बुद्ध पर उद्धरण
धर्म-जगत में बुद्ध का
आविर्भाव एक क्रांति की तरह हुआ था। ओशो ने बुद्ध को धर्म का पहला वैज्ञानिक कहा है। भारतीय धर्म और जीवन-दर्शन पर उनका समग्र प्रभाव आज भी बना हुआ है। इस चयन में बुद्ध और बुद्धत्व को केंद्र बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।
ईसा और बुद्ध के काम के तल को मैं कहीं गहरा मानता हूँ। इतिहास पर इसलिए उसका परिणाम भी गंभीर है। मार्क्स और लेनिन के काम और विचार का स्तर सामाजिक था और उसका तल उपयोगिता का है। मानव-जीवन के परिपूर्ण संस्कार का प्रश्न उसमें नहीं समा जाता है। समाज क्रांति के अभी ही नए-नए सूत्र निकलने लगे हैं और उनकी अपेक्षा में मार्क्सवाद पुराना पड़ता लगता है।
इतिहास का वह भी अंश जो चेतना-सम्पन्न होता है, आगे चलकर मिथकीय आकृति ले लेता है जैसे गौतम बुद्ध या शिवाजी अथवा अपने युग में लेनिन और गाँधी।
यदि तुम यह समझते हो कि ईसा या बुद्ध या कृष्ण या किसी अन्य महात्मा के नाम के कारण तुम्हारा उद्धार हो रहा है, तो स्मरण रखो कि ईसा, बुद्ध, कृष्ण या किसी दूसरे व्यक्ति में यथार्थ गुण निहित नहीं हैं, वास्तविक शक्ति तो तुम्हारी आत्मा में है।
बुद्धदेव ने अपने शिष्यों को उपदेश देते समय एक बार कहा था कि मनुष्य के मन में कामना अत्यंत प्रबल है, लेकिन सौभाग्यवश उससे भी अधिक प्रबल एक वस्तु हमारे पास है। यदि सत्य की पिपासा हमारी प्रवृत्तियों से अधिक प्रबल न होती तो हममें से कोई धर्म के मार्ग पर न चल सकता।
गांधी, बुद्ध, अशोक नाम हैं बड़े दिव्य सपनों के, भारत स्वयं मनुष्य जाति की बहुत बड़ी कविता है।
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बुद्धत्व का आगमन किसी नेता या गुरु द्वारा नहीं होता, आपके भीतर जो कुछ है उसकी समझ द्वारा ही इसका आगमन होता है।
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सबसे बड़ा दान श्रद्धा-दान होता है, और इस दान से बुद्धदेव ने किसी मनुष्य को वंचित नहीं रखा।
बुद्धत्व का आगमन दूसरे द्वारा नहीं होता, इसका आगमन स्वयं आपके अवलोकन एवं स्वयं की समझ से ही होता है।
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बौद्ध धर्म हिंदू धर्म की शाखा है।
मैंने तो दुनिया में बौद्धों से कहा है कि आपको अगर बौद्ध धर्म जानना है तो आप उसके जन्मस्थान भारत में ही उसे पाएँगे। जहाँ पर वेद-धर्म से वह निकला है, वहीं आपको उसे खोजना है और शंकराचार्य जैसे अद्वितीय विद्वान् जो प्रच्छन्न बुद्ध कहलाए, उनके ग्रंथों को भी आप समझेंगे तब बौद्ध धर्म का गूढ़ रहस्य आप जान पाएँगे।
जो व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार और प्रतिपादन दोनों करता है, वह तीर्थंकर होता है। बुद्ध भी तीर्थंकर थे। शंकराचार्य ने कपिल और कणाद को भी तीर्थंकर कहा है।
बुद्ध ने कहा था कि "संतप्त थककर बैठ हुए का योजन लंबा होता है और जागने वाले की रात लंबी होती है।"
मनुष्य का यह महाभाग्य था कि भगवान बुद्ध में मनुष्य का सत्य स्वरूप देदीप्यमान हुआ। उन्होंने मानव-मात्र को अपने विराट हृदय में ग्रहण किया और मानवता को प्रकाशित किया।
पीड़ा मेरे लिए सबसे बड़ा और ज़रुरी शब्द है। आधुनिक भौतिकीशास्त्र और बुद्ध के विचारों में मैं कई तरह के जुड़ाव देखता हूँ। शायद बुद्ध ने पीड़ा को सामान्य लोगों की तरह ना देखा हो लेकिन पीड़ा का उनके लिए कोई दूसरा अर्थ भी रहा हो।
पिछले पाँच सालों में ये साफ हुआ है कि प्रकृति के विभिन्न तत्वों के बीच में कई संबंध हैं। इन सभी चीजों को पढ़ने और सुनने के बाद मैंने बुद्ध के बारे में सोचना शुरू किया। लगा कि मुझे ये भी जानने की कोशिश करनी होगी कि उन्होंने अपनी मागधी भाषा में क्या कहा है।
'ललित विस्तर' ग्रंथ में चित्रकला का जो सब विवरण दिया गया है, उसमें ‘रूपम’ और ‘रूपकर्म’ इन दोनों विषयों का विवेचन किया गया है।
बुद्ध ने कहा है कि हमारे समझने के लिए कुछ भी नहीं है। इस तरह से कुछ मूलभूत चीज़ें कभी नहीं बदलती। मैं यहाँ पर मृत्यु के बारे में बात नहीं कर रहा, बल्कि मृत्यु के डर के बारे में बात कर रहा हूँ।
बुद्ध के हीरक सूत्र का भाष्य बताता है कि निर्वाण के पात्र में जगहित की ख़ातिर लौटने की इच्छा होना स्वाभाविक है।