साहित्य और संस्कृति की घड़ी
09 जुलाई 2025
क्या तलाश है, कुछ पता नहीं* वह पीता रहा अपनी ज़िंदगी को एक सिगरेट की तरह तापता रहा अपनी उम्र को एक अलाव की तरह और हम ढूँढ़ते हैं उस राख के क़तरे तलाशते हैं उसके बेचैन होंठों की थरथराहट उसकी ख़
सड़क पर भीख माँगते किसी व्यक्ति से कभी पूछियेगा कि गाली सुनने के बाद उसे कैसा लगता है? फिर यही ख़ुद से पूछियेगा। दोनों सवा
“स्त्रियों की बात सुनने का समय किसके पास है? स्त्रियाँ भी स्त्रियों की बात नहीं सुनना चाहतीं—ख़ासकर तब, जब वह उनके दुख-दर
इलाहाबाद उस दिन मेघों से आच्छादित रहा। कुछ देर तक मूसलाधार फिर रुक-रुक कर बारिश होती रही। मैं अपने कमरे में बैठा अमरूद क
साहित्य सम्मेलन का छोटा-सा हॉल खचाखच भरा हुआ था। मंच पर हिंदी साहित्य के दो दिग्गज विराजमान थे—सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
तीसरी कड़ी से आगे... भाषा और विचार भाषा और विचार के संबंध में फिलॉसफी में एक पुराना और गहरा सवाल है। क्या हम भाषा
दूसरी कड़ी से आगे... नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) को आप एक मशीन के लिए भाषा में महा
पहली कड़ी से आगे... गणना बनाम अंतर्ज्ञान साल 1997 में शतरंज की दुनिया ने एक ऐतिहासिक पल देखा, जब IBM के सुपरकंप्यू
दुनियाभर के टीनएजर रूबिक्स क्यूब नाम की एक नई रंगीन पहेली में उलझे थे। डार्थ वेडर (स्टार वार्स फ़्रैंचाइज़ी में एक काल्प
मिरा वक़्त मुझ से बिछड़ गया मिरा रंग-रूप बिगड़ गया जो ख़िज़ाँ से बाग़ उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ मुज़्तर ख
हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली
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