मेरा स्वभाव या सिद्धांत या प्रवृत्ति कुछ ऐसी है (मेरे ख़याल से जो शायद सही भी है) कि जो व्यक्ति साहित्यिक दुनिया से जितना दूर रहेगा, उसमें अच्छा साहित्यिक बनने की संभावना उतनी ही ज़्यादा बढ़ जाएगी। साहित्य के लिए साहित्य से निर्वासन आवश्यक है।
रचना-प्रक्रिया के भीतर न केवल भावना, कल्पना, बुद्धि और संवेदनात्मक उद्देश्य होते हैं; वरन वह जीवनानुभव होता है जो लेखक के अंतर्जगत का अंग है, वह व्यक्तित्व होता है जो लेखक का अंतर्व्यक्तित्व है, वह इतिहास होता है जो लेखक का अपना संवेदनात्मक इतिहास है और केवल यही नहीं होता।
ऐतिहासिक अनुभूति के द्वारा मनुष्य के अपने आयाम असीम हो जाते हैं—उसका दिक् और काल उन्नत हो जाता है।
आलोचक के लिए सर्व-प्रथम आवश्यक है—अनुभवात्मक जीवन-ज्ञान, जो निरंतर आत्म-विस्तार से अर्जित होता है।
यदि लेखक के पास संवेदनात्मक महत्व-बोध नहीं है, या क्षीण है, तो विशिष्ट अनुभवों की अभिव्यक्ति क्षीण होगी।
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अनुभव और दंड ऐसी सीख देते हैं जो अन्य उपायों से संप्रेषित नहीं होती।
ऐतिहासिक-अनुभूति वह कीमिया है, जो मनुष्य का संबंध सूर्य के विस्फोटकारी केंद्र से स्थापित कर देती है।
अनुभवहीनता से उत्पन्न गुंजाइश के मर्म में जीवन को राह दिखाने वाली ज्योति निवास करती है।
त्यागने की संतुष्टि और अनुभव की संतुष्टि में बहुत बड़ा अंतर है।
ख़ुशी का अनुभव करते हुए हमें उसके प्रति चेतन होने में कठिनाई होती है। जब ख़ुशी गुज़र जाती है और हम पीछे मुड़कर उसे देखते और अचानक से महसूस करते हैं—कभी-कभार आश्चर्य के साथ—कितने ख़ुश थे हम।
अनुभव अर्थात् मनुष्यों द्वारा अपनी ग़लतियों को दिया जाने वाला नाम।
सिर्फ़ विश्वास करने से काम नहीं चलता। आश्वस्त भी होना चाहिए—अनुभव से।
पूर्वकल्पित धारणाओं से किसी को समझना सही नहीं है। सच्ची पहचान उसके आचरण से ही मिल सकती है। लेकिन व्यवहार प्रासंगिक है। क्या यह व्यक्तित्व के सुसंगत पहलुओं का परिचय दे सकता है? अन्यथा व्यवहार भी भ्रामक है। धारणा भी भ्रामक है। अनुभव भी भ्रामक है… तो सच क्या है? लेकिन सत्य भी धारणा ही है, है ना? बिना धारणा के मैं दौड़ नहीं सकता।
सच बात तो यह है कि आत्मपरक रूप से विश्वपरक, जगतपरक होने की लंबी प्रक्रिया की अभिव्यक्ति ही कला है—अभिव्यक्ति-कौशल के क्षेत्र में और अनुभूति अर्थात् अनुभूत वस्तु-तत्व के क्षेत्र में।
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जो लोग सौंदर्य के उपभोग में उन्मत्त हैं, उनकी यंत्रणा कैसी है, इसका अनुभव मैं भोजन करने के लिए बैठने पर ही करता हूँ। मेरे जीवन में घोर दुःख यह है कि अन्न-व्यंजन थाली में रखते-रखते ही ठंडे हो जाते हैं। उसी प्रकार सौंदर्य-रूपी मोटे चावल का भात है, प्रेम-रूपी केला के पत्तल पर डालते ही ठंडा हो जाता है—फिर कौन रुचि से उसे खाए? अंत में वेश-भूषा-रूपी इमली की चटनी मिलाकर, ज़रा अदरक-नमक के क़तरे डालकर किसी तरह निगल जाना पड़ता है।
प्रतिभा लंबा धैर्य है और मौलिकता इच्छाशक्ति और गहन अवलोकन का प्रयास है।
भय का अनुभव केवल उन्हें ही होगा जिनको विश्वास नहीं है।
सौंदर्यानुभूति वास्तविक जीवन की मनुष्यता है।
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विदाई के अनुभव की उत्कटता सिर्फ़ आँखें ही विशेषत: बयाँ कर पाती हैं
प्यार को कभी समझा नहीं गया है, चाहे इसे पूरी तरह से अनुभव किया गया हो और उस अनुभव को संप्रेषित किया गया हो।
आत्मज्ञान ही हमारी चेतना की शर्त और सीमा है। शायद इसलिए ही कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने अनुभव की छोटी परिधि के बाहर की बातें बहुत कम जानते हैं। वे अपने भीतर देखते हैं और उन्हें जब वहाँ कुछ नहीं मिलता तो वे यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि बाहर कुछ नहीं है।
मूर्खों के साथ कभी बहस मत करो। वे आपको अपने स्तर तक गिरा देंगे और आपको अनुभव से हरा देंगे।
अनुभव सबसे क्रूर शिक्षक है। लेकिन तुम सीखते हो, मगर क्या तुम सच में सीखते हो।
मैंने अपना साहित्यिक अस्तित्व ऐसे व्यक्ति जैसा बनाना शुरू कर दिया, जो इस तरह रहता है जैसे उसके अनुभव किसी दिन लिखे जाने थे।
गति देखी तो नहीं जा सकती, अनुभव करना होता है।
दरिद्रनारायण का अर्थ है ग़रीबों का ईश्वर, ग़रीबों के हृदय में निवास करने वाला ईश्वर। इस नाम का प्रयोग दिवंगत देशबंधु दास ने एक बार सत्य-दर्शन के पावन क्षणों में किया। इस नाम को मैंने अपने अनुभव से नहीं गढ़ा है बल्कि यह मुझे देशबंधु से विरासत के रूप में प्राप्त हुआ है।
प्रमाद भी एक अनुभव है।
अनुभव ने मुझे यह भी सिखाया है कि सत्य के प्रत्येक पुजारी के लिए मौन का सेवन इष्ट है।
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कोई भी व्यक्ति जो कुछ अनुभव कर रहा है, उस समय वह इसके विशेषज्ञों से बड़ा विशेषज्ञ होता है।
आत्मनिरीक्षण खाने वाला दानव है। आपको इसे बहुत सारी सामग्री, बहुत सारे अनुभवों, अनेक लोगों, अनेक स्थानों, कई प्रेमों, कई रचनाओं का भक्षण कराना होगा, और तब यह आपको खाना बंद कर देता है।
अभावग्रस्त बचपन, मेहनत और चिंताओं से भरा विद्यार्थी-जीवन, बाद में मँझोली हैसियत की एक सरकारी नौकरी—अपने इन अनुभवों की कहानी सुनाना बेकार है क्योंकि इस तरह की कहानियाँ बहुत बासी हैं और बहुत दोहराई जा चुकी हैं।
किसी शिल्पकार्य, संगीत और किसी अन्य विषय में प्रवीणता तब तक नहीं होती और न हो सकती है, जबतक इंद्रियों की अनेक नित्य एवं सहज क्रियाओं में कुछ बदलाव न किया जाए।
निर्धन अनुभव करने में ही निर्धनता है।
आज मैं देश से बाहर हूँ, देश से दूर हूँ, परंतु मन सदा वहीं रहता है और इसमें मुझे कितना आनंद अनुभव होता है।
मन के तत्त्व, मूलतः, बाह्य जीवन-जगत् के दिए हुए तत्त्व हैं।
वास्तविक जीवनानुभूति, सौंदर्यानुभूति से भिन्न स्तर की और भिन्न श्रेणी की वस्तु है।
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दुःख सहन किए बिना मनुष्य कभी भी हृदय के आदर्श के साथ अभिन्नता अनुभव नहीं कर सकता और परीक्षा में पड़े बिना मनुष्य कभी भी निश्चित रूप से नहीं बता सकता कि उसके पास कितनी शक्ति है।
हिंदुस्तान में किसान राष्ट्र की आत्मा है। उस पर पड़ी निराशा की छाया को हटाया जाए तभी हिंदुस्तान का उद्धार हो सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम यह अनुभव करें कि किसान हमारा है और हम किसान के हैं।
कवि को अपने कार्य में अंतःकरण की तीन वृत्तियों से काम लेना पड़ता है—कल्पना, वासना और बुद्धि। इनमें से बुद्धि का स्थान बहुत गौण है। कल्पना और वासनात्मक अनुभूति ही प्रधान है।
सच्चा संवेदनशील कलाकार, अपने को बाह्म प्रभावों को ग्रहण करने के लिए छुट्टा छोड़ देता है, या उसे छोड़ देना चाहिए।
कामायनी में विचारों और अनुभवों के सामान्यीकरण का दर्शन है।
कला में जीवन की जो पुनर्रचना होती है, वह सारतः उस जीवन का प्रतिनिधित्व करती है कि जो जीवन इस जगत् में वस्तुतः जिया या भोगा जाता है—लेखक द्वारा तथा अन्यों द्वारा।
ज्यों-ज्यों सही ज्ञान बढ़ेगा त्यों-त्यों हम समझते जाएँगे कि हमें पसंद न आने वाला धर्म दूसरा आदमी पालता हो, तो भी उससे बैरभाव रखना हमारे लिए ठीक नहीं, हम उस पर ज़बरदस्ती न करें।
लेखक जितना अनुभवसम्पन्न, विवेकशील और वैविध्यपूर्ण प्रसंगों का भोक्ता रहा होगा, जीवन-विस्तारों के प्रति जितनी ही अधिक उत्सुकता, जिज्ञासा और सर्वाश्लेषी भावना उसमें रही होगी—उसमें उतनी ही अधिक उदात्तता, गंभीरता और विशालता आएगी।
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अपनी सौंदर्याभिरुचि के सेंसर्स के वशीभूत होना ठीक नहीं है।
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ईश्वर एक अनिर्वचनीय रहस्यमयी शक्ति है, जो सर्वत्र व्याप्त है; मैं उसे अनुभव करता हूँ, यद्यपि देखता नहीं हूँ।
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बाह्य का आभ्यंतरीकरण और आभ्यंतरीकृत का बाह्यीकरण—एक निरंतर चक्र है।
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संसार में संभव सभी अनुमानों और वर्णनों से किसी सड़क के प्राप्त होने वाले ज्ञान की तुलना में तुम्हें उस पर यात्रा करने से उस सड़क का अधिक ज्ञान प्राप्त होगा।
वास्तविक जीवनानुभव की जितनी संपन्नता निराला और प्रसाद में है (महादेवी में भी), उतनी उस हद तक; उस मात्रा में पंतजी के पल्ले नहीं पड़ी।
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