वृद्धावस्था पर उद्धरण

वृद्धावस्था जीवन का

उत्तरार्द्ध है। नीति-वचनों में इस अवस्था में माया से मुक्त होकर परलोक की यात्रा की तैयारी करने का संदेश दिया गया है तो आधुनिक समाजशास्त्रीय विमर्शों में वृद्धों के एकाकीपन और उनकी पारिवारिक-सामजिक उपेक्षा जैसे विषयों पर मनन किया गया है। आत्मपरक मनन में वृद्धावस्था जीवन के जय-पराजय की विवेचना की निमित्त रही है। प्रस्तुत चयन में शामिल कविताएँ इन सभी कोणों से इस विषय को अभिव्यक्त करती हैं।

हमेशा पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी से निराश रही है। नई पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी बनकर निराश होती रही है।

त्रिलोचन

परिहास में औरत अजेय होती है, ख़ासकर जब वह बूढ़ी हो।

प्रेमचंद

हर वक़्त रिश्तेदारों और बच्चों के लिए तड़पने वाले बूढ़े सुखी नहीं होते।

कृष्ण बलदेव वैद

वृद्धों और पागलों पर कोई दया नहीं करता।

स्वदेश दीपक

प्रौढ़-वय का शासक अपने को वैसा ही क्रांतिकारी समझता रहता है, जैसा कभी युवावस्था में वह था।

त्रिलोचन

जो आयु को चैलेंज करेगा, आस्कर वाइल्ड की 'पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे' बन जाएगा।

स्वदेश दीपक

कुछ दुख उम्र के साथ समझे जाते हैं।

स्वदेश दीपक
  • संबंधित विषय : दुख

बुढ़ापे में ख़ामोशी किसी-किसी को ही नसीब होती है।

कृष्ण बलदेव वैद

बीमारी और बुढ़ापा—एक भयानक जोड़ा।

कृष्ण बलदेव वैद
  • संबंधित विषय : रोग

बूढ़ों की दुनिया बूढ़ी। वे मरने से पहले सब कुछ करना चाहते हैं और कर अक्सर कुछ कर नहीं पाते।

कृष्ण बलदेव वैद

सच्चे अर्थों में धार्मिक और आध्यात्मिक बूढ़े भी बावक़ार होते हैं।

कृष्ण बलदेव वैद

जो बूढ़े आख़िर तक संसार में ही फँसे रहे उनकी सूरत से कोई किरण नहीं फूटती।

कृष्ण बलदेव वैद

बावक़ार बुढ़ापे के लिए सेहत, माली फ़राग़त, और ख़ामोशी ज़रूरी...और अंदरूनी ताक़त जो पढ़ने, सोचने और ध्यान से ही मिलती है।

कृष्ण बलदेव वैद

जिन बूढ़ों के चेहरों पर चैन का उजाला हो उन्हें देख दुख होता है।

कृष्ण बलदेव वैद

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए