सुख पर उद्धरण
आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,
शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

घर आए अतिथि को प्रसन्न दृष्टि से देखे। मन से उसकी सेवा करे। मीठी और सत्य वाणी बोले। जब तक वह रहे उसकी सेवा में लगा रहे और जब वह जाने लगे तो उसके पीछे कुछ तक जाए- यह सब गृहस्थ का पाँच प्रकार की दक्षिणा से युक्त यज्ञ है।

कोई कुछ भी कहे, जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ ख़ुश रहना है।

जो लोग ख़ुशी की तलाश में घूमते हैं, वे अगर एक क्षण रुकें और सोचें तो वे यह समझ जाएँगे कि सचमुच ख़ुशियों की संख्या, पाँव के नीचे के दूर्वादलों की तरह अनगिनत है; या कहिए कि सुबह के फूलों पर पड़ी हुई शुभ्र चमकदार ओस की बूँदों की तरह अनंत है।

हम प्राचीन देशवासियों के पास अपना अतीत है—हम अतीत के प्रति आसक्त रहते हैं। उन, अमेरिकियों का एक सपना है: वे भविष्य के वादे के बारे में उदासी महसूस करते हैं।

ख़ुशी का अनुभव करते हुए हमें उसके प्रति चेतन होने में कठिनाई होती है। जब ख़ुशी गुज़र जाती है और हम पीछे मुड़कर उसे देखते और अचानक से महसूस करते हैं—कभी-कभार आश्चर्य के साथ—कितने ख़ुश थे हम।

किसी के शब्दों की लय में झूलना एक सुखद, लेकिन अचेतन निर्भरता हो सकती है।

मुँह टेढ़ा करके देखने मात्र से अतिथि का आनंद उड़ जाता है।

मुझसे सीखें, यदि मेरे उपदेशों से नहीं, तो मेरे उदाहरण से सीखें कि ज्ञान की खोज कितनी ख़तरनाक है और वह व्यक्ति जो अपने मूल शहर को ही दुनिया मानता है, वह उस व्यक्ति की तुलना में कितना ख़ुश है जो अपनी शक्ति से बड़ा होने की आकांक्षा रखता है।

जाओ, उड़ो, तैरो, कूदो, उतरो, पार करो, अज्ञात से प्रेम करो, अनिश्चित से प्रेम करो, जिसे अब तक नहीं देखा है—उससे प्रेम करो… किसी से भी प्रेम मत करो—तुम जिसके हो, तुम जिसके होगे—अपने आपको खुला छोड़ दो, पुराने झूठ को हटा दो, जो नहीं किया उसे करने की हिम्मत करो, वही करने में तुम्हें ख़ुशी मिलेगी… और प्रसन्न रहो, डर लगने पर वहाँ जाओ जहाँ जाने से डरते हो, आगे बढ़ो, ग़ोता लगाओ, तुम सही मार्ग पर हो।

केवल एक चीज़ ने उसे ख़ुश किया और अब जब वह चीज़ चली गई तो हर चीज़ ने उसे ख़ुश कर दिया।

नारी पुरुष से पूजा नहीं चाहती। वह जीवन में सहयोग चाहती है दुःख और सुख के साथ। तन और मन का विलीनीकरण। दो जीवनों का एक होना।

यदि समग्र भाव से समस्त नारी जाति के दुःख-सुख और मंगल-अमंगल की तह में देखा जाए, तो पिता, भाई और पति की सारी हीनताएँ और सारी धोखेबाज़ियाँ क्षण भर में ही सूर्य के प्रकाश के समान आप से आप सामने आ जाती हैं।

निस्संदेह मैं तो हिंदू युवकों को वीरों और हुतात्माओं के उस गौरवमय पागलखाने में प्रविष्ट कराना चाहता हूँ जहाँ त्याग को लाभ, ग़रीबी को अमीरी और मृत्यु को जीवन समझा जाता है। मैं तो ऐसे पक्के और पवित्र पागलपन का प्रचार करता हूँ। पागल! हाँ, मैं पागल हूँ। मैं ख़ुश हूँ कि मैं पागल हूँ।

कामना, भय, लोभ अथवा जीवन-रक्षा के लिए भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। धर्म नित्य है जबकि सुख-दुःख अनित्य हैं, जीव नित्य है तथा बंधन का हेतु अनित्य है।

जो लोग पूरी तरह से समझदार और ख़ुश हैं, दुःख की बात है वे अच्छा साहित्य नहीं लिखते हैं।

घोर अंधकार में जिस प्रकार दीपक का प्रकाश सुशोभित होता है उसी प्रकार दुःख का अनुभव कर लेने पर सुख का आगमन आनंदप्रद होता है किंतु जो मनुष्य सुख भोग लेने के पश्चात् निर्धन होता है वह शरीर धारण करते हुए भी मृतक के समान जीवित रहता है।

ख़ुशी किसी को अपनी बाँहों में भर लेने और यह जानने में है कि पूरी दुनिया आपकी बाँहों में है।

सुखी है वह मनुष्य जो अतिथि को देखकर कभी मुँह नहीं लटका लेता है, अपितु हर अतिथि का प्रसन्नतापूर्वक स्वागत करता है।

कवि के लिए, मौन स्वीकार्य ही नहीं, बल्कि ख़ुश करने वाली प्रतिक्रिया है।

ख़ुशी पहले प्रत्याशा में मिलती है, बाद में स्मृति में।

क्या आप दुखी होने पर भी ख़ुश रह सकते हैं?

ज़्यादा हमेशा बेहतर नहीं होता, वास्तव में सच इसका उलट है; हम कम के साथ ज़्यादा ख़ुश होते हैं।

सुख का साहस है और दुख का भी साहस है।

ख़ुशी का मतलब है कि आप जिससे प्यार करते हैं, उसके क़रीब रहना; बस इतनी-सी बात है।

अगर मैं ख़ुश हो सकता हूँ, तब मैं खुश हो जाऊँगा; अगर मुझे मुझे दुखी होना है, तब मुझे दुख उठाना ही पड़ेगा।

एक विपरीत ख़ुशी भी होती है, एक डरावनी ख़ुशी, जो औरों का बुरा करने से मिलती है।

यह सब झूठ था, सब बदबू कर रहा था, झूठ की बदबू, यह सब अर्थ, ख़ुशी और सुंदरता का भ्रम देता था।

मैं नहीं मानता कि ख़ुशी संभव है, लेकिन मुझे लगता है कि शांति संभव है।

विचार सबसे बड़ा सुख है—ख़ुशी स्वयं केवल कल्पना है—क्या आपने कभी अपने सपनों से अधिक किसी चीज़ का आनंद लिया है?

वह अपने उदास रोगियों से कहा करते थे : ‘आप इस नुस्ख़े से चौदह दिनों में ठीक हो सकते हैं। हर दिन यह सोचने की कोशिश करें कि आप किसी को कैसे ख़ुश कर सकते हैं।’


जल्दी-जल्दी में लिखी गईं गोपनीय नोटबुक्स और तीव्र भावनाओं में टाइप किए गए पन्ने, जो ख़ुद की ख़ुशी के लिए हों।

ख़ुशी का पूरा आनंद लेने के लिए आपके पास इसे बाँटने वाला कोई होना चाहिए।

ख़ुद को ख़ुश करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है, किसी और को ख़ुश करने की कोशिश की जाए।

मैं अपनी ख़ुशी के लिए पढ़ती हूँ और यही वह क्षण होता है, जब मैं सबसे ज़्यादा सीखती हूँ।

जीवन में बस एक ही ख़ुशी है—प्यार करना और प्यार पाना।

ख़ुशी दुहराने की तड़प है।

सिद्धांततः ख़ुशी की पूर्ण संभावना है—अपने भीतर के अक्षय में आस्था रखकर और उसे पाने की कोशिश न करके।

दुःख के प्रतिकार से थोड़ा दुःख रहने पर भी मनुष्य सुख की कल्पना कर लेता है।

ख़ुशी एक समस्या है।

प्यार हमें ख़ुश करने के लिए नहीं है। मेरा मानना है कि प्यार हमें यह दिखाने के लिए मौजूद है कि हम कितना सहन कर सकते हैं।

धर्म से अर्थ प्राप्त होता है। धर्म के सुख का उदय होता है। धर्म से ही मनुष्य सब कुछ पाता है। इस संसार में धर्म ही सार है।


दर्द के बारे में लिखना आसान है। दुख में हम सभी सुख से अलग-अलग होते हैं, लेकिन ख़ुशी के बारे में कोई क्या लिख सकता है?

ख़ुशियाँ हमें मिल सकती हैं—बुरे से बुरे समय में भी, अगर थाम कर रखें रौशनी का दामन।

सती स्त्रियों, अपने दुःख को तुम संभाल कर रखना। वह दुःख नहीं, सुख है। तुम्हारा नाम लेकर बहुतेरे पार उतर गए हैं और उतरेंगे।


अगर कोई सुंदर चीज़ हमेशा के लिए सुंदर रहती, तो मुझे ख़ुशी होती, लेकिन फिर भी मैं उसे ठंडी नज़र से देखता।

अत्यंत लोभी का अर्थ और अधिक आसक्ति रखने वालों का काम—ये दोनों ही धर्म को हानि पहुँचाते हैं। जो मनुष्य काम से धर्म और अर्थ को अर्थ से धर्म और काम को तथा धर्म से अर्थ और काम को हानि न पहुँचा कर धर्म, अर्थ और काम तीनों का यथोचित रूप से सेवन करता है, वह अतयंत सुख प्राप्त करता है।

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