साहित्य और संस्कृति की घड़ी
एक It doesn’t take much to console us, because it doesn’t take much to distress us. The Misery of Man without God (B. Pascal, Pensées) मैं पहली बार बर्फ़ से ढँके पहाड़ देख रहा था—वह कुछ और
यदि सरदार पटेल को भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) का संरक्षक माना जाए, तो राजनयिक दल के संदर्भ में वही उपाधि नेहरू पर भी लागू होती है। तथ्य यह है कि जहाँ IAS के पहले बैच की भर्ती स्वतंत्रता से पहले ही हो
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एम.ए. में पढ़ने वाले एक विद्यार्थी मेरे मित्र बन गए। मैं उनसे उम्र में छोटा था, लेकिन काव्य हमारे मध्य की सारी सीमाओं पर हावी था। हमारी अच्छी दोस्ती हो गई। उनका नाम वीरेंद्र
कुछ सवाल जो मांसाहारी, मुझसे या/और वीगनवादियों से लगातार पूछते हैं—इसलिए नहीं कि उनको उत्सुकता है, बल्कि सिर्फ़ इसलिए कि वो मुझे अपमानित कर सकें। वो नहीं जानते कि इस दौरान वो पूरी तरह नंगे हो जाते है
लिखने वाले अपनी उँगलियों का हर क़लम के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते। उनके भीतर एक आदर्श क़लम की कल्पना होती है। हर क़लम का अपना स्वभाव होता है। अपनी बुरी आदतें और कुछ दुर्लभ ख़ूबियाँ भी। मैंने ह
कहते हैं इवोल्यूशन के क्रम में, हमारे पूर्वज सेपियंस ने अफ़्रीका से पदयात्रा शुरू की थी और क्रमशः फैलते गए—अरब, तुर्की, बाल्कन, काकेशस, एशिया माइनर, भारत, चीन; और एक दिन हर उस ज़मीन पर उनकी चरण पादुक
16 जून 2025
लेख से पहले चंद शब्द कुछ दिन पहले अपने पुराने काग़ज़ात उलट-पलट रही थी कि एक विलक्षण लेख हाथ आया। पंडित वाहिद काज़मी का लिखा—हेडलाइन प्लस, जुलाई 2003 में प्रकाशित। शीर्षक पढ़कर ही झुरझुरी आ गई। एक स
15 जून 2025
• अवसर कोई भी हो सबसे केंद्रीय महत्व केक का होता है। वह बिल्कुल बीचोबीच होता हुआ, फूला हुआ, चमकता हुआ, अकड़ा हुआ, आकर्षित करता हुआ रखा होता है। वह एक विचारहीन प्रविष्टि के रूप में हर जगह आवश्यक बन
‘बेवफ़ा सोनम बनी क़ातिल’—यह नब्बे के दशक में किसी पल्प साहित्य के बेस्टसेलर का शीर्षक हो सकता था। रेलवे स्टेशन के बुक स्टाल्स से लेकर ‘सरस सलिल’ के कॉलमों में इसकी धूम मची होती। इसका प्रीक्वल और सीक्वल
मैं वर्ष 1977 में झुंझुनू से जयपुर आ गया था—राजस्थान विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए. करने के लिए। वह अक्टूबर का महीना होगा, जब रामनिवास बाग़ स्थित रवींद्र मंच पर राजस्थान दिवस समारोह चल रहा