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ज्ञान पर उद्धरण

ज्ञान का महत्त्व सभी

युगों और संस्कृतियों में एकसमान रहा है। यहाँ प्रस्तुत है—ज्ञान, बोध, समझ और जानने के विभिन्न पर्यायों को प्रसंग में लातीं कविताओं का एक चयन।

हम विचारों के स्तर पर जिससे घृणा करते हैं, भावनाओं के स्तर पर उसी से प्यार करते हैं।

गोरख पांडेय

हम अपने बारे में इतना कम और इतना अधिक जानते हैं कि प्रेम ही बचता है प्रार्थना की राख में।

नवीन सागर

पढ़ाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है।

जयशंकर प्रसाद

आधुनिक युग हर चिंतनशील प्राणी से एक नई तरह की ज़िम्मेदारी की माँग करता है जिसका बहुत ही महत्त्वपूर्ण संबंध हमारे सोचने के ढंग से है।

कुँवर नारायण

प्रश्न स्वयं कभी किसी के सामने नहीं आते।

जयशंकर प्रसाद

जानने की कोशिश मत करो। कोशिश करोगे तो पागल हो जाओगे।

राजकमल चौधरी

इस सामाजिक व्यवस्था में ही नहीं, एक जीवंत और उल्लसित भावी व्यवस्था में भी ज्ञान का माध्यम सदा कष्ट ही रहेगा।

रघुवीर सहाय

शब्दों की शक्तियों का जितना ही अधिक बोध होगा अर्थबोध उतना ही सुगम्य होगा। इसके लिए पुरातन साहित्य का अनुशीलन तो करना ही चाहिए, समाज का व्यापक अनुभव भी प्राप्त करना चाहिए।

त्रिलोचन

अपने अनुभव से हासिल किया ज्ञान है कि डाॅक्टर और माशूक़ कभी नहीं बदलने चाहिए। आप फ़ालतू सवालों से बच जाते हैं।

स्वदेश दीपक

मेघ-संकुल आकाश की तरह जिसका भविष्य घिरा हो, उसकी बुद्धि को तो बिजली के समान चमकना ही चाहिए।

जयशंकर प्रसाद

हमारा मन जिस प्रकार विचारों के सहारे आगे बढ़ता है, उसी प्रकार मानव-चेतना प्रतीकों के सहारे विकसित होती है।

सुमित्रानंदन पंत

सारे तत्त्व एक दूसरे को प्रति-प्रयुक्त भी करते हैं।

श्रीनरेश मेहता

यदि मन में शिथिलता, श्रांति या शून्यता हो तो काव्यानुशीलन करना चाहिए।

त्रिलोचन

विवेक के कारण अनात्म होते ही आप ‘पुरुष’ हो जाते हैं और तब ‘इच्छा’ आपकी इच्छा पर निर्भर होने लगती है।

श्रीनरेश मेहता

पाठक की ग्राहक कल्पना का विकास प्रत्यभिज्ञा के आश्रय से होता है। जिसकी निरीक्षण शक्ति जितनी विकसित होगी उसकी भावना का भी परिपाक तदनुकूल ही होगा।

त्रिलोचन

कवि में जिस प्रकार विधायक कल्पना की आवश्यकता है, उसी प्रकार पाठक में ग्राहक कल्पना की आवश्यकता होती है।

त्रिलोचन
  • संबंधित विषय : कवि

किसी भी काव्य का अध्ययन करने से पहले आत्म-परीक्षा कर लेनी चाहिए।

त्रिलोचन
इसी1 के द्वारा सत्ता का आभास मिल सकता है। यही अभेद ज्ञान और धर्म दोनों का लक्ष्य है। विज्ञान इसी अभेद की खोज में है, धर्म इसी की ओर दिखा रहा है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल

ज्ञान अपनी संपूर्णता में प्रकृतिगत छल है—संबल है, हम सबका एक मात्र अज्ञान।

राजकमल चौधरी

चिंता और उद्विग्नता भी काव्य-सौंदर्य को परिच्छिन्न करती है।

त्रिलोचन

कभी-कभी विचार-विशेष से आग्रह से भी काव्य समझने में बाधा खड़ी होती है।

त्रिलोचन

ज्ञान, इच्छा और क्रिया जैसे और लोगों में है; वैसे ही रचनाकार और आलोचक में भी।

त्रिलोचन

पूर्व-धारणाओं से काव्यार्थ-बोध में प्रायः बाधा उपस्थित होती है।

त्रिलोचन

जो बिना सिद्धांत के अभ्यास करना पसंद करता है, वह उस नाविक की तरह है जो बिना पतवार और दिशा-निर्देश के जहाज़ पर चढ़ता है और कभी नहीं जानता कि वह कहाँ ले जाया जा सकता है।"

लियोनार्डो दा विंची

जिन विषयों के गंभीर अध्ययन से मनुष्य का मस्तिष्क परिष्कृत और ह्रदय सुसंस्कृत होता है, उसमें श्रम लगता है और उसके लिए बाज़ार आसानी से नहीं मिलता।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

हमारा सारा ज्ञान हमें केवल एक अधिक कष्टदायक मृत्यु की ओर ले जाता है, जो उन जानवरों की तुलना में कहीं अधिक पीड़ादायक है जो कुछ भी नहीं जानते।

मौरिस मैटरलिंक

समबोध ज्ञान या अनुभव की उस अवस्था में पुष्ट होता है जो प्रत्येक मन में कल्पना, सूझ या निश्चय के रूप में उदित होता है।

त्रिलोचन

ज्ञान अनुभव की बेटी है।

लियोनार्डो दा विंची

जीवन का ज्ञान ग़ैर-आवश्यक वस्तुओं के उन्मूलन में निहित है।

लियोनार्डो दा विंची

सीखना मन को कभी नहीं थकाता।

लियोनार्डो दा विंची

उपनिषदों के उद्धरण भी जब हम अँग्रेज़ी में उद्धृत करते हैं, तो अपने ज्ञान का दिवाला प्रकट करते हैं।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

काम-वासना के समान कोई दूसरा रोग नहीं। मोह के समान कोई दूसरा शत्रू नहीं। क्रोध के समान कोई आग नहीं। ज्ञान से बड़ा कोई सुख नहीं।

चाणक्य

क्रम से जल की एक-एक बूँद गिरने पर कलश भर जाता है, यही रहस्य सभी विद्याओं, धर्म और धन के संबंध में है।

चाणक्य

अच्छे लोगों की स्वाभाविक इच्छा ज्ञान है।

लियोनार्डो दा विंची

जैविकता और ज्ञान के काल का प्रतिमान ईसा या बाइबिल में वर्णित समय को मानना निरी हास्यास्पदता है।

श्रीनरेश मेहता

अज्ञान अंधकार-स्वरूप है। दिया बुझाकर भागने वाला यही समझता है कि दूसरे उसे देख नहीं सकते, तो उसे यह भी समझ रखनी चाहिए कि वह ठोकर खाकर गिर भी सकता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

समवर्ती अनुभव अपनी अनंतता और व्यापकता में बाह्यतः लक्षणीय नहीं प्रतीत होते।

त्रिलोचन

सापेक्ष तो पदार्थ या स्वरूप होता है।

श्रीनरेश मेहता

किसी भी ज्ञान की प्राप्ति बुद्धि के लिए हमेशा उपयोगी होती है, क्योंकि यह बेकार चीज़ों को बाहर निकाल सकता है और अच्छे को बनाए रख सकता है।

लियोनार्डो दा विंची

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