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आँख पर उद्धरण

आँखें पाँच ज्ञानेंद्रियों

में से एक हैं। दृश्य में संसार व्याप्त है। इस विपुल व्याप्ति में अपने विविध पर्यायों—लोचन, अक्षि, नैन, अम्बक, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि, अक्षि, दीदा, चख और अपने कृत्यों की अदाओं-अदावतों के साथ आँखें हर युग में कवियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। नज़र, निगाह और दृष्टि के अभिप्राय में उनकी व्याप्ति और विराट हो उठती है।

एक निगाह से देखना कलाकार की निगाह से देखना नहीं है।

अज्ञेय

एक निगाह से देखना कलाकार की निगाह से देखना नहीं है।

अज्ञेय

आँख वाले प्रायः इस तरह सोचते हैं कि अंधों की, विशेषतः बहरे-अंधों की दुनिया, उनके सूर्य प्रकाश से चमचमाते और हँसते-खेलते संसार से बिलकुल अलग हैं और उनकी भावनाएँ और संवेदनाएँ भी बिलकुल अलग हैं और उनकी चेतना पर उनकी इस अशक्ति और अभाव का मूलभूत प्रभाव है।

हेलेन केलर

आँख वाले प्रायः इस तरह सोचते हैं कि अंधों की, विशेषतः बहरे-अंधों की दुनिया, उनके सूर्य प्रकाश से चमचमाते और हँसते-खेलते संसार से बिलकुल अलग हैं और उनकी भावनाएँ और संवेदनाएँ भी बिलकुल अलग हैं और उनकी चेतना पर उनकी इस अशक्ति और अभाव का मूलभूत प्रभाव है।

हेलेन केलर

हमारी आँखें हैं, इस कारण अंधों के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य है। हम अपनी आँखें दिन में एक बार, सप्ताह में एक बार या महीने में एक बार कुछ देर के लिए उन्हें उधार दे दें।

लाला हरदयाल

हमारी आँखें हैं, इस कारण अंधों के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य है। हम अपनी आँखें दिन में एक बार, सप्ताह में एक बार या महीने में एक बार कुछ देर के लिए उन्हें उधार दे दें।

लाला हरदयाल

रुचि का चमकता केंद्र वह आँख है, जो आँख के भी भीतर है।

जैक केरुआक

रुचि का चमकता केंद्र वह आँख है, जो आँख के भी भीतर है।

जैक केरुआक

पहली नज़र को प्रेम मानकर समर्पण कर देना भी पागलपन है।

रघुनाथ चौधरी

पहली नज़र को प्रेम मानकर समर्पण कर देना भी पागलपन है।

रघुनाथ चौधरी

पेंटिंग विचार का मौन और दृष्टि का संगीत है।

फ़ेरित ओरहान पामुक

पेंटिंग विचार का मौन और दृष्टि का संगीत है।

फ़ेरित ओरहान पामुक

प्रकृति सिर्फ़ वह नहीं जो आँखों को नज़र आती है… आत्मा की अंदरूनी तस्वीर में भी यह मौजूद होती है।

एडवर्ड मुंक

प्रकृति सिर्फ़ वह नहीं जो आँखों को नज़र आती है… आत्मा की अंदरूनी तस्वीर में भी यह मौजूद होती है।

एडवर्ड मुंक

आँखें एक जैसी होने पर भी देखने-देखने में फ़र्क़ होता है।

रघुवीर चौधरी

आँखें एक जैसी होने पर भी देखने-देखने में फ़र्क़ होता है।

रघुवीर चौधरी

एक ज़िंदगी किनारे की भी होती है, जो बह जाने वाले को भीगी आँखों से देखती है।

रघुवीर चौधरी

एक ज़िंदगी किनारे की भी होती है, जो बह जाने वाले को भीगी आँखों से देखती है।

रघुवीर चौधरी

वे कभी इस बात पर ग़ौर नहीं करेंगे कि ये कलाकृतियाँ मुश्किल घड़ियों और बहुत नाज़ुक पलों में बनाई गईं, कि ये कलाकृतियाँ कोरी आँखों से बिताई गईं रातों का नतीजा हैं, कि इन कलाकृतियों ने मुझसे मेरे ख़ून की क़ीमत वसूली है और मेरी शिराओं को कमज़ोर किया है… हाँ, वे कभी इस बात पर ग़ौर नहीं करेंगे।

एडवर्ड मुंक

वे कभी इस बात पर ग़ौर नहीं करेंगे कि ये कलाकृतियाँ मुश्किल घड़ियों और बहुत नाज़ुक पलों में बनाई गईं, कि ये कलाकृतियाँ कोरी आँखों से बिताई गईं रातों का नतीजा हैं, कि इन कलाकृतियों ने मुझसे मेरे ख़ून की क़ीमत वसूली है और मेरी शिराओं को कमज़ोर किया है… हाँ, वे कभी इस बात पर ग़ौर नहीं करेंगे।

एडवर्ड मुंक

हर निर्णय मुक्ति प्रदान करता है, तब भी जब वह विनाश की ओर ले जाए। अन्यथा, क्यों इतने सारे लोग आँखें खोलकर सीधा चलते हुए अपने दुर्भाग्य में दाख़िल होते?

एलायस कनेटी

हर निर्णय मुक्ति प्रदान करता है, तब भी जब वह विनाश की ओर ले जाए। अन्यथा, क्यों इतने सारे लोग आँखें खोलकर सीधा चलते हुए अपने दुर्भाग्य में दाख़िल होते?

एलायस कनेटी

हे भगवान! दार्शनिक को सभी व्यक्तियों की आँखों के सामने रखी वस्तुओं को देखने की अंतर्दृष्टि प्रदान कर।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

हे भगवान! दार्शनिक को सभी व्यक्तियों की आँखों के सामने रखी वस्तुओं को देखने की अंतर्दृष्टि प्रदान कर।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

वह सोचती है कि काश किसी की आँखें दूसरों को दिखाई नहीं देतीं। काश कोई अपनी आँखों को दुनिया से छिपा पाता।

हान कांग

वह सोचती है कि काश किसी की आँखें दूसरों को दिखाई नहीं देतीं। काश कोई अपनी आँखों को दुनिया से छिपा पाता।

हान कांग

चाँद रात की आँख है।

हान कांग

चाँद रात की आँख है।

हान कांग

एक ज़िंदगी किनारे की भी होती है, जो बह जाने वाले को भीगी आँखों से देखती है।

रघुनाथ चौधरी

एक ज़िंदगी किनारे की भी होती है, जो बह जाने वाले को भीगी आँखों से देखती है।

रघुनाथ चौधरी

जो कुछ भी आता है, वह वापस चला जाता है। निकट के खिसकते ही दूर को आँख में समाया जा सकता है।

रघुवीर चौधरी

जो कुछ भी आता है, वह वापस चला जाता है। निकट के खिसकते ही दूर को आँख में समाया जा सकता है।

रघुवीर चौधरी

वह मेरी आँखों के सामने गिर गया, इतना पास जितना पास यह टेबल है, जो मुझे लगभग छू रहा है।

फ्रांत्स काफ़्का

वह मेरी आँखों के सामने गिर गया, इतना पास जितना पास यह टेबल है, जो मुझे लगभग छू रहा है।

फ्रांत्स काफ़्का

दया से लालिमा आती है, निर्दयता से त्वरित एक ही प्रश्न, एक आँख से अनुसंधान जन्मता है, चयन से कष्टप्रद मवेशी।

गर्ट्रूड स्टाइन

दया से लालिमा आती है, निर्दयता से त्वरित एक ही प्रश्न, एक आँख से अनुसंधान जन्मता है, चयन से कष्टप्रद मवेशी।

गर्ट्रूड स्टाइन

मेरी अपनी आँखें मेरे लिए पर्याप्त नहीं हैं, मैं औरों की आँखों से देखूँगा।

सी. एस. लुईस

मेरी अपनी आँखें मेरे लिए पर्याप्त नहीं हैं, मैं औरों की आँखों से देखूँगा।

सी. एस. लुईस

मन आँख से छोटा होता है।

वालेस स्टीवंस

मन आँख से छोटा होता है।

वालेस स्टीवंस

आँखें बंद करने के बाद कुछ भी नज़र आए ऐसा नहीं।

रघुवीर चौधरी

आँखें बंद करने के बाद कुछ भी नज़र आए ऐसा नहीं।

रघुवीर चौधरी

आप जैसे ही अपनी आँखों से सौंदर्य का आनंद लेते हैं, आपका दिमाग़ आपको बताता है कि सुंदरता खोखली है और सौंदर्य ख़त्म हो जाता है।

वर्जीनिया वुल्फ

आप जैसे ही अपनी आँखों से सौंदर्य का आनंद लेते हैं, आपका दिमाग़ आपको बताता है कि सुंदरता खोखली है और सौंदर्य ख़त्म हो जाता है।

वर्जीनिया वुल्फ

वर्तमान हमें अंधा बनाए रहता है, अतीत बीच-बीच में हमारी आँखें खोलता रहता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

वर्तमान हमें अंधा बनाए रहता है, अतीत बीच-बीच में हमारी आँखें खोलता रहता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

बदसूरती आम हिंदुस्तानी आँख को दिखाई ही नहीं देती।

कृष्ण बलदेव वैद

बदसूरती आम हिंदुस्तानी आँख को दिखाई ही नहीं देती।

कृष्ण बलदेव वैद

और ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, वे उल्लास की अभिलाषा करते हैं और पुण्य समझ कर ही कुछ देते हैं।

वे देते हैं, जिस प्रकार विजय का फूल दशों दिशाओं में अपना सौरभ लुटा देता है।

इन्हीं लोगों के हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है और इन्हीं की आँखों में से वह पृथ्वी पर अपनी मुस्कान छिटकता है।

खलील जिब्रान

और ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, वे उल्लास की अभिलाषा करते हैं और पुण्य समझ कर ही कुछ देते हैं।

वे देते हैं, जिस प्रकार विजय का फूल दशों दिशाओं में अपना सौरभ लुटा देता है।

इन्हीं लोगों के हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है और इन्हीं की आँखों में से वह पृथ्वी पर अपनी मुस्कान छिटकता है।

खलील जिब्रान