छाया पर उद्धरण

छाया, छाँव, परछाई विषयक

कविताओं का चयन।

तुम जो हो तुम उसे नहीं देखते, तुम उसे देखते हो जो तुम्हारी परछाईं है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर

पतन, उत्थान की; मृत्यु, जीवन की एक मात्र सखा-छाया है।

श्रीनरेश मेहता

संबंधित विषय

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए