साहित्य और संस्कृति की घड़ी
यह इमला और सुलेख लेखन का दौर था। इंद्रियों को चौकन्ना रखने और हिंदी को ख़ूबसूरत तरीक़े से बरतने पर ज़ोर रहता था। खुरदुरे काग़ज़ वाले कितने रफ़ रजिस्टर भरे गए, गिनती ही नहीं। ‘समझ ही नहीं आ रहा क्या बो
मेरे हाथ में संडे का अख़बार है। मेरे बाजू के स्टूल पर सुबह की पहली चाय का कप। स्मिता भी चाय पी रही है। बरसों पहले फ़्रेम करवायी गई रवींद्रनाथ ठाकुर की यह तस्वीर किताबों की रैक के नीचे टंगी है। रवी बा
भोजपुरी में न जाने कितनी लोककथाएँ हैं। कुछ तो लोक में ख़ूब प्रचलित हैं और बहुतेरी कथाएँ लगभग विलुप्ति के कगार पर हैं। न जाने कितनी विलुप्त हो गई हैं। और इन सभी लोक कथाओं को एक जगह करना बहुत मुश्किल क
11 दिसम्बर 2025
मेरे नाना लेखक बनना चाहते थे। वह दसवीं तक पढ़े और फिर बैलों की पूँछ उमेठने लगे। उन्होंने एक उपन्यास लिखा, जिसकी कहानी अब उन्हें भी याद नहीं। हमने मिलकर उसे खोजना चाहा, वह नहीं मिला। पता नहीं वह किसी
दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे (1938–2009) आधुनिक मराठी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, अनुवादक, चित्रकार और फ़िल्मकार थे; जिन्होंने मराठी और अँग्रेज़ी—दोनों भाषाओं में अपनी रचनात्मकता का विस्तार किया। बड़ौदा
दुनिया को हिटलर के ‘होलोकास्ट’ के लिए नहीं, बीथोवन की ‘सिम्फ़नी’ के लिए याद रखा जाना चाहिए। हिटलर की नफ़रत से और उसके द्वारा की गईं यहूदियों और उनके बच्चों की हत्याओं के बाद भी यह दुनिया ख़त्म नहीं ह
उद्भ्रांत हिंदी साहित्य की उस पीढ़ी के प्रतिनिधि कवि हैं, जिन्होंने ‘नई कविता’ के बाद सातवें दशक में छंद में हाथ आज़माते हुए, कविता के अन्य आंदोलनों के बीच अपनी जगह बनाई—यद्यपि बाद में उन्होंने अपने स
एक मित्र और उनके मात्र ग्यारह साल के बेटे के बीच महीनों का अबोला पसरा है। अबोला अचानक नहीं आया है। कई-कई टकराव और असहमतियों के बाद यह समय आया है। मित्र हैरान हैं। ऐसा तो कहाँ होता था! उस उम्र में तो
धर्मेंद्र के निधन पर एक व्यापक सामूहिक क्षति का एहसास हमें न्यूज़ चैनल्स पर दिखाई गईं ख़बरों और सोशल मीडिया पर दी गईं श्रद्धांजलियों से हुआ। धर्मेंद्र एक बड़े जनसमूह के नायक थे, जिन्होंने लंबे समय तक
26 नवंबर, 2025 को नई दिल्ली में शास्त्रीय संगीत गुरु पंडित अमरनाथ द्वारा रचित ‘हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का शब्दकोश’ के हिंदी संस्करण का लोकार्पण इंडिया इंटरनेशनल सेंटर-एनेक्स में हुआ। इस अवसर पर