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एक निरी कामकाजी दृष्टि के द्वारा एक कामकाजी व्यक्ति को खेत, कृषि-विज्ञान और नीतिशास्त्र की किताबों के पन्नों की तरह दिखाई देते हैं, खेतों की हरियाली किस तरह से गाँव के कोने तक फैल गई है—उसे भावुक ही देखता है।

अवनीन्द्रनाथ ठाकुर

सिर्फ़ महाकाव्यों में ही लोग एक-दूसरे को मार डालने के पहले गालियों का आदान-प्रदान करते हैं। जंगली आदमी, और किसान, जो काफी कुछ जंगली जैसा ही होता है, तभी बोलते हैं जब उन्हें दुश्मन को चकमा देना होता है।

ओनोरे द बाल्ज़ाक

दरिद्रनारायण के दर्शन करने हों, तो किसानों के झोंपड़ों में जाओ।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

जो किसान मूसलाधार बरसात में काम करता है, कीचड़ में खेती करता है, मरखने बैलों से काम लेता है और सर्दी-गर्मी सहता है, उसे डर किसका?

सरदार वल्लभ भाई पटेल

हिंदुस्तान में किसान राष्ट्र की आत्मा है। उस पर पड़ी निराशा की छाया को हटाया जाए तभी हिंदुस्तान का उद्धार हो सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम यह अनुभव करें कि किसान हमारा है और हम किसान के हैं।

बाल गंगाधर तिलक

संसार कुछ भी करता फिरे, हल पर ही आश्रित है। अतएव कष्टप्रद होने पर भी कृषि कर्म ही श्रेष्ठ है।

तिरुवल्लुवर

मैं किसानों को भिखारी बनते नहीं देखना चाहता। दूसरों की मेहरबानी से जो कुछ मिल जाए, उसे लेकर जीने की इच्छा की अपेक्षा अपने हक़ के लिए मर-मिटना मैं ज़्यादा पसंद करता हूँ।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

किसान के बराबर सर्दी, गर्मी, मेह, और मच्छर-पिस्सू वगैरा का उपद्रव कौन सहन करता है?

सरदार वल्लभ भाई पटेल

जहाँ किसान सुखी नहीं है, वहाँ राज्य भी सुखी नहीं है और साहूकार भी सुखी नहीं है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

कृषकों का जीवन ही जीवन है। अन्य सब दूसरों की वंदना करके भोजन पाकर उनके पीछे चलने वाले ही हैं।

तिरुवल्लुवर

भक्ति कविता का संसार से जो सम्बन्ध है, मुझे एक किसान की टिनेसिटी (तपस्या) मालूम होती हैं कि तकलीफ़ होने के बावजूद खेत से जुड़ा है।

नामवर सिंह

अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा के समान है। खेती उसके ईश्वरीय प्रेम का केंद्र है। उसका सारा जीवन पत्ते-पत्ते में, फूल-फूल में बिखर रहा है।

सरदार पूर्ण सिंह

किसान का प्रकृति के साथ ‘सौन्दर्य प्रेम’ का ही संबंध नहीं है, बल्कि प्रकृति उसके जीवन की सर्वोपरि आवश्यकता है।

विजयदान देथा

हमारे किसानों की निरक्षरता की दुहाई देना एक फ़ैशन-सा हो गया है, लेकिन किसान निरक्षर होकर भी बहुत से साक्षरों से ज्यादा चतुर है। साक्षरता अच्छी चीज़ है और उससे जीवन की कुछ समस्याएँ हल हो जाती हैं, लेकिन यह समझना कि किसान निरा मूर्ख है, उसके साथ अन्याय करना है। वह परोपकारी है, त्यागी है, परिश्रमी है, किफ़ायती है, दूरदर्शी है, हिम्मत का पूरा है, नीयत का साफ़ है, दिल का दयालु है, बात का सच्चा है, धर्मात्मा है, नशा नहीं करता, और क्या चाहिए। कितने साक्षर हैं जिनमें ये गुण पाए जाएँ। हमारा तज़रबा तो ये है कि साक्षर होकर आदमी काइयाँ, बदनीयत, क़ानूनी और आलसी हो जाता है।

प्रेमचंद

इस धरती पर अगर किसी को सीना तानकर चलने का अधिकार हो, तो वह धरती से धन-धान्य पैदा करने वाले किसान को ही है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

किसानों को विडंबनाएँ इसलिए सहन करनी पड़ती हैं कि उनके लिए जीविका के और सभी द्वार बंद हैं।

प्रेमचंद

मूर्ख किसान का भी अच्छे खेत में पड़ा बीज वृद्धि को प्राप्त हो जाता है।।

विशाखदत्त

कृषक सारे संसार के लिए किल्ली के समान है, क्योंकि वह अन्य सभी का भार वहन कर रहा है।

तिरुवल्लुवर

सारी दुनिया किसान के आधार पर टिकी हुई है। दुनिया के आधार किसान और मज़दूर पर है। फिर भी सबसे ये दोनों बेज़ुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। ज़्यादा ज़ुल्म कोई सहता है, तो ये दोनों हो सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेज़ुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

समाजवाद की परिस्थिति में किसानों की निजी मिलकियत की व्यवस्था समाजवादी कृषि की सार्वजनिक मिलकियत में बदल जाती है; सोवियत संघ में ऐसा हो चुका है और बाक़ी सारी दुनिया में भी ऐसा ही होगा।

माओ ज़ेडॉन्ग

रूसी किसान जब अपने सिर को खुजलाता है, तब इसके कई मतलब होते हैं।

निकोलाई गोगोल