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रामतीर्थ

1873 - 1906

रामतीर्थ की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 32

किसी देश में उस समय तक एकता और प्रेम नहीं हो सकता, जब तक उस देश के निवासी एक-दूसरे के दोषों पर ज़ोर देते रहते हैं।

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यदि तुम यह समझते हो कि ईसा या बुद्ध या कृष्ण या किसी अन्य महात्मा के नाम के कारण तुम्हारा उद्धार हो रहा है, तो स्मरण रखो कि ईसा, बुद्ध, कृष्ण या किसी दूसरे व्यक्ति में यथार्थ गुण निहित नहीं हैं, वास्तविक शक्ति तो तुम्हारी आत्मा में है।

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कार्य के लिए कर्म करो। कर्म अपना पुरस्कार आप ही है।

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माताएँ ही सब संसार को उठा सकती हैं। माताएँ ही देश को उठा या गिरा सकती हैं। माताएँ ही प्रकृति के ज्वार में उतार और प्रवाह ला सकती हैं। महापुरुष सदा ही श्रेष्ठ माताओं के पुत्र हुआ करते हैं।

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सर्वोपरि श्रेष्ठ दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या ज्ञान का दान है।

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