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धन पर उद्धरण

"धन" का अर्थ है "सम्पत्ति"

या "मूल्यवान वस्तुएँ"। यह शब्द मुख्य रूप से किसी व्यक्ति के पास मौजूद संपत्ति, पैसा, या वित्तीय साधनों को दर्शाने के लिए प्रयोग होता है।

जो अधिक धन या अधिक विद्या या अधिक ऐश्वर्य को प्राप्त करके भी गर्वरहित होकर व्यवहार करता है, उसी को पंडित कहा जाता है।

वेदव्यास

मैं अनावश्यक चीज़ों को छोड़ दूँगी, मैं अपना धन दे दूँगी, मैं अपने बच्चों के लिए अपनी जान दे दूँगी; लेकिन मैं ख़ुद को नहीं दूँगी।

केट शोपैं

आलस्य मनुष्य के द्वारा समय को बर्बाद करना है, लालच उसके द्वारा भोजन या धन को बर्बाद करना है, क्रोध उसके द्वारा शांति को बर्बाद करना है। लेकिन ईर्ष्या—ईर्ष्या उसके द्वारा साथी मनुष्य को बर्बाद करना है। दूसरे मनुष्यों की सांत्वना बर्बाद करना है।

सामंथा हार्वे

धर्म का पालन करते हुए ही जो धन प्राप्त होता है, वही सच्चा धन है जो अधर्म से प्राप्त होता है वह धन तो धिक्कार देने योग्य है। संसार में धन की इच्छा से शाश्वत धर्म का त्याग कभी नहीं करना चाहिए।

वेदव्यास

हे राजा! धन से धर्म का पालन, कामना की पूर्ति, स्वर्ग की प्राप्ति, हर्ष की वृद्धि, क्रोध की सफलता, शास्त्रों का श्रवण और अध्ययन तथा शत्रुओं का दमन—ये सभी वही कार्य सिद्ध होते हैं।

वेदव्यास

बुद्धि से धन प्राप्त होता है और मूर्खता दरिद्रता का कारण है—ऐसा कोई नियम नहीं है। संसार चक्र के वृत्तांत को केवल विद्वान पुरुष ही जानते हैं, दूसरे लोग नहीं।

वेदव्यास

पैसा एक तरह की कविता है।

वॉलेस स्टीवंस

आज के ज़माने में ऐसा होता है कि बहुत सी बातें क़ानून के अनुकूल होने पर भी न्यायबुद्धि के प्रतिकूल होती हैं। इसलिए न्याय के रास्ते धन कमाना ही ठीक हो, तो मनुष्य का सबसे पहला काम न्याय-बुद्धि को सीखना है।

महात्मा गांधी

संसार में शरीरधारियों की दरिद्रता ही मृत्यु है और ही आयु है।

क्षेमेंद्र

संसार में दो वस्तुएँ बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन और दूसरे सत्य-शिक्षक मित्र।

अबुल फ़ज़ल

अपने रुपए उन चीज़ों पर ख़र्च करें जो रुपए से मिल सकती हैं। अपना समय उन चीज़ों पर ख़र्च करें जो रुपए से नहीं मिल सकती हैं।

हारुकी मुराकामी

व्यक्ति यदि धार्मिक है तो उसे अपना धन याचकों में वितरित कर देना चाहिए, यदि वह नास्तिक है तो उसे धन का भोग-विलास में उपयोग करना चाहिए, यदि मनुष्य धन को स्पर्श भी करके छिपा कर रखता है तो उसमें उसका क्या हेतु है, यह हमारी समझ में नहीं आता।

नीलकंठ दीक्षित

धन की कमी सभी बुराइयों की जड़ है।

मार्क ट्वेन

अमीर बनने का तरीक़ा पैसा कमाना है, पैसा बचाना नहीं।

केट शोपैं

जो धर्म करने के लिए धनोपार्जन की इच्छा करता है, उसका धन की इच्छा करना ही अच्छा है। कीचड़ लगा कर धोने की अपेक्षा मनुष्यों के लिए उसका स्पर्श करना ही श्रेष्ठ है।

वेदव्यास

जिसके पास धन होता है, उसी के बहुत से मित्र होते हैं। जिसके पास धन है, उसी के भाई-बंधु हैं। संसार में जिसके पास धन है, वही पुरुष कहलाता है। और, जिसके पास धन हैं, वही पंडित माना जाता है।

वेदव्यास

धन-संचय से ही धर्म, काम, लोक तथा परलोक की सिद्धि होती है। धन को धर्म से ही पाने की इच्छा करे, अधर्म से कभी नहीं।

वेदव्यास

पैसा बोलता है, लेकिन मुझे बताओ कि यह सिर्फ़ अलविदा क्यों कहता है।

एडना ओ’ब्रायन

सच्चा धन तो है बस धर्म, जो हिंदू का जीवन मर्म।

मैथिलीशरण गुप्त

भाग्यक्रम से धन आता और जाता है।

शूद्रक

सारा धन भगवान का है और यह जिन लोगों के हाथ में है, वे उसके रक्षक हैं, स्वामी नहीं।

श्री अरविंद

तुम्हारी जेब में एक पैसा है, वह कहाँ से और कैसे आया है, वह अपने से पूछो। उस कहानी से बहुत सीखोगे।

महात्मा गांधी

इस प्रकार संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अंत में वे धन ताप नहीं पैदा करते।

अश्वघोष

धन की इच्छा सबसे बड़ा दुःख है, किंतु धन प्राप्त करने में तो और भी अधिक दुःख है और जिसकी धन में आसक्ति हो गई है, उसे धन का वियोग होने पर उससे भी अधिक दुःख होता है।

वेदव्यास

धन प्राप्ति के सभी उपाय मन का मोह बढ़ाने वाले हैं। कृपणता, दर्प, अभिमान, भय और उद्वेग-इन्हें विद्वानों ने देहधारियों के लिए धनजनित दुःख माना है।

वेदव्यास
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आयु के बीत जाने पर भी जिनके पास धन है, वे तरुण हैं। धन-हीन युवक होते हुए भी वृद्ध हो जाते हैं।

विष्णु शर्मा

सज्जन पुरुष धर्म के लिए ही प्रयत्नपूर्वक धन-संग्रह करते हैं।

क्षेमेंद्र

राजन्! चाहे मनुष्य धन को छोड़े और चाहे धन ही मनुष्य को छोड़ दे—एक दिन ऐसा अवश्य होता है। इस बात को जानने वाला कौन मनुष्य धन के लिए चिंता करेगा?

वेदव्यास

जिसका धन मात्र धन के लिए है, वह धन के तत्त्व को नहीं जानता। जैसे सेवक वन में गायों की रक्षा करता है, उसी प्रकार वह भी दूसरे के लिए धन का रक्षक मात्र है।

वेदव्यास

जैसे जंगल में एक हाथी के पीछे बहुत से हाथी चले आते हैं, उसी प्रकार धन से ही धन बँधा चला आता है।

वेदव्यास

जनता को यह सिखाना कि वह किसी भी क़ीमत पर धनवान बने, उसे विपरीत बुद्धि सिखाने जैसा है।

महात्मा गांधी

नम्र व्यवहार सबके लिए अच्छा है, पर उस में भी धनवानों के लिए तो अमूल्य धन के समान होता है।

तिरुवल्लुवर

धन के उपार्जन में दुःख होता है। और उपार्जित धन की रक्षा में भी दुःख होता है। आय में दुःख व्यय में दुःख। सब प्रकार से दुःख देने वाले धन को धिक्कार है।

विष्णु शर्मा
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बिजली की तरह क्षणिक क्या है? धन, यौवन और आयु।

आदि शंकराचार्य

धन में बल है सत्य नहीं।

मैक्सिम गोर्की
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मनुष्य रुपया कमाना जानता है, परंतु सभी को यह मालूम नहीं होता कि कमाई का सदुपयोग कैसे किया जाए।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

राजनीति और श्रेष्ठ कर्मों के आरंभ के मूल में धन ही होता है।

दण्डी

जो स्वयं भी भोगे और उपयुक्त व्यक्ति को भी कुछ दे, वह विशाल संपत्ति के लिए एक व्याधि है।

तिरुवल्लुवर

धन-संपत्ति मिथ्या अभिमान से उन्मत्त कर देती है।

बाणभट्ट

धन के बिना संसार व्यर्थ है परंतु अत्यधिक धन भी व्यर्थ है, जैसे अन्न के बिना तन नहीं रहता, परंतु अत्यधिक भोजन करने से प्राण चले जाते हैं।

दयाराम

जो देता है और भोगता नहीं है, उसके पास करोड़ों क्यों संग्रहीत हों, सब व्यर्थ ही है।

तिरुवल्लुवर

निर्धन को दुर्बल कहा जाता है। धन से मनुष्य बलवान् होता है। धनवान् को सब कुछ सुलभ है। जो कोशवान् है, वह सारे संकटों से पार हो जाता है।

वेदव्यास

पुरुष अर्थ का दास है। अर्थ किसी का दास नहीं है।

वेदव्यास

धन जीवन का सवोपरि साधन है अतः उसका नाश जीवन की हानि है।

क्षेमेंद्र

धन-रूपी फल का परिश्रम ही मूल है।

मैथिलीशरण गुप्त

किसका धन चंचल नहीं है?

शूद्रक

मनस्विता धन की गर्मी से लता के समान झुलस जाती है।

बाणभट्ट

यदि तुम्हारे पास धन हैं, तो निर्धनों को बाँट दो। यदि धन पर्याप्त नही है तो मन की भेंट दो। यदि मन ठोक नहीं है तो तन अर्पित करो। यदि तन भी स्वस्थ नहीं है तो मीठे वचन ही बोलो। परंतु तुम्हें कुछ कुछ देना ही है और परोपकार के लिए अवश्य ही स्वयं को न्यौछावर करना है।

किशनचंद 'बेवस'

पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं।

संत एकनाथ

कुल, धन, ज्ञान, रूप, पराक्रम, दान और तप- ये सात मुख्य रूप से मनुष्यों के अभिमान के हेतु हैं।

क्षेमेंद्र