्रनाथ टैगोर

भीतर को बाहर के आक्रमण से बचाओ।

रवींद्रनाथ टैगोर

साहित्य में विषयवस्तु निश्चेष्ट हो जाती है, यदि उसमें प्राण रहे।

रवींद्रनाथ टैगोर

मनुष्य की आत्मा ही राजनीति है, अर्थशास्त्र है, शिक्षा है और विज्ञान है, इसलिए अंतरात्मा को सुसंस्कृत बनाना ही सबसे अधिक आवश्यक है। यदि हम अंतरात्मा को सुशिक्षित बना लें तो राजनीति, अर्थशास्त्र, शिक्षा और विज्ञान के प्रश्न स्वयं ही हल हो जाएँगे।

जूली कागावा

स्वदेशी वह है जो आत्मा को भाता है।

महात्मा गांधी

स्त्री को पाकर, स्त्री को समझकर, उसे अपनी बाँहों और आत्मा में महसूस करके ही प्रकृति की गति और प्रकृति की सुंदरता को और प्रकृति के रहस्य को लिया, भोगा और समझा जा सकता है।

राजकमल चौधरी

जो शोर की जगह संगीत, आनंद की जगह ख़ुशी, आत्मा की जगह सोना, रचनात्मक कार्य की जगह व्यापार, और जुनून की जगह मूर्खता चाहता है, उसे इस साधारण दुनिया में कोई घर नहीं मिलता।

हरमन हेस

मुझे लगता है कि व्यक्ति ईश्वर से आता है और ईश्वर के पास वापस जाता है, क्योंकि शरीर की कल्पना की जाती है और जन्म होता है, यह बढ़ता है और घटता है, यह मर जाता है और ग़ायब हो जाता है; लेकिन जीवात्मा शरीर और आत्मा का मेल है, जिस तरह एक अच्छी तस्वीर में आकार और विचार का अदृश्य संगम होता है।

यून फ़ुस्से

मेरी आत्मा को छोड़कर, हर चीज़, धूल का हर कण, पानी की हर बूँद, भले ही अलग-अलग रूपों में हो, अनंत काल तक अस्तित्व में रहती है?

अमोस ओज़

हम इन मृतात्माओं को अपने दिल में किस तरह रखते हैं। हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर अपना क़ब्रिस्तान रखता है।

गुस्ताव फ़्लॉबेयर

आत्मा के लिए अच्छा अंतःकरण वैसा ही है जैसा शरीर के लिए स्वास्थ्य।

थॉमस एडिसन

ज़रूरी चीज़ यह है कि जब तलवार तुम्हारी आत्मा के टुकड़े करे, मन को शांत बनाए रखा जाए, रक्तस्राव नहीं होने दिया जाए, तलवार की ठंडक को पत्थर की-सी शीतलता से स्वीकार किया जाए। इस तरह के प्रहार से, प्रहार के बाद तुम अक्षर बन जाओगे।

फ्रांत्स काफ़्का

प्रकृति सिर्फ़ वह नहीं जो आँखों को नज़र आती है… आत्मा की अंदरूनी तस्वीर में भी यह मौजूद होती है।

एडवर्ड मुंक

समाज ने स्त्रीमर्यादा का जो मूल्य निश्चित कर दिया है, केवल वही उसकी गुरुता का मापदंड नहीं। स्त्री की आत्मा में उसकी मर्यादा की जो सीमा अंकित रहती है, वह समाज के मूल्य से बहुत अधिक गुरु और निश्चित है, इसी से संसार भर का समर्थन पाकर जीवन का सौदा करने वाली नारी के हृदय में भी सतीत्व जीवित रह सकता है और समाज भर के निषेध से घिर कर धर्म का व्यवसाय करने वाली सती की साँसें भी तिल-तिल करके असती के निर्माण में लगी रह सकती हैं।

महादेवी वर्मा

अपने देश के प्रति मेरा जो प्रेम है, उसके कुछ अंश में मैं अपने जन्म के गाँव को प्यार करता हूँ। और मैं अपने देश को प्यार करता हूँ पृथ्वी— जो सारी की सारी मेरा देश है—के प्रति अपने प्रेम के एक अंश में। और मैं पृथ्वी को प्यार करता हूँ अपने सर्वस्व से, क्योंकि वह मानवता का, ईश्वर का, प्रत्यक्ष आत्मा का निवास-स्थान है।

ख़लील जिब्रान

…आत्मा एक रास्ता खोज सकती है, जो मुझे लगता है कि प्रेम है—स्वयं से स्वयं का पलायन।

सामंथा हार्वे

सबसे महत्त्वपूर्ण बात आत्मा को ऊपर रखना है।

गुस्ताव फ़्लॉबेयर

अशुद्ध आत्मा परमात्मा के दर्शन करने में असमर्थ है।

महात्मा गांधी

जिस तरह लियोनार्डो दा विंसी ने इंसानी शारीरिक रचना विज्ञान का अध्ययन किया और मुर्दा शरीरों को क़रीब से समझा, उसी तरह मैं आत्माओं के मनोभावों को पढ़ने की कोशिश करता हूँ।

एडवर्ड मुंक

आत्मा की हत्या करके अगर स्वर्ग भी मिले, तो वह नरक है।

प्रेमचंद

यहाँ तक कि भेड़िये के दिल में दो, और दो से अधिक आत्माएँ होती हैं।

हरमन हेस
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हमेशा मेरे साथ रहो—चाहे कोई भी रूप धारण करो—मुझे पागल बना दो! मुझे ऐसे अधर में मत छोड़ो जहाँ मैं तुम्हें ढूँढ़ सकूँ! हे ईश्वर! कैसे कहूँ! मैं अपने जीवन के बिना नहीं रह सकती! मैं अपनी आत्मा के बिना नहीं रह सकती!

एमिली ब्रॉण्टे

आत्मा जिस शरीर को आश्रम बनाकर रहती है, उसी शरीर को उसे त्यागना पड़ता है। कारण, आत्मा शरीर से बहुत बड़ी है।

रवींद्रनाथ टैगोर

आपकी आत्मा समस्त संसार है।

हरमन हेस

अगर उसके पास कभी आत्मा जैसी कोई चीज़ होती तो वह उसके टूटने का क्षण होता।

हान कांग

आत्मा के पास शरीर नहीं होता, तब वह हमें कैसे देख सकती है?

हान कांग

हम अन्य राज्यों, अन्य ज़िंदगियों, अन्य आत्माओं की तलाश में सफ़र करते हैं, हम में से कुछ लोग हमेशा भटकते रहते हैं।

अनाइस नीन

प्रेम—सिर्फ़ आत्मा को ‘लाभ’ पहुँचाता है।

एरिक फ़्रॉम

संसार के सर्वसाधारण के साथ साधारण रूप से हमारा मेल है।

रवींद्रनाथ टैगोर

विचारों की आज़ादी आत्मा का जोश है।

वाल्तेयर

अगर आप अपनी फ़ुरसत को खो रहे हैं, तो ख़बरदार! हो सकता है कि आप अपनी आत्मा को खो रहे हों।

वर्जीनिया वुल्फ़

हमारे बीच एक बहुत बड़े विभाजन के लिए स्थान है, वह है अंदर और बाहर का विभाजन।

रवींद्रनाथ टैगोर

जिसका शरीर होता है, वह सर्वव्यापी नहीं हो सकता।

रवींद्रनाथ टैगोर

जब भी हम ऐसा कुछ करते हैं जो हमारी इच्छा या आत्मा से जुड़ा हुआ नहीं होता है— वह कष्ट का कारण बनता है।

अनाइस नीन

हर कोई अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में आत्मा का हत्यारा है।

रमण महर्षि

हम दिव्य आत्मा के प्रवक्ता होंगे।

वर्जीनिया वुल्फ़

दोस्ती आत्मा की बात है। यह एक ऐसी चीज़ है जिसे हम महसूस करते हैं। यह किसी चीज़ के बदले में नहीं है।

ग्राहम ग्रीन

यथार्थ संशय की वेदना भी, आत्मा को सत्य के बीच मुक्ति देने की वेदना है।

रवींद्रनाथ टैगोर

धन के बिना संसार व्यर्थ है परंतु अत्यधिक धन भी व्यर्थ है, जैसे अन्न के बिना तन नहीं रहता, परंतु अत्यधिक भोजन करने से प्राण चले जाते हैं।

दयाराम

आत्मा की शिक्षा एक बिलकुल भिन्न विभाग है।

महात्मा गांधी

अशुद्ध आत्मा परमात्मा के दर्शन करने में असमर्थ है।

महात्मा गांधी

हमारे जीवन की एकमात्र साधना यही है कि हमारी आत्मा का जो स्वभाव है, उसी को हम बाधा मुक्त बना लें।

रवींद्रनाथ टैगोर

आत्मा की शक्ति को पहचानना ही आत्म-ज्ञान है। आत्मा तो बैठे-बैठे दुनिया को हिला सकती है।

महात्मा गांधी

अंतःकरण के विषयों में, बहुमत के नियम का कोई स्थान नहीं है।

महात्मा गांधी

अनुचित इच्छाएँ तो उठती ही रहेंगी। उनका हम ज्यों-ज्यों दमन करेंगे, त्यों-त्यों दृढ़ बनेंगे और हमारा आत्मबल बढ़ेगा।

महात्मा गांधी

हम सब ऋषियों की संतान हैं और इसलिए हमारे मन में अपने पुरोहित या किसी वर्ण विशेष का होने के कारण अभिमान नहीं होना चाहिए।

महात्मा गांधी

आत्मशुद्धि सबसे पहली चीज़ है, वह सेवा की अनिवार्य शर्त है।

महात्मा गांधी

मैंने ऐसे आदमी देखे हैं, जिनमें किसी ने अपनी आत्मा कुत्ते में रख दी है, किसी ने सूअर में। अब तो जानवरों ने भी यह विद्या सीख ली है और कुछ कुत्ते और सूअर अपनी आत्मा किसी आदमी में रख देते हैं।

हरिशंकर परसाई

आनंदमय आत्मा की उपलब्धि विकल्पात्मक विचारों और तर्कों से नहीं हो सकती।

जयशंकर प्रसाद