शब्द पर उद्धरण
वर्णों के मेल से बने
सार्थक वर्णसमुदाय को शब्द कहा जाता है। इनकी रचना ध्वनि और अर्थ के मेल से होती है। शब्द को ब्रहम भी कहा गया है। इस चयन में ‘शब्द’ शब्द पर बल रखती कविताओं का संकलन किया गया है।

सपने कैसे मरते हैं, इस सच्चाई का पता लगाने के लिए, आपको सपने देखने वालों के शब्दों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

शब्दों, लेखन और पुस्तकों के बिना न कोई इतिहास होगा और न ही मानवता की कोई अवधारणा होगी।

शब्दों के ब्रह्मांड में सोलह-सोलह सूर्य प्रज्वलित रहे हैं। वहाँ कुछ भी बाधित नहीं है, सब कुछ पूर्ण है, प्रचुर है।

दाईं ओर के दरवाज़े से एक पुरुष एक घर में दाख़िल होता है, जहाँ पर एक फ़ैमिली काउंसिल की मीटिंग चल रही है, वह आख़िरी वक्ता के आख़िरी शब्द सुनता है, उसे अपनी स्मृति में रखता है और बाईं ओर के दरवाज़े से निकलकर विश्व को उनका निर्णय सुना देता है। शब्द-निर्णय सच है, लेकिन अपने आपमें शून्य भी। अगर वे आख़िरी सत्य की मदद से कोई निर्णय लेना चाहते तो उन्हें उस कमरे में हमेशा के लिए रहना पड़ता, उस फ़ैमिली काउंसिल का हिस्सा होना पड़ता और अंततः वे कोई निर्णय ले पाने में अक्षम हो जाते। सिर्फ़ एक पक्ष ही निर्णय दे सकता है, लेकिन एक पक्ष के रूप में वह निर्णय नहीं दे सकता। जिसका तात्पर्य यह है कि इस विश्व में न्याय की कोई संभावना नहीं है, सिर्फ़ यत्र-तत्र उसकी चमक है।

मेरे शब्दों और रंगों की पसंद से यह जानने का प्रयास कीजिए कि मैं कौन हूँ, क्योंकि आपके जैसे चौकस लोग चोर को पकड़ने के लिए पैरों के निशान की जाँच कर सकते हैं।
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शब्द कैसे कार्य करते हैं, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हमें उनके प्रयोग का ‘निरीक्षण’ करना और उससे सीखना पड़ता है।

धर्म स्त्री पर टिका है, सभ्यता स्त्री पर निर्भर है और फ़ैशन की जड़ भी वही है। बात क्यों बढ़ाओ, एक शब्द में कहो—दुनिया स्त्री पर टिकी है।

मैंने एक दिन बाज़ार में एक कुम्हार को देखा जो मिट्टी के टुकड़े को अपने पैरों से रौंद रहा था। वह मिट्टी अपनी जिह्वा से उससे यह शब्द कह रही थी—कभी मैं भी तेरी तरह मनुष्य के रूप में थी और मुझमें भी ये सब बातें वर्तमान थीं।

अर्थ का अनुवाद किया जा सकता है। शब्द का अनुवाद नहीं किया जा सकता है… संक्षेप में—शब्द का अनुवाद कर सकते हैं, उसकी ध्वनि का नहीं।

साधारण चुनाव महत्वपूर्ण होते हैं और सीधे-सादे शब्द निर्णयकारी।

जब रुको तो शब्दों के बारे में मत सोचो, बल्कि उस दृश्य को और बेहतर करके देखो।

जिन शब्दों से मैं अपनी स्मृति को अभिव्यक्त करता हूँ, वे मेरी स्मृति-प्रतिक्रियाएँ हैं।


एक शब्द लिखने के बाद अगले शब्द पर जाने के लिए जगह पार करनी होती है।

शब्द तो साक्षात् कर्म ही हैं।

बुक-मूवी—शब्दों में दिखती फ़िल्म है, दृश्य शैली का अमेरिकी रूप।

शब्द। शब्द। मैं शब्दों के साथ इस उम्मीद में खेलती हूँ कि शायद कोई संयोजन, यहाँ तक कि अवसरवश संयोजन भी वह बात कह सके जो मैं कहना चाहती हूँ।

लिखते हुए साधारण शब्दों का चयन करें : असंबद्ध लेखन और वाक्-पटुता से बचें—फिर भी, यह सच है, कविता आनंददायक है; सबसे अच्छा गद्य वह है जिसमें भरपूर काव्य विद्यमान है।

बहस के धरातल पर नया शब्द विवेचन की भूमि में डाले गए नए बीज बोने जैसा है। किसी बात के अभिप्राय को स्पष्ट करने की लालसा अति तीव्र होती है।

जब शब्दों में कोई अर्थ नहीं होता, तब मुझे तेज़ी से चक्कर आने लगते हैं।

बात करो, बात करो, बात करो : शब्दों की निरी शोकाकुल करने वाली मूर्खता।

भीतर की नज़रों के अर्थपूर्ण सार को शब्दों के सागर में तैरते हुए तैयार करो।

शब्द मेरे साथ भाग गए।

आस्थावान होने का मतलब अपने भीतर के अक्षय तत्व को स्वतंत्र करना है, और स्पष्ट शब्दों में कहें तो ख़ुद को स्वतंत्र करना है या और स्पष्ट कहें तो ख़ुद अक्षय होना है या और और स्पष्ट शब्दों में कहें तो ‘होना’ है।

रिल्के के शब्दों में—हम जिसे सौंदर्य कहते हैं, वह आतंक का पहला संकेत है।

स्त्री के दुःख इतने गंभीर होते हैं कि उसके शब्द उसका दशमांश भी नहीं कह सकते।

जब अंत आता है तब दृश्यों की स्मृति नहीं बचती, सिर्फ़ शब्द बचते हैं।

एक कविता तब महानता अर्जित करती है : जब हमें उसमें हमारी इच्छाओं, चाहतों को शब्द मिल रहे होते हैं; न कि जब वह किसी घटना का दृष्टांत कर रही हो।

शब्दों का कोई भी क्रम एक आनंद के बजाय क्या हो।

मैं जिन शब्दों को बोलते हुए उठा वे मुझे समझ नहीं आए। वे शब्द कविता थे।

एक शब्द के बाद दूसरा शब्द और फिर एक और शब्द—ये मिलकर ताक़त बन जाते हैं।

शब्द संकेत चिह्न हैं जो साझा स्मृतियों को बयान करते हैं।

जो चूहे के शब्द से भी शंकित होते हैं, जो अपनी साँस से चौंक उठते हैं, उनके लिए उन्नति का कंटकित मार्ग नहीं है। महत्त्वाकांक्षा का दुर्गम स्वर्ग उनके लिए स्वप्न है।

जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।

अभिव्यक्ति के सारे माध्यम जहाँ निरस्त या समाप्त हो जाते हैं, शब्द वहाँ भी जीवित रहता है।


वह शब्द नहीं, वह अर्थ नहीं, वह न्याय नहीं, वह कला नहीं, जो काव्य का अंग न बनती हो। कवि का दायित्व कितना बड़ा है!

हमें जिस पाप ने घेर रखा है, वह हमारा मतभेद नहीं बल्कि हमारा ओछापन है। हम शब्दों पर झगड़ा करते हैं। कई बार तो हम परछाई के लिए लड़ते हैं और मूल वस्तु को खो बैठते हैं।

उर्दू में जो संस्कृत शब्दों से परहेज है, उसे कम होना है भारत की भाषाओं के लिए अरबी फ़ारसी का वही महत्त्व नहीं है जो संस्कृत का है। व्याकरण और मूल शब्द भंडार की दृष्टि से उर्दू संस्कृत परिवार की भाषा है, न कि अरबी परिवार की। इसलिए अरबी से पारिभाषिक शब्द लेने की नीति ग़लत है; केवल अरबी से शब्द लेने और संस्कृत शब्दों को मतरूक समझने की नीति और भी ग़लत है। भारत की सभी भाषाएँ प्रायः संस्कृत के आधार पर पारिभाषिक शब्दावली बनाती है। उर्दू इन सब भाषाओं से न्यारी रहकर अपनी उन्नति नहीं कर सकती

प्रतिक्षण अनुभव लेता हूँ कि मौन सर्वोत्तम भाषण है। अगर बोलना ही चाहिए तो कम से कम बोलो। एक शब्द से चले तो दो नहीं।

आपको अपने सिवा किसी पर भी विश्वास नहीं करना है। आपको भीतर की आवाज़ सुनने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन यदि आप उसके लिए भीतर की आवाज़ शब्द प्रयुक्त न करना चाहें तो आप 'विवेक का आदेश' शब्द प्रयुक्त कर सकते हैं। और यदि आप ईश्वर को प्रदर्शित नहीं करते हैं तो मुझे इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है कि आप किसी और चीज़ को प्रदर्शित करेंगे जो अंत में ईश्वर सिद्ध होगी, क्योंकि सौभाग्य से इस संसार में ईश्वर के सिवा कुछ और है ही नहीं।

मैं एक शब्द कहने के लिए आया था और वह शब्द मैं अब कहता हूँ। परंतु यदि मृत्यु ने उसके कहे जाने में बाधा डाल दी, तो आने वाला कल उसे कहेगा, क्योंकि आने वाला कल अनंत की पुस्तक में कोई रहस्य नहीं रहने देता।

दोषों से रहित, गुण-युक्त और कहीं-कहीं अलंकार-रहित शब्द और अर्थ काव्य है।

समय और शब्दों को वापस नहीं लाया जा सकता।

शिल्पी और कारीगर निर्माण कला के शब्द और व्याकरण हैं।

आपसी व्यवहार में जैसे मौन भी बोलता है, वैसे ही भाषा में शब्द का अभाव भी बोलता है। दो या तीन नुक़्ते डालकर जाने हम कितना नहीं कह जाते।

कृतज्ञता शब्दों में आकर शिष्टता का रूप धारण कर लेती है। उसका मौलिक रूप वही है जो आँखों से बाहर निकलते हुए काँपता और लजाता है।

स्वदेशाभिमान की एक शाखा यह भी है कि हम अपनी भाषा का मान रखें, उसे ठीक तरह से बोलना सीखें और उसमें विदेशी भाषा के शब्दों का उपयोग यथासंभव कम करें।

इस ज़िंदगी को एकदम उतार कर फेंक दें, इसका साहस नहीं, और नई ज़िंदगी बुन सकें, इसके लिए न संकल्प है न यत्न। केवल शब्द हैं, रो लें या हँस लें या कह कर चुप हो जाएँ।

क्रोध का एक हल्का रूप है चिड़चिड़ाहट, जिसकी व्यंजना प्रायः शब्दों ही तक रहती है।
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