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मनुष्य पर उद्धरण

जिन्होंने सभ्यता को रुटीन के रूप में स्वीकार कर लिया है, उनके भीतर कोई बेचैनी नहीं उठती। वे दिन-भर दफ्तरों में काम करते हैं और रात में क्लबों के मज़े लेकर आनन्द से सो जाते हैं और उन्हें लगता है, वे पूरा जीवन जी रहे हैं।

रामधारी सिंह दिनकर

ऐतिहासिक अनुभूति के द्वारा मनुष्य के अपने आयाम असीम हो जाते हैं—उसका दिक् और काल उन्नत हो जाता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

तुम मँझौली हैसियत के मनुष्य हो और मनुष्यता के कीचड़ में फँस गये हो। तुम्हारे चारो ओर कीचड़-ही-कीचड़ है।

श्रीलाल शुक्ल

‘स्व’ से ऊपर उठना, ख़ुद की घेरेबंदी तोड़कर कल्पना-सज्जित सहानुभूति के द्वारा अन्य के मर्म में प्रवेश करना—मनुष्यता का सबसे बड़ा लक्षण है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जो कमज़ोरी सब मनुष्यों में हो सकती है, वह कमज़ोरी नहीं—बल्कि मनुष्य की प्रकृति का गुण-धर्म है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जगत से मन अपनी चीज़ संग्रह कर रहा है, उसी मन से विश्व-मानव-मन फिर अपनी चीज़ चुनकर, अपने लिए गढ़े ले रहा है।

रवींद्रनाथ टैगोर

कलावान् गुणीजन भी जहाँ पर वास्तव में गुणी होते हैं; वहाँ पर वे तपस्वी होते हैं, वहाँ यथेच्छाचार नहीं चल सकता, वहाँ चित्त की साधना और संयम—है ही है।

रवींद्रनाथ टैगोर

रूप-विद्या मनुष्य को विषय के सत्य तक पहुँचा देना चाहती है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

जो व्यक्ति आध्यात्मिक जीवन के स्थान पर कृत्रिम, यांत्रिक जीवन का वरण करके तृप्त नहीं होता, उसके भीतर प्रश्न उठते ही रहते हैं और वह अनुत्तरित प्रश्नों के अरण्य में भटकता हुआ कहीं भी शान्ति नहीं पाता है।

रामधारी सिंह दिनकर

इंसान ऐसा बना है कि अगर वह अपने बनाने वाले को समझ ले और यह समझ ले कि मैं उसी भगवान का प्रतिबिंब हूँ, तो दुनिया की कोई ताक़त उसके स्वमान को छीन ही नहीं सकती। उसके स्वमान का हनन कोई कर सकता है तो वह ख़ुद ही कर सकता है

महात्मा गांधी

व्यक्ति का विकास बाह्य-समाज में तो होता ही है, वह परिवार में भी होता है। परिवार व्यक्ति के अंतःकरण के संस्कार में तथा प्रवृत्ति-विकास में पर्याप्त योग देता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

नाटक में अगर कहीं किसी मतवाले व्यक्ति का पागलपन दिखाना हो तो वहाँ अगर सचमुच के किसी मतवाले व्यक्ति को मंच पर छोड़ दिया जाए, तो वह एक तरह की दुर्घटना कर बैठेगा। दूसरी तरफ़ जिसमें उन्मत्त्ता का रेशा भी हो; अगर मंच पर लाकर उसे छोड़ दिया जाए तो भी वही विपत्ति घटेगी–––दोनों पक्ष ही उस जात्रा-नाटक को मिट्टी में मिला बैठेंगे।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

कला मानवीय जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

संसार में नीति, नियति, वेद, शास्त्र और ब्रह्म सबको जानने वाले मिल सकते हैं, परंतु अपने अज्ञान को जानने वाले मनुष्य विरले ही हैं।

अप्पय दीक्षित

आँख वाले प्रायः इस तरह सोचते हैं कि अंधों की, विशेषतः बहरे-अंधों की दुनिया, उनके सूर्य प्रकाश से चमचमाते और हँसते-खेलते संसार से बिलकुल अलग हैं और उनकी भावनाएँ और संवेदनाएँ भी बिलकुल अलग हैं और उनकी चेतना पर उनकी इस अशक्ति और अभाव का मूलभूत प्रभाव है।

हेलेन केलर

आवश्यकताओं की निर्विरोध और निर्बंध पूर्ति ही मनुष्य जीवन की स्वतंत्रता है।

विजयदान देथा

आदमी जब बिगड़ता है तो स्वभाव से ही कुछ ऐसा है कि जब वह एक चीज़ में बिगड़ता है, तो पीछे सब चीज़ों में ही बिगड़ जाता है।

महात्मा गांधी

कविता एक सामूहिक उद्वेग और सामूहिक आवश्यकता की सहज अभिव्यक्ति है और यह व्यवस्था संपूर्ण रूप से वैयक्तिक है।

विजयदान देथा

ज़रूरत पड़ने पर मनुष्य, संसार में बेहतरी के लिए बदलाव लाने की योग्यता रखता है और वह चाहे तो इस बेहतरी के लिए अपने भीतर भी बदलाव ला सकता है।

विक्टर ई. फ्रैंकल

मनुष्य का अंतःकरण देववाणी है।

लॉर्ड बायरन

मनुष्य की आत्मा ही राजनीति है, अर्थशास्त्र है, शिक्षा है और विज्ञान है, इसलिए अंतरात्मा को सुसंस्कृत बनाना ही सबसे अधिक आवश्यक है। यदि हम अंतरात्मा को सुशिक्षित बना लें तो राजनीति, अर्थशास्त्र, शिक्षा और विज्ञान के प्रश्न स्वयं ही हल हो जाएँगे।

जूली कागावा

जीवन से विरहित होकर भूतकाल की उपासना करना केवल बुद्धि का कुतूहल है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

लोग समझदार हो गए हैं, इसलिए अविरोध की साधना में लग गए हैं।

कृष्ण बिहारी मिश्र

मानवीय संवेदना के मूल स्वभाव को ठीक से समझे बिना सब कुछ को ख़ारिज कर देने का औद्धत्य कभी फलप्रसू नहीं होता।

कृष्ण बिहारी मिश्र

अंतःकरण हम सबको कायर बना देता है।

विलियम शेक्सपियर

किताबें यह बताती हैं कि मनुष्य के मौलिक विचार उतने नए नहीं होते, जितना वह समझता है।

अब्राहम लिंकन

समाज में रहने वाला मनुष्य; समाज की अनिच्छा से ही क्यों हो, साझेदार बनता है।

महात्मा गांधी

मनुष्य के लालच और आत्मघात का ज़हर धरती के केंद्र में काफ़ी जमा हो चुका है।

रघुवीर चौधरी

नए मनुष्य को नीत्शे के मुख से यह सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई थी कि ईश्वर की मृत्यु हो गई। किन्तु यह रहस्य अब खुला है कि ईश्वर की मृत्यु; ईश्वर की मृत्यु नहीं थी, उन मूल्यों की मृत्यु थी—जो मनुष्य और ईश्वर के बीच सेतु बनाये हुए थे।

रामधारी सिंह दिनकर

जो मानव भिन्नत्व में एकत्व को देखता है वही प्राज्ञ माना जा सकता है।

गुरजाड अप्पाराव

ऐतिहासिक-अनुभूति वह कीमिया है, जो मनुष्य का संबंध सूर्य के विस्फोटकारी केंद्र से स्थापित कर देती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

मुझे लगता है कि जीवन के हर आयाम में सत्ता, अनुक्रमों और राज करने की कोशिश में लगे केंद्रों को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए और उनको चुनौती देनी चाहिए। जब तक उनके होने का कोई जायज़ हवाला दिया जा सके, वे ग़ैरक़ानूनी हैं और उन्हें नष्ट कर देना चाहिए। मनुष्य की आज़ादी की उम्मीद इससे ही बढ़ेगी।

नोम चोम्स्की

मैं उनमें से नहीं हूँ जो नाम को केवल नाम समझते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

जानवर इंसानों जितने बुद्धिमान नहीं होते, इसलिए उन्होंने छिपने की कला नहीं सीखी है। लेकिन मनुष्य में और उनमें बुद्धि को छोड़कर बाक़ी सभी चीज़ें समान स्तर की होती हैं। उन्होंने अपनी कुटिल बुद्धि से वितरण की व्यवस्था बनाकर अपने पशुवत कर्मों को छुपाने के लिए सुरक्षित अंधकार पैदा कर लिया है।

रघुवीर चौधरी

संसार के उत्कृष्ट मस्तिष्क वाले संकल्पवान् प्राणी में और एक साधारण मनुष्य में भी जो भेद है, वह मन की शक्तियों के भेद के कारण है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

मैं एक बहुत ही साधारण इंसान हूँ, मुझे बस किताबें पढ़ना पसंद है।

हारुकी मुराकामी

राष्ट्र को छोड़िए, लेकिन अवचेतन को समाप्त करके कोई व्यक्ति तक होश, समझदारी और पहचान नहीं पा सकता।

राजेंद्र माथुर

आदिम मानव की यह एक स्वाभाविक वृत्ति है कि वह बाह्य-वस्तु जगत को अपनी कल्पना के द्वारा, अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप चित्रित करता है।

विजयदान देथा

मनुष्य ने नियम-कायदों के अनुसार; अपने सजग ज्ञान द्वारा भाषा की सृष्टि नहीं की, और उसके निर्माण की उसे आत्म-चेतना ही थी। मनुष्य की चेतना के परे ही प्रकृति, परम्परा, वातावरण, अभ्यास अनुकरण आदि के पारस्परिक संयोग से भाषा का प्रारम्भ और उसका विकास होता रहा।

विजयदान देथा

मनुष्य अकेला नहीं है, वह समग्र से जुड़ा हुआ है, अनेकों पर उसकी निर्भरता अपरिहार्य है।

रघुवीर चौधरी

जब मनुष्य अपने अंदर युद्ध करने लगता है तब वह अवश्य ही किसी योग्य होता है।

रॉबर्ट ब्राउनिंग

आदिम मानव प्रकृति को अपने प्रत्यक्ष व्यवहार में बरतता है।

विजयदान देथा

उस मनुष्य का किसी बात में विश्वास करो जो हर बात में अंतःकरण वाला नहीं है।

लॉरेंस स्टर्न

अंतःकरण का दंश मनुष्यों को दंशन सिखाता है।

फ़्रेडरिक नीत्शे

मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई आदमी वास्तव में किसी किताब का आनंद ले और उसे केवल एक बार पढ़े।

सी. एस. लुईस

जो मनुष्य यह मेरा और वह तेरा मानता है, वह अनासक्त नहीं हो सकता।

महात्मा गांधी

अभिमानी व्यक्ति की शान और उसके अपयश के बीच केवल एक पग की दूरी है।

पब्लिलियस साइरस

जगहों की दूरी आदिकाल से मानव को चिढ़ाती आई है। दूर-दूर जाने की इच्छा उतनी ही बलवती रही है जितनी दूरियों को घटाने की कोशिश।

कृष्ण कुमार

अँधेरा ही एक ऐसी चीज़ है जो हर आदमी की शकल को एक बना देती है।

लक्ष्मीकांत वर्मा

जीवित मनुष्य के लिए दुष्ट अंतःकरण की यंत्रणा तो नरक है।

जॉन केल्विन