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शिव पर उद्धरण

शिव का अर्थ है मंगलदाता।

यह भगवान शंकर का एक नाम है जिन्हें शंभू, भोलेनाथ, त्रिलोचन, महादेव, नीलकंठ, पशुपति, आदियोगी, रुद्र आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। इस चयन में शिव की स्तुति और शिव के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं का संकलन किया गया है।

करोड़ों हिंदुस्तानियों ने, युग-युगांतर के अंतर में, हज़ारों बरस में राम, कृष्ण और शिव को बनाया। उनमें अपनी हँसी और सपने के रंग भरे और तब राम और कृष्ण और शिव जैसी चीज़ें सामने हैं।

राममनोहर लोहिया

मैं जन्म लेता हूँ, बड़ा होता हूँ, नष्ट होता हूँ। प्रकृति से उत्पन्न सभी धर्म देह के कहे जाते हैं। कर्तृत्व आदि अहंकार के होते हैं। चिन्मय आत्मा के नहीं। मैं स्वयं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

मेरे लिए मृत्यु है, भय, जाति-भेद, पिता माता, जन्म, बंधु, मित्र और गुरु। मैं चिदानंद रूप हूँ। मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

मैं निर्विकल्प (परिवर्तन रहित) निराकार, विभुत्व के कारण सर्वव्यापी, सब इंद्रियों के स्पर्श से परे हूँ। मैं मुक्ति हूँ मेय (मापने में आने वाले)। मैं विदानंद रूप हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

मैं सत् हूँ, असत् हूँ और उभयरूप हूँ। मैं तो केवल शिव हूँ। मेरे लिए संध्या है, रात्रि है, और दिन है, क्योंकि मैं नित्य साक्षीस्वरूप हूँ।

आदि शंकराचार्य

शांत, अनंत, अद्वितीय, अजन्मा, ज्योति को उस-उस गुण के प्रकाश से ब्रह्मा, विष्णु, शिव ऐसे अनेक प्रकार से कहा जाता है। भिन्न-भिन्न तथा अनेक पथों में गतिशील शास्त्रों के द्वारा वही एक ईश्वर कहा जाता है जैसे भिन्न-भिन्न तथा अनेक पथों में गतिशील जल-प्रवाह समुद्र में ही गिरते हैं।

कृष्ण बिहारी मिश्र

उसका जो भी कुछ नाम हो, शिव हो, केशव हो, जिन हो अथवा कमलजनाथ हो—मुझ अबला को भव-रोग से मुक्त कर दे।

लल्लेश्वरी

मुझ से कोई छोटा नहीं है, शिवभक्त से कोई बड़ा नहीं है।

बसवेश्वर

हे योगी! जिस-जिस शिव को देखने के लिए तू तीर्थ से तीर्थ घूमता-फिरता है, वह शिव तो तेरे साथ-साथ घूमता फिरा तो भी तू उसे पा सका।

मुनि रामसिंह