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सुख पर कविताएँ

आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,

शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

सौंदर्य

निरंजन श्रोत्रिय

उसी शहर में

ध्रुव शुक्ल

लगभग सुखमय!

सुशोभित

ख़ुशी

मलयज

अट नहीं रही है

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

मनवांछित

जितेंद्र कुमार

मेघ आए

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

सुख है

अविनाश मिश्र

यही मेरा सुख

नवीन सागर

हँसी-ख़ुशी

शैलेंद्र साहू

संतोषम परम सुखम

कुमार मुकुल

वैसे

शांता शेलके

क्या तुम सुखी हो

हीरेन भट्टाचार्य

सुख

महिमा कुशवाहा

ख़ुशी

मिर्दज़ा केम्पे

शहर का नाम

कुमार विकल

आस-उपवास

विशाखा मुलमुले

मैंने तो देखा है अपना पंथ

कृष्ण मुरारी पहारिया

दुःख

पंकज विश्वजीत

विस्तार

आलोक कुमार मिश्रा

समाधान

अंकुश कुमार

सुख-दुख

दक्षा व्यास

कौन-सा सुख

राजीव सभरवाल

जानोगे

राकेश मिश्र

अन्नप्राशन

सौम्य मालवीय

प्रतिदान

मीनाक्षी जिजीविषा

सुख तो

हर्षदेव माधव

बुद्धत्त्व

रामनिवास जाजू

प्रवेश

मनोज शर्मा

ख़ुशी

राम प्रवेश रजक

ओट

मनोज छाबड़ा

संघर्ष

तजेंद्र सिंह लूथरा

सुख

पूनम अरोड़ा

घर से बनारस

प्रकाश मनु

क्रियापद

प्रखर शर्मा

सुख-दुख

कौशल किशोर

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