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कला पर उद्धरण

सारी कलाएँ एक-दूसरे में समोई हुई हैं, हर कला-कृति दूसरी कलाकृति के अंदर से झाँकती है।

शमशेर बहादुर सिंह

एक सुभाषित है—'कवितारसमाधुर्य्यम् कविर्वेत्ति’, कविता का रस-माधुर्य सिर्फ़ कवि जानता है। ठीक उसी प्रकार सुर में सुर मिलना चाहिए, नहीं तो वाद्ययंत्र कहेगा ‘गा’ और गले से निकलेगा ‘धा’।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

जो कला होती है वह सुंदर और सत्य होती है, जो बनावट होती है वह असुंदर और असत्य होती है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

कला मानवीय जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

अतीत के बिना कोई कला नहीं होती है, किंतु वर्तमान के बिना भी कोई कला जीवित नहीं रहती है, यह भी ठीक है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

जो कला जीवन की आवश्यकताओं से उत्प्रेरित नहीं होती, उसमें विषयगत वैविध्य का अभाव रहता है और उसके रूप-तत्व का कौशल ही अधिक बढ़ जाता है।

विजयदान देथा

क्रिया के भेद से ही संसार में कला के अनेक भेद उद्भुत हुए।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

प्रकृति में प्रत्यक्ष की हम प्रतीति करते हैं, साहित्य और ललिल कला में अप्रत्यक्ष हमारे निकट प्रतीयमान होता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

कला की कोई भी क्रिया, मनुष्य और जीवन-धारण के लिए अनिवार्य नहीं है। इसलिए कला ही मनुष्य को वह क्षेत्र प्रदान करती है, जिसमें वह अपने व्यक्तित्व का सच्चा विकास कर सकता है।

रामधारी सिंह दिनकर

कला की प्राप्ति में तपस्या अपेक्षित है— प्रक्रिया अर्जित करने का तप, मनन करने का ताप, देखने का तप, श्रवण करने का तप।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

कला का कार्य यथास्थिति बताने से ज़्यादा यह कल्पना करना है कि क्या संभव है।

बेल हुक्स

जो कवि केवल सौंदर्य का प्रेमी है, वह शुद्ध कलाकार बन जाता है।

रामधारी सिंह दिनकर

कला से प्रेम करो। सभी झूठों में से, यह सबसे कम असत्य है।

गुस्ताव फ़्लॉबेयर

सफल होने के लिए—एक कलाकार के पास—साहसी आत्मा होनी चाहिए। …वह आत्मा जो हिम्मत करती है और चुनौती देती है।

केट शोपैं

चाहे साइंस हो, चाहे आर्ट हो—निरासक्त मन ही सर्वश्रेष्ठ वाहन है। यूरोप ने साइंस में वह पाया है, किंतु साहित्य में नहीं पाया।

रवींद्रनाथ टैगोर

कविता विद्वान की कला है।

वॉलेस स्टीवंस

सच बात तो यह है कि आत्मपरक रूप से विश्वपरक, जगतपरक होने की लंबी प्रक्रिया की अभिव्यक्ति ही कला है—अभिव्यक्ति-कौशल के क्षेत्र में और अनुभूति अर्थात् अनुभूत वस्तु-तत्व के क्षेत्र में।

गजानन माधव मुक्तिबोध

हर रचना अपने निजी विन्यास को लेकर व्यक्त होती है, जैसे हर राग-रागिनी का ठाट बदल जाता है, वैसे ही हर चित्र, कविता के सृजन के समय उसका साँचा बदल जाता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

कला लंबी है और जीवन छोटा—मृत्यु मँडरा रही है।

मार्गरेट एटवुड

जहाँ तक मुझे याद आता है कि मैं हमेशा गहरे अवसाद से पीड़ित रहा जो मेरी कलाकृतियों में भी झलकता है।

एडवर्ड मुंक

कला उनके लिए सांत्वना है, जिन्हें जीवन ने तोड़ दिया है।

विन्सेंट वॉन गॉग

लेखन की कला आप जो मानते हैं, उसे खोजने की कला है।

गुस्ताव फ़्लॉबेयर

जो देश अथवा जाति; जितनी अधिक परिष्कृत तथा सभ्य होगी, उसकी कला-कृतियाँ उतनी ही अधिक सुंदर और सुष्ठु होंगी।

श्यामसुंदर दास

‘कला के लिए कला’ खोखला वाक्यांश है। सत्य के लिए कला, शुभ और सुंदर के लिए कला—मुझे इसी विश्वास की तलाश है।

जॉर्ज सैंड

आप अच्छे इरादों से कला की रचना नहीं कर सकते हैं।

गुस्ताव फ़्लॉबेयर

प्रेम की कला के अभ्यास के लिए ‘आस्था का अभ्यास’ ज़रूरी है।

एरिक फ़्रॉम

पति को पा लेना एक कला है, उसे पकड़कर रखना कठिन कार्य है।

सिमोन द बोउवार

'आदानेक्षिप्रकारिता प्रतिदाने चिरायुता' अर्थात् ग्रहण करने में शीघ्रता करनी चाहिए किंतु जब दूसरों को देने का अवसर आए तब उसमें देर लगानी चाहिए। शिल्पी पर शास्त्रकार ने यह जो आदेश लागू किया है, उसका एक अर्थ है कि वस्तु के कौशल और रस को चटपट ग्रहण करना चाहिए। किंतु प्रस्तुत करते समय सोच-समझकर चलना चाहिए।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

कला रोटी जितनी उपयोगी है।

अज़र नफ़ीसी

अश्वेत साहित्य को समाजशास्त्र के रूप में पढ़ाया जाता है—सहिष्णुता के रूप में, गंभीर, कठोर कला के रूप में नहीं।

टोनी मॉरिसन

अगर कला हमें बेहतर नहीं बनाती है, तो यह पृथ्वी पर और किसलिए है?

एलिस वॉकर

कला हमारे विश्वासघाती आदर्शों का दर्पण है।

डोरिस लेसिंग

साहित्य या कला-रचना में मनुष्य की जिस चेष्टा की अभिव्यक्ति होती है, उसे कुछ लोग मनुष्य की खेल करने की प्रवृत्ति जैसा मानते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

कभी कलात्मक गहने मत पहनो, ये स्त्री की प्रतिष्ठा को बर्बाद कर देते हैं।

कोलेट

कला में कुछ भी कहना कठिन है : कुछ कहना कुछ कहने जैसा ही है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

जब सच्चाई पर नवीनता का रंग चढ़ता है, उस समय मानो सोने की अंगूठी में कोई हीरा जड़ देता है। कला वही है जो नमूने में नई गठन गढ़ दे, परंतु वाणी में भी प्राचीनता का पाठ पढ़ाए।

किशनचंद 'बेवस'

एक व्यक्ति तो प्रलाप की तरह अंट-संट बकता चला जा रहा है और एक व्यक्ति कुछ भी नहीं कह रहा है या सीधी बातें कह रहा है—शिल्पजगत् में इन दोनों के ही लिए कोई स्थान नहीं।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

चिकित्सा की कला में रोगी को ख़ुश करना शामिल है, जबकि बीमारी को प्रकृति ठीक करती है।

वाल्तेयर

वास्तविक कला में हमें उत्तेजित करने की क्षमता होती है।

सूज़न सॉन्‍टैग

कला के मामलों में धीमे से बढ़ो : प्रत्येक क्षण को वह देने दो जो उसे देना है। वक़्त के आगे भागने की कोशिश करो।

हुआन रामोन हिमेनेज़

एक सामान्य मनुष्य के मन पर सुंदर-असुंदर की जैसी प्रतिक्रिया होती है, वैसी ही प्रतिक्रिया एक कलाकार के मन पर भी होती है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

सीखना, अनदेखा करने की कला है।

एलायस कनेटी

पढ़ने की बीमारी वाले मैंने यहाँ और दूसरी जगह बहुत देखे हैं। यह रोग तुम्हें भी सता रहा है। इस रोग से मुक्त होने के लिए भ्रमण करो, ईश्वर की लीला देखो, कुदरत की किताब पढ़ो, पेड़ों की भाषा समझो, आकाश में होने वाला गान सुनो, वहाँ रोज़ रात को होने वाला नाटक देखो। दिन में कातो, थकावट लगे तब सोओ, बढ़ई का काम हो सके तो करो, मोची का काम करो।

महात्मा गांधी

वस्तुतः कला का संघर्ष तत्त्व के संकलन, परिष्कार और विकास का संघर्ष है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

कला में वस्तुतः आत्माभिव्यक्ति नहीं हुआ करती। अभिव्यक्ति होती है, किंतु जीने और भोगनेवाले अपने मन की, अपनी आत्मा की, वह सच्ची अभिव्यक्ति है—यह कहने का साहस नहीं हो पाता।

गजानन माधव मुक्तिबोध

तर्कशास्त्र की विविध प्रणालियाँ और प्रक्रियाएँ, कला की श्रेणी में नहीं सकतीं। कला का संबंध नियमों से नहीं है, वह तो रूप की अभिव्यक्ति मात्र है।

श्यामसुंदर दास

मानवीय-कला का शैशव मनुष्य के घर और बाहर के ज़रूरी काम करते हुए बीता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

कला और विज्ञान ही में मनुष्य अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति पाता है।

विजयदान देथा

जो कला मनुष्य की हीन वृत्तियों को उभारती और भोगों की इच्छा को बढ़ाती है, वह कला गंदे साहित्य की श्रेणी में ही समझी जाएगी।

महात्मा गांधी

मधुकर मधु लेकर तृप्त हो जाए; इससे फूल को जितना आनंद मिलता है, इसकी अपेक्षा एक शिल्पी की सजीव आत्मा, एक समझदार पारखी इससे भी आनंदित होती है, यह सत्य है, किंतु यह उसका ऊपरी पाना होता है। मिल जाए तो भी अच्छा है, मिले भी अच्छा।

अवनींद्रनाथ ठाकुर