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कृष्ण पर उद्धरण

सगुण भक्ति काव्यधारा

में राम और कृष्ण दो प्रमुख अराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठित हुए। इसमें कृष्ण बहुआयामी और गरिमामय व्यक्तित्व द्वारा मानवता को एक तागे से जोड़ने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। सगुण कवियों ने प्रेम और हरि को अभेद्य माना, प्रेम कृष्ण का रूप है और स्वयं कृष्ण प्रेम-स्वरुप हैं। प्रस्तुत चयन में भारतीय संस्कृति की पूर्णता के आदर्श कृष्ण के बेहतरीन दोहों और कविताओं का संकलन किया गया है।

आर्य संस्कृति और आर्यों में ‘ऋग्वेद’ का प्रमुख देवता इन्द्र था। यद्यपि ब्रह्मा, विष्णु, महेश—तीनों का नाम लिया जाता है। ब्रह्मा की महिमा धीरे-धीरे घटती गई। इन्द्र की महिमा घटती गई और कृष्ण आते गए। इसका मूल स्रोत कहीं लोकजीवन से जोड़कर देखना चाहिए।

नामवर सिंह

कृष्ण भारतवर्ष के लिए अमूल्य निधि है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

जब हरि मुरली अधर धरत।

थिर चर, चर थिर, पवन थकित रहैं, जमुना-जल बहत॥

सूरदास

करोड़ों हिंदुस्तानियों ने, युग-युगांतर के अंतर में, हज़ारों बरस में राम, कृष्ण और शिव को बनाया। उनमें अपनी हँसी और सपने के रंग भरे और तब राम और कृष्ण और शिव जैसी चीज़ें सामने हैं।

राममनोहर लोहिया

गीता, गंगा, गायत्री और गोविंद—इन गकार-युक्त चार नामों को हृदय में धारण कर लेने पर मनुष्य का फिर इस संसार में जन्म नहीं होता।

वेदव्यास

यदि तुम यह समझते हो कि ईसा या बुद्ध या कृष्ण या किसी अन्य महात्मा के नाम के कारण तुम्हारा उद्धार हो रहा है, तो स्मरण रखो कि ईसा, बुद्ध, कृष्ण या किसी दूसरे व्यक्ति में यथार्थ गुण निहित नहीं हैं, वास्तविक शक्ति तो तुम्हारी आत्मा में है।

रामतीर्थ

मनुष्यता के सौंदर्यपूर्ण और माधुर्यपूर्ण पक्ष को दिखा कर इन कृष्णोपासक वैष्णव कवियों ने जीवन के प्रति अनुराग जगाया, या कम से कम जीने की चाह बनी रहने दी।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

असंख्य मनुष्यों का जीवन आज कृष्ण के आदर्श से प्रभावित होता है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

संसार में एक कृष्ण ही हुआ जिसने दर्शन को गीत बनाया।

राममनोहर लोहिया

वैष्णवों का कृष्ण—लोकल और क्लासिकल का संयुक्त रूप है।

नामवर सिंह

राम और कृष्ण के मिथक संकल्प और संवेग के चैतन्य स्रोत हैं।

कुबेरनाथ राय

श्रीकृष्ण का लोकरक्षक और लोकरंजक रूप गीता में और भागवत पुराण में स्फुरित है। पर धीरे-धीरे वह स्वरूप आवृत्त होता गया है और प्रेम का आलंबन मधुर रूप ही शेष रह गया।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

'सत्संग' नामक देश में 'भक्ति' नाम का नगर है। उसमें जाकर 'प्रेम' की गली पूछना। विरह-ताप-रूपी पहरेदार से मिलकर महल में घुसना और सेवारूपी सीढ़ी पर चढ़कर समीप पहुँच जाना। फिर दीनता के पात्र में अपने मन की मणि को रखकर उसे भगवान् को भेंट चढ़ा देना। अहं तथा घमंड के भावों को न्योछावर कर तुम श्रीकृष्ण का वरण करना।

दयाराम

प्रियतम तुम मेरे प्राण हो। मैंने देह, मन, कुल, शील, जाति, मान सब तुम्हें सौंप दिया। हे अखिल के नाथ श्याम, तुम योगियों के आराध्य धन हो। हम गोपियाँ हैं, बड़ी दrन हैं, भजन-पूजन कुछ नहीं जानतीं। सब लोग हम पर कलंक लगाते हैं, पर उसका मलाल नहीं है। तुम्हारे लिए कलंक का हार गले में धारण करना सुख की बात है।

चंडीदास

व्यवहार में गंभीरता, वचन में गंभीरता और भावों में गंभीरता—इन तीन गंभीरताओं के साथ कृष्ण का स्मरण करें तो महामंगल मिलेगा।

माधवदेव

भारतवर्ष के जिन महापुरुषों का मानव जाति के विचारों पर स्थायी प्रभाव पड़ा है, उनमें श्रीकृष्ण का स्थान प्रमुख है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

कृष्ण में यह विशिष्टता है कि वे सदा अच्छे ही लगते हैं, इसी से मन में समाए रहते हैं।

तुलसीदास

गाँव से भागती अन्नपूर्णा और मनीषा की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण के चरित्र का आह्वान जरूरी है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

सर्वदा और सर्वत्र सर्व गुणों के प्रकाश से श्रीकृष्ण तेजस्वी थे। वह अपराजेय, अपराजित, विशुद्ध, पुण्यमय, प्रेममय, दयामय, दृढ़कर्मी, धर्मात्मा, वेदज्ञ, नीतिज्ञ, धर्मज्ञ, लोकहितैषी, न्यायशील, क्षमाशील, निरपेक्ष, शास्ता, मोह-रहित, निरहंकार, योगी और तपस्वी थे। वह मानुषी शक्ति से कार्य करते थे, परंतु उनका चरित्र अमानुषिक था।

बंकिम चंद्र चटर्जी

उग्र तप, ज्ञान, गुण विकास, यज्ञ, योग, दान, पुण्य आदि सबका प्रयोजन ही क्या है जब तक सब जगत् के निज आत्मा, मोक्ष-सुख देने वाले इष्ट देव कृष्ण के चरणों में भक्ति नहीं?

माधवदेव

दक्षिण ने जिस कृष्ण की मूर्ति ‘श्रीमद्भागवत’ में गढ़ी और जो दक्षिण में रचा गया था—वह महाभारत के कृष्ण से अलग

नामवर सिंह

जिनका मन श्रीकृष्ण के प्रेम से रहित है उनके क्रिया-नैपुण्य को धिक्कार है, उदारता (दानशीलता) को धिक्कार है, अधिक पढ़ी हुई विद्या को धिक्कार है, आत्मज्ञता को धिक्कार है, शील को धिक्कार है, यज्ञ आदि की रचना को धिक्कार है, पुरुषार्थ को तथा बुद्धि को धिक्कार है; ध्यान, आसन, धारणा को धिक्कार है, मंत्र-तंत्र की जानकारी को धिक्कार है, जन्म को तथा जीवन को धिक्कार है।

कवि कर्णपूर

जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धर अर्जुन हैं, वहाँ श्री, विजय, वैभव और ध्रुवनीति रहेंगे, यह मेरा मत है।

वेदव्यास
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कृष्ण का बालजीवन तो एक काव्य ही है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

हे कृष्ण! मन चंचल और प्रमथन स्वभाव वाला, दृढ बलवान है। उसको वश में करना मैं वायु को वश में करने के समान अति दुष्कर मानता हूँ।

वेदव्यास

हे अर्जुन! मन निःसंदेह चंचल और कठिनता से वश होने वाला है परंतु अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जाता है।

वेदव्यास

कृष्ण के उच्च स्वरूप की पराकाष्ठा हमारे लिए गीता में हैं।

वासुदेवशरण अग्रवाल

भगवान श्रीकृष्ण को छोड़ कर अन्य किसी भी तत्त्व को मैं नहीं जानता।

मधुसूदन सरस्वती

उसका जो भी कुछ नाम हो, शिव हो, केशव हो, जिन हो अथवा कमलजनाथ हो—मुझ अबला को भव-रोग से मुक्त कर दे।

लल्लेश्वरी
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कृष्ण को हमारे देश के जीवन-चरित्र लेखकों ने ‘सोलह कला का अवतार’ कहा है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

कृष्ण की राजनीतिक बुद्धि अद्भुत थी।

वासुदेवशरण अग्रवाल

हे दशावतारधारी कृष्ण! तुम मत्स्यरूप में वेदों का उद्धार करते हो। कूर्म रूप में जगत् को धारण करते हो। नृसिंह रूप में दैत्य को नष्ट करते हो। वामन रूप में बलि को छलते हो। परशुराम रूप में क्षत्रियों का नाश करते हो। रामचन्द्र रूप में रावण को जीतते हो। बलराम रूप में हल को धारण करते हो। बुद्ध रूप में करुणा को वितरित करते हो, और कलि रूप में म्लेच्छों को नष्ट करते हो। तुम्हें नमस्कार है।

जयदेव