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आत्मा पर उद्धरण

आत्मा या आत्मन् भारतीय

दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।

मनुष्य की आत्मा ही राजनीति है, अर्थशास्त्र है, शिक्षा है और विज्ञान है, इसलिए अंतरात्मा को सुसंस्कृत बनाना ही सबसे अधिक आवश्यक है। यदि हम अंतरात्मा को सुशिक्षित बना लें तो राजनीति, अर्थशास्त्र, शिक्षा और विज्ञान के प्रश्न स्वयं ही हल हो जाएँगे।

जूली कागावा

स्त्री को पाकर, स्त्री को समझकर, उसे अपनी बाँहों और आत्मा में महसूस करके ही प्रकृति की गति और प्रकृति की सुंदरता को और प्रकृति के रहस्य को लिया, भोगा और समझा जा सकता है।

राजकमल चौधरी

प्रकृति सिर्फ़ वह नहीं जो आँखों को नज़र आती है… आत्मा की अंदरूनी तस्वीर में भी यह मौजूद होती है।

एडवर्ड मुंक

मुझे लगता है कि व्यक्ति ईश्वर से आता है और ईश्वर के पास वापस जाता है, क्योंकि शरीर की कल्पना की जाती है और जन्म होता है, यह बढ़ता है और घटता है, यह मर जाता है और ग़ायब हो जाता है; लेकिन जीवात्मा शरीर और आत्मा का मेल है, जिस तरह एक अच्छी तस्वीर में आकार और विचार का अदृश्य संगम होता है।

यून फ़ुस्से

मेरी आत्मा को छोड़कर, हर चीज़, धूल का हर कण, पानी की हर बूँद, भले ही अलग-अलग रूपों में हो, अनंत काल तक अस्तित्व में रहती है?

अमोस ओज़

हम इन मृतात्माओं को अपने दिल में किस तरह रखते हैं। हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर अपना क़ब्रिस्तान रखता है।

गुस्ताव फ़्लॉबेयर

जो शोर की जगह संगीत, आनंद की जगह ख़ुशी, आत्मा की जगह सोना, रचनात्मक कार्य की जगह व्यापार, और जुनून की जगह मूर्खता चाहता है, उसे इस साधारण दुनिया में कोई घर नहीं मिलता।

हरमन हेस

आत्मा के लिए अच्छा अंतःकरण वैसा ही है जैसा शरीर के लिए स्वास्थ्य।

थॉमस एडिसन

ज़रूरी चीज़ यह है कि जब तलवार तुम्हारी आत्मा के टुकड़े करे, मन को शांत बनाए रखा जाए, रक्तस्राव नहीं होने दिया जाए, तलवार की ठंडक को पत्थर की-सी शीतलता से स्वीकार किया जाए। इस तरह के प्रहार से, प्रहार के बाद तुम अक्षर बन जाओगे।

फ्रांत्स काफ़्का

समाज ने स्त्रीमर्यादा का जो मूल्य निश्चित कर दिया है, केवल वही उसकी गुरुता का मापदंड नहीं। स्त्री की आत्मा में उसकी मर्यादा की जो सीमा अंकित रहती है, वह समाज के मूल्य से बहुत अधिक गुरु और निश्चित है, इसी से संसार भर का समर्थन पाकर जीवन का सौदा करने वाली नारी के हृदय में भी सतीत्व जीवित रह सकता है और समाज भर के निषेध से घिर कर धर्म का व्यवसाय करने वाली सती की साँसें भी तिल-तिल करके असती के निर्माण में लगी रह सकती हैं।

महादेवी वर्मा

अपने देश के प्रति मेरा जो प्रेम है, उसके कुछ अंश में मैं अपने जन्म के गाँव को प्यार करता हूँ। और मैं अपने देश को प्यार करता हूँ पृथ्वी— जो सारी की सारी मेरा देश है—के प्रति अपने प्रेम के एक अंश में। और मैं पृथ्वी को प्यार करता हूँ अपने सर्वस्व से, क्योंकि वह मानवता का, ईश्वर का, प्रत्यक्ष आत्मा का निवास-स्थान है।

खलील जिब्रान

जिस तरह लियोनार्डो दा विंसी ने इंसानी शारीरिक रचना विज्ञान का अध्ययन किया और मुर्दा शरीरों को क़रीब से समझा, उसी तरह मैं आत्माओं के मनोभावों को पढ़ने की कोशिश करता हूँ।

एडवर्ड मुंक

आत्मा की हत्या करके अगर स्वर्ग भी मिले, तो वह नरक है।

प्रेमचंद

…आत्मा एक रास्ता खोज सकती है, जो मुझे लगता है कि प्रेम है—स्वयं से स्वयं का पलायन।

सामंथा हार्वे

सबसे महत्त्वपूर्ण बात आत्मा को ऊपर रखना है।

गुस्ताव फ़्लॉबेयर

अगर उसके पास कभी आत्मा जैसी कोई चीज़ होती तो वह उसके टूटने का क्षण होता।

हान कांग

अगर आप अपनी फ़ुरसत को खो रहे हैं, तो ख़बरदार! हो सकता है कि आप अपनी आत्मा को खो रहे हों।

वर्जीनिया वुल्फ़

हम अन्य राज्यों, अन्य ज़िंदगियों, अन्य आत्माओं की तलाश में सफ़र करते हैं, हम में से कुछ लोग हमेशा भटकते रहते हैं।

अनाइस नीन

आत्मा के पास शरीर नहीं होता, तब वह हमें कैसे देख सकती है?

हान कांग

प्रेम—सिर्फ़ आत्मा को ‘लाभ’ पहुँचाता है।

एरिक फ़्रॉम

विचारों की आज़ादी आत्मा का जोश है।

वाल्तेयर

आपकी आत्मा समस्त संसार है।

हरमन हेस

यहाँ तक कि भेड़िये के दिल में दो, और दो से अधिक आत्माएँ होती हैं।

हरमन हेस
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हमेशा मेरे साथ रहो—चाहे कोई भी रूप धारण करो—मुझे पागल बना दो! मुझे ऐसे अधर में मत छोड़ो जहाँ मैं तुम्हें ढूँढ़ सकूँ! हे ईश्वर! कैसे कहूँ! मैं अपने जीवन के बिना नहीं रह सकती! मैं अपनी आत्मा के बिना नहीं रह सकती!

एमिली ब्रॉण्टे

हर कोई अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में आत्मा का हत्यारा है।

रमण महर्षि

हम दिव्य आत्मा के प्रवक्ता होंगे।

वर्जीनिया वुल्फ़

दोस्ती आत्मा की बात है। यह एक ऐसी चीज़ है जिसे हम महसूस करते हैं। यह किसी चीज़ के बदले में नहीं है।

ग्राहम ग्रीन

जब भी हम ऐसा कुछ करते हैं जो हमारी इच्छा या आत्मा से जुड़ा हुआ नहीं होता है— वह कष्ट का कारण बनता है।

अनाइस नीन

धन के बिना संसार व्यर्थ है परंतु अत्यधिक धन भी व्यर्थ है, जैसे अन्न के बिना तन नहीं रहता, परंतु अत्यधिक भोजन करने से प्राण चले जाते हैं।

दयाराम

मैं बाहर-भीतर विद्यमान, प्राचीनता से रहित तथा जन्म-मृत्यु और वृद्धत्व से रहित आत्मा हूँ—ऐसा जो जानता है वह किसी से क्यों डर सकता है।

आदि शंकराचार्य

आत्मा को तो शस्त्र काट सकते हैं, आग जला सकती है। उसी प्रकार तो इसको पानी गला सकता है और वायु सुखा सकता है। यह आत्मा कभी कटने वाला, जलने वाला, भीगने वाला और सूखने वाला तथा नित्य सर्वव्यापी, स्थिर, अचल एवं सनातन है।

वेदव्यास

मैं जन्म लेता हूँ, बड़ा होता हूँ, नष्ट होता हूँ। प्रकृति से उत्पन्न सभी धर्म देह के कहे जाते हैं। कर्तृत्व आदि अहंकार के होते हैं। चिन्मय आत्मा के नहीं। मैं स्वयं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

धर्मों की आत्मा एक है। परंतु वह अनेक रूपों में प्रकट हुई है। धर्म में रूप अनंत काल तक रहेंगे।

महात्मा गांधी

और न्याय-प्रिय न्यायाधीशों!

तुम उसे क्या सज़ा दोगे जो शरीर से ईमानदार है लेकिन मन से चोर है?

और तुम उस व्यक्ति को क्या दंड दोगे जो देह की हत्या करता है लेकिन जिसकी अपनी आत्मा का हनन किया गया है?

और उस पर तुम मुक़दमा कैसे चलाओगे जो आचरण में धोखेबाज़ और ज़ालिम है लेकिन जो ख़ुद सत्रस्त और अत्याचार-पीड़ित है?

और क्या उन्हें कैसे सज़ा दोगे जिनको पश्चात्ताप पहले ही उनके दुष्कृत्यों से अधिक है?

और क्या यह पश्चात्ताप ही उस क़ानून का दिया हुआ न्याय नहीं जिसका पालन करने का प्रयास तुम भी करते रहते हो?

खलील जिब्रान

तुम अपनी पत्नी की आबरू की रक्षा करना, और उसके मालिक मत बन बैठना, उसके सच्चे मित्र बनना। तुम उसका शरीर और आत्मा वैसे ही पवित्र मानना, जैसे कि वह तुम्हारा मानेगी।

महात्मा गांधी

जिनसे कोई भयभीत नहीं होता और जो स्वयं भी किसी से भयभीत नहीं होते तथा जिनकी दृष्टि में ये सारा जगत अपनी आत्मा के ही तुल्य है, वे दुस्तर संकटों से तर जाते हैं।

वेदव्यास

यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से परमात्मा का भक्त हुआ, तो वह साधु ही मानने योग्य है। क्योंकि अब वह निश्चय वाला है। वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और शाश्वत शांति को प्राप्त करता है।

वेदव्यास

आनंदमय आत्मा की उपलब्धि विकल्पात्मक विचारों और तर्कों से नहीं हो सकती।

जयशंकर प्रसाद

मैं शरीर में रहकर भी शरीर-मुक्त, और समाज में रहकर भी समाज-मुक्त हूँ।

राजकमल चौधरी

चेतना जब आत्मा में ही विश्रांति पा जाए, वही पूर्ण अहंभाव है।

जयशंकर प्रसाद

अहिंसा कायरता के आवरण में पलने वाला क्लैब्य नहीं है। वह प्राण-विसर्जन की तैयारी में सतत जागरूक पौरुष है।

मुनि नथमल

यदि पापी अपने पाप का फल एकांत में या अपनी आत्मा ही में भोग कर चला जाता है तो वह अपने जीवन की सामाजिक उपयोगिता की एकमात्र संभावना को भी नष्ट कर देता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

अपनी आत्मा को जानो, अपने वास्तविक आत्मा को ईश्वर जानो और उसे अन्य सब के आत्मा के साथ एक जानो।

श्री अरविंद

जो अपने भीतर दिव्य ज्योति जगाने को तड़प रहा हो उसे प्रार्थना का आसरा लेना चाहिए। परंतु प्रार्थना शब्दों या कानों का व्यायाम मात्र नहीं है, ख़ाली मंत्र जाप नहीं है। आप कितना ही राम नाम जपिए, अगर उससे आत्मा में भावसंचार नहीं होता तो वह व्यर्थ है। प्रार्थना में शब्दहीन, हृदय, हृदयहीन शब्दों से अच्छा होता है। प्रार्थना स्पष्ट रूप से आत्मा की व्याकुलता की प्रतिक्रिया होनी चाहिए।

महात्मा गांधी

जिस प्रकार नर्तकी रंगशाला के दर्शकों को नृत्य दिखाकर नृत्य से निवृत्त हो जाती है, उसी प्रकार प्रकृति भी पुरुष को आत्मा का साक्षात्कार कराके निवृत्त हो जाती है।

ईश्वर कृष्ण

अहिंसा सत्य का प्राण है। उसके बिना मनुष्य पशु है।

महात्मा गांधी

यह शरीर मिट्टी का बना हुआ है, मिट्टी के पुतले की तरह टूट जाने वाला है। लाठियों से सिर के टुकड़े हो जाएँगे, मगर दिल के टुकड़े नहीं होंगे। आत्मा को गाली या लाठी नहीं मार सकती। दिल के भीतर की असली चीज़ को— आत्मा को कोई हथियार नहीं छू सकता।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

ज्ञानदेव कहते हैं- नामरूप रहित तेरा आत्मत्व सत्य है। इसी आत्मानंद-युक्त जीवन से सुखी हो जाओ।

ज्ञानेश्वर

परमात्मा में मन लगा, परमात्मा का भक्त बन, परमात्मा के लिए यजन कर, परमात्मा को नमस्कार कर। इस तरह परमात्मा में परायण होकर परमात्मा के साथ आत्मा का योग करने से तू परमात्मा को प्राप्त कर लेगा।

वेदव्यास

कोई ही इस आत्मा को आश्चर्यवत् देखता है और वैसे ही दूसरा कोई ही आश्चर्यवत् (इसके तत्त्व को) कहता है और दूसरा (कोई ही) इस आत्मा को आश्चर्यवत् सुनता है। और कोई सुनकर भी इस आत्मा को नहीं जानता।

वेदव्यास