
पुरुष को स्त्री को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उसने उसे परम रहस्य कहकर पुरस्कृत किया; लेकिन वास्तव में घमंड के बहाने उसके अधिकार की उपेक्षा की गई।

पुरुषों और स्त्रियों को जिस समाज में वे रहते हैं, मुख्यतः उसकी राय और शिष्टाचार के अनुरूप शिक्षित होना चाहिए।

मुझे लगता है कि एक लड़की के लिए किसी ऐसे व्यक्ति से शादी करना आसान होगा जिसे वह नहीं जानती, क्योंकि जितना अधिक आप पुरुषों को जानोगे; उनसे प्यार करना उतना ही कठिन होगा।


पुरुष-संस्कृति पारस्परिकता के बिना स्त्रियों की भावनात्मक ताक़त पर पोषित होने वाली परजीवी संस्कृति थी और है।

स्त्रियों को तर्कसंगत प्राणी और स्वतंत्र नागरिक बनाएँ, और अगर पुरुष पतियों और पिता के कर्त्तव्यों की उपेक्षा नहीं करते हैं तो वे जल्द ही अच्छी पत्नियाँ बन जाएँगी।

वह एक युद्ध है जो स्त्री और पुरुष के बीच हमेशा चलता रहता है, जिसे बहुत लोग प्रेम कहकर पुकारते हैं।

मैं अब से पढ़ते हुए पुरुषों और बुनाई करती हुई स्त्रियों की तस्वीरें नहीं बनाऊँगा। मैं उन जीवित साथियों की तस्वीरें बनाऊँगा जो ज़िंदगी को जीना जानते हैं और उसे महसूस करते हैं, जो तकलीफ़ें सहते हैं और प्रेम करते हैं।

त्वचा, हड्डियों और भूरे रंग का पानी—इन तीनों के मेल में, पुरुष और स्त्री के बीच के सारे फ़र्क़ ख़त्म हो जाते हैं।

अगर एक स्त्री अकेली सोती है तो यह सभी पुरुषों के लिए शर्मनाक है। ईश्वर के पास बड़ा दिल है, लेकिन एक ऐसा भी पाप है जिसे वह माफ़ नहीं करता : अगर एक स्त्री किसी पुरुष को बिस्तर पर बुलाती है और वह नहीं जाता।

दाईं ओर के दरवाज़े से एक पुरुष एक घर में दाख़िल होता है, जहाँ पर एक फ़ैमिली काउंसिल की मीटिंग चल रही है, वह आख़िरी वक्ता के आख़िरी शब्द सुनता है, उसे अपनी स्मृति में रखता है और बाईं ओर के दरवाज़े से निकलकर विश्व को उनका निर्णय सुना देता है। शब्द-निर्णय सच है, लेकिन अपने आपमें शून्य भी। अगर वे आख़िरी सत्य की मदद से कोई निर्णय लेना चाहते तो उन्हें उस कमरे में हमेशा के लिए रहना पड़ता, उस फ़ैमिली काउंसिल का हिस्सा होना पड़ता और अंततः वे कोई निर्णय ले पाने में अक्षम हो जाते। सिर्फ़ एक पक्ष ही निर्णय दे सकता है, लेकिन एक पक्ष के रूप में वह निर्णय नहीं दे सकता। जिसका तात्पर्य यह है कि इस विश्व में न्याय की कोई संभावना नहीं है, सिर्फ़ यत्र-तत्र उसकी चमक है।

इतिहास ने जिन स्त्री-पुरुषों को मानवता की सेवा का अवसर देकर समादृत किया है, उनमें से अधिकांश को विपरीत परिस्थितियों का अनुभव हुआ है।

मेरे पास उसे यह बताने का साहस नहीं था कि महान् प्रेम-कहानियाँ पुरुषों और स्त्रियों के बीच दर्द और अलगाव के बारे में बताती हैं।
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स्त्री-हृदय के मर्मकोष को जाने बिना ही बहुत कुछ कहा गया है।

बुद्धि से धन प्राप्त होता है और मूर्खता दरिद्रता का कारण है—ऐसा कोई नियम नहीं है। संसार चक्र के वृत्तांत को केवल विद्वान पुरुष ही जानते हैं, दूसरे लोग नहीं।

पुरुष को मनुष्य के रूप में और स्त्री को स्त्री के रूप में परिभाषित किया जाता है—जब भी वह मनुष्य की तरह व्यवहार करती है, उस पर पुरुष की नक़ल करने का आरोप लगाया जाता है।

प्यार नहीं मरता है, पुरुष और स्त्रियाँ मरा करते हैं।

पुरुष दुश्मन नहीं है, बल्कि सहचर पीड़ित है। असली शत्रु स्त्रियों द्वारा ख़ुद की आलोचना करना है।

जो स्त्री सोचती है कि वह बुद्धिमान है, वह पुरुषों से समान अधिकार की माँग करती है। बुद्धिमान स्त्री ऐसा नहीं करती है।

जब बुराई को अच्छाई के साथ प्रतिस्पर्धा करने दी जाती है, तो बुराई में भावात्मक जनवादी गुहार होती है जो तब तक जीतती रहती है जब तक कि अच्छे पुरुष और स्त्रियाँ दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़ एक अग्र-दल के रूप में खड़े न हो जाएँ।

अगर मन कोलाहल है, तो अवचेतन मौन रंगमंच है।

हम सभी—पुरुषों और स्त्रियों—के लिए मुख्य समस्या सीखना नहीं है, बल्कि सीखे हुए को भूल जाना है।

स्त्रियों के बारे में सभी झगड़ों के पीछे असली कारण पुरुष का ख़ुद के प्रति वचनबद्ध न हो पाना है।

पुरुषों द्वारा स्त्रियों की तरफ़ छिटपुट ध्यान देकर उनको व्यवस्थित रूप से अपमानित किया जाता है, जबकि वास्तव में, ऐसा करके पुरुष अपनी श्रेष्ठता का समर्थन कर रहे होते हैं।

…वह (पुरुष) अपनी क़ब्र में छला हुआ महसूस करते हुए जाएगा, कभी यह नहीं समझ पाएगा कि एक स्त्री और दूसरी स्त्री के बीच बहुत अंतर नहीं है, और फ़र्क़ सिर्फ़ प्यार करने से पड़ता है।

लोग अब भी ताक़तवर पुरुष को जन्मजात नेता और ताक़तवर स्त्री को विसंगति मानते हैं।

यदि स्त्रियों के साथ भेदभाव केवल सतही शारीरिक विशेषताओं के कारण किया जाता है तो वास्तव में पुरुष जैसे हैं, वे उससे कहीं अधिक विशिष्ट और अचल दिखाई देते हैं।

पुरुष डरते हैं कि स्त्रियाँ उनकी हँसी उड़ाएँगी। स्त्रियाँ डरती हैं कि पुरुष उन्हें मार डालेंगे।

अगर स्त्री का मुद्दा इतना बेतुका है, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरुष के अहंकार ने इसे चर्चा का विषय बना लिया है।

किसी स्त्री—और पुरुष के लिए भी—ख़ुद को तलाशने और एक व्यक्ति के रूप में जानने का एकमात्र साधन, अपना मौलिक कार्य है।

स्त्रीवादी वह है जो स्त्रियों और पुरुषों के बीच समानता और पूर्ण मानवता को स्वीकार करे।

जब आपका मन अँधेरे में खो जाता है, तब आपको पता होता है कि वे स्थान विदेशी भूमि की तरह लग सकते हैं।

बंधनमुक्त स्त्रियों ने जान लिया था कि पुरुषों की ईमानदारी, उदारता और सौहार्द झूठ था।

स्त्रियाँ हमेशा कहती रहती हैं, ‘‘हम वह सब कुछ कर सकती हैं, जो पुरुष कर सकते हैं।’’ लेकिन पुरुषों को कहना चाहिए, ‘‘हम वह सब कुछ कर सकते हैं, जो स्त्रियाँ कर सकती हैं।’’

स्त्री के रुतबे को उसके द्वारा किसी पुरुष को आकर्षित करने और फुसलाने की क्षमता से नहीं मापा जाना चाहिए।

मुझे लगता है कि वे पुरुष जो स्त्रियों के प्रति व्यक्तिगत रूप से सबसे अधिक विनम्र हैं, जो उन्हें देवदूत कहते हैं, वे गुप्त रूप से स्त्रियों का सबसे अधिक तिरस्कार करते हैं।

जिसके पास धन होता है, उसी के बहुत से मित्र होते हैं। जिसके पास धन है, उसी के भाई-बंधु हैं। संसार में जिसके पास धन है, वही पुरुष कहलाता है। और, जिसके पास धन हैं, वही पंडित माना जाता है।

राजन्! दूसरों की निंदा करना या चुग़ली खाना दुष्टों का स्वभाव ही होता है। श्रेष्ठ पुरुष तो सज्जनों के समीप दूसरों के गुणों का ही वर्णन करते हैं।


सज्जन पुरुष धर्म के लिए ही प्रयत्नपूर्वक धन-संग्रह करते हैं।

नीच पुरुष लाभ के उद्देश्य से प्रेम करते हैं। मनस्वी पुरुष मान के अभिलाषी होते हैं।

संसार में इससे बढ़कर हँसी की दूसरी बात नहीं हो सकती कि जो दुर्जन हैं, वे स्वयं ही सज्जन पुरुषों को 'दुर्जन' कहते हैं।

मैं मृत पुरुषों की पूजा उनकी ताक़त के कारण किया करती थी, मैं यह भूल गई थी कि मैं मज़बूत थी।

हम वे पुरुष बन रही हैं, जिनसे हम शादी करना चाहती थीं।


अर्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक नहीं है कि नारी और नर जब तक अलग हैं तब तक दोनों अधूरे हैं, बल्कि इस बात का भी कि जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, वह अधूरा है एवं जिस नारी में पुरुषत्व नहीं, वह भी अपूर्ण है।

सभी पुरुष स्वार्थी, क्रूर और अविवेकी हैं—और मैं चाहती हूँ कि मुझे उनमें से कोई मिल जाए।

मैंने ऐसे आदमी देखे हैं, जिनमें किसी ने अपनी आत्मा कुत्ते में रख दी है, किसी ने सूअर में। अब तो जानवरों ने भी यह विद्या सीख ली है और कुछ कुत्ते और सूअर अपनी आत्मा किसी आदमी में रख देते हैं।

श्रेष्ठ पुरुष को चाहिए कि कोई पापी हो या पुण्यात्मा अथवा वे वध के योग्य अपराध करने वाले ही क्यों न हों, उन सब पर दया करें, क्योंकि ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जिससे कभी अपराध होता ही न हो।
