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मनुष्यता पर उद्धरण

अपने में विश्वास और जिसको दुश्मन मानें उसका उद्धार करने में हमारी रक्षा होती है।

महात्मा गांधी

तुम मँझौली हैसियत के मनुष्य हो और मनुष्यता के कीचड़ में फँस गये हो। तुम्हारे चारो ओर कीचड़-ही-कीचड़ है।

श्रीलाल शुक्ल

जो अल्पमत में हैं उनकी हमें ज़्यादा दरकार होनी चाहिए, यही तालीम मैं अबतक देता आया हूँ।

महात्मा गांधी

हममें से हर एक को भंगी बनकर सेवा करनी चाहिए। जो मनुष्य पहले भंगी नहीं बनता, वह ज़िंदा रह नहीं सकता है और रहने का उसे हक़ है।

महात्मा गांधी

मानवीय संवेदना के मूल स्वभाव को ठीक से समझे बिना सब कुछ को ख़ारिज कर देने का औद्धत्य कभी फलप्रसू नहीं होता।

कृष्ण बिहारी मिश्र

कला की कोई भी क्रिया, मनुष्य और जीवन-धारण के लिए अनिवार्य नहीं है। इसलिए कला ही मनुष्य को वह क्षेत्र प्रदान करती है, जिसमें वह अपने व्यक्तित्व का सच्चा विकास कर सकता है।

रामधारी सिंह दिनकर
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मैं उनमें से नहीं हूँ जो नाम को केवल नाम समझते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

सत्पुरुषों की महानता उनके अंतःकरण में होती है, कि लोगों की प्रशंसा में।

थॉमस ए केम्पिस

हम पैदा हुए हैं सेवा करने के लिए। हम तय करें कि हम अपने मुल्क को ऊँचा ले जाएँगे, गिराएँगे नहीं।

महात्मा गांधी

अपने देश के प्रति मेरा जो प्रेम है, उसके कुछ अंश में मैं अपने जन्म के गाँव को प्यार करता हूँ। और मैं अपने देश को प्यार करता हूँ पृथ्वी— जो सारी की सारी मेरा देश है—के प्रति अपने प्रेम के एक अंश में। और मैं पृथ्वी को प्यार करता हूँ अपने सर्वस्व से, क्योंकि वह मानवता का, ईश्वर का, प्रत्यक्ष आत्मा का निवास-स्थान है।

ख़लील जिब्रान

मानव को अपने राष्ट्र की सेवा के ऊपर किसी विश्व-भावना आदर्श को पहला स्थान नहीं देना चाहिए।... देशभक्ति तो मानवता के लक्ष्य विश्वबंधुत्व का ही एक पक्ष है।

श्री अरविंद

हम सहज ही भूल जाते हैं कि जाति-निर्णय विज्ञान में होता है, जाति का विवरण इतिहास में होता है। साहित्य में जाति-विचार नहीं होता, वहाँ पर और सब-कुछ भूलकर व्यक्ति की प्रधानता स्वीकार कर लेनी होगी।

रवींद्रनाथ टैगोर

मृत्यु वास्तव में मानवता के लिए एक महान वरदान है, इसके बिना कोई वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती।

अल्फ़्रेड एडलर

जो आदमी अपना धर्म पालन करता है, धर्म ही उसका बदला है।

महात्मा गांधी

हम दुनिया में किसी को दुश्मन बनाना नहीं चाहते और हम किसी के दुश्मन बनना चाहते हैं—यह मेरी व्याख्या का स्वराज्य है।

महात्मा गांधी

हम मानवता से प्यार नहीं कर सकते हैं। हम केवल मानव से प्यार कर सकते हैं।

ग्राहम ग्रीन

टेढ़े रास्तें से सीधी बातको नहीं पहुँचा जा सकता।

महात्मा गांधी

मुझे लगता है कि मानवता भूल गई है—यह ग्रह आनंद के लिए है।

एलिस वॉकर

ऐक्य-बोध का उपदेश जिस गंभीरता से उपनिषदों में दिया गया है, वैसा किसी दूसरे देश के शास्त्रों में नहीं मिलता।

रवींद्रनाथ टैगोर

अच्छा भोजन करने के बाद मैं अक्सर मानवतावादी हो जाता हूँ।

हरिशंकर परसाई

हर शिशु इस संदेश के साथ जन्मता है कि इश्वर अभी तक मनुष्यों के कारण शर्मसार नहीं है।

रवींद्रनाथ टैगोर

दूसरों के लिए जीना आसान नहीं। इसमें बहुत कष्ट झेलने पड़ते हैं लेकिन स्वेच्छा से हम जो कष्ट उठाते हैं, वे भी मधुर लगते हैं।

अमृतलाल वेगड़

हिंसा से मुक्त हो जाने का अर्थ है उस प्रत्येक चीज़ से मुक्त हो जाना, जिसे एक मनुष्य को साँप रखा है, जैसे—विश्वास, धार्मिक मत, कर्मकाँड तथा इस तरह की मूढ़ताएँ : मेरा देश, मेरा ईश्वर, तुम्हारा ईश्वर, मेरा मत, तुम्हारा मत, मेरा आदर्श, तुम्हारा आदर्श।

जे. कृष्णमूर्ति

जो ज़ालिम है उसको यह हक़ नहीं कि दूसरे ज़ालिम को सज़ा दे।

महात्मा गांधी

जो मानवीय जगत् की मानवता की आधारशिला है, जिस पर मानवता टिकी है, उसे धर्म कहते हैं।

किशोरीदास वाजपेयी

तंग मज़हबों में सीमित हो जाओ। राष्ट्रीयता को स्थान दो। भ्रातृत्व, मानवता तथा आध्यात्मिकता को स्थान दो। द्वैत-भावना की मलिन दृष्टि को त्याग दो- तुम भी रहो, मैं भी रहूँ।

किशनचंद 'बेवस'

जिसके छिलता है, उसी के चुनमुनाता है। लोग अपना ही दुःख-दर्द ढो लें, यही बहुत है। दूसरे का बोझा कौन उठा सकता? अब तो वही है भैया, कि तुम अपना दाद उधर से खुजलाओ, हम अपना इधर से खुजलाएँ।

श्रीलाल शुक्ल

जो लोग छोटे हैं उनकी दृष्टि केवल इसी बात पर पड़ती है कि कामना के आघात से मनुष्य बार-बार नीचे गिरता है। केवल महापुरुष ही यह बात देख सकते हैं कि सत्य के आकर्षण से मनुष्य पाशविकता से मनुष्यत्व की ओर अग्रसर हो रहा है। इसलिए वही मनुष्य को बार-बार निर्भयता से क्षमा कर सकते हैं, वही मनुष्य के लिए आशा कर सकते हैं, वही मनुष्य को सबसे बड़ा सत्य सुना सकते हैं, वही मनुष्य को बड़े-से-बड़ा अधिकार देने में नहीं हिचकते।

रवींद्रनाथ टैगोर

सभी के लिए एक क़ानून है अर्थात् वह क़ानून जो सभी क़ानूनों का शासक है, हमारे विधाता का क़ानून, मानवता, न्याय, समता का क़ानून, प्रकृति का क़ानून, राष्ट्रों का कानून।

एडमंड बर्क

हिंदू-मुसलमान जानवर बन जाते हैं पर उन्हें याद रखना चाहिए कि वे झुकी हुई कमरवाले जानवर नहीं हैं, सीधी कमरवाले मनुष्य हैं। इसलिए घोर विपत्ति में भी उन्हें धर्म और श्रद्धा नहीं छोड़नी चाहिए।

महात्मा गांधी

मेरी हिंदू धर्मवृत्ति मुझे सिखाती है कि थोड़े या बहुत अंशों में सभी धर्म सच्चे हैं परंतु सभी धर्म अपूर्ण हैं, क्योंकि वे अपूर्ण मानव-माध्यम के द्वारा हम तक पहुँचे है। सच्चा शु़द्धि का आंदोलन यह होना चाहिए कि हम सब अपने-अपने धर्म में रहकर पूर्णता प्राप्त करने का प्रयत्न करें।

महात्मा गांधी

धर्म-कर्म के द्वारा मनुष्य के प्रति श्रद्धा खो देने की जो आशंका है, उसी से हमें डरना चाहिए।

रवींद्रनाथ टैगोर

मनुष्यत्व में एक भारी द्वंद्व और है, जिसे कहा जा सकता है—प्रकृति और आत्मा का द्वंद्व।

रवींद्रनाथ टैगोर

एक समय था जब हमारे दार्शनिक कवि; भारत के विशाल चमकते आकाश के नीचे खड़े होकर, विश्व भर का प्रेमविभोर हृदय से स्वागत करते थे—इस कल्पना से ही मेरा हृदय, आनंद और मानवता के लिए आशामय भविष्य के स्वप्नों से भर जाता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

अगर हम रामराज्य या ईश्वर का राज्य हिंदुस्तान में स्थापित करना चाहते हैं, तो मैं कहूँगा कि हमारा प्रथम कार्य यह है कि हम अपने दोषों को पहाड़-जैसे देखें और मुसलमानों के दोषों को कुछ नहीं।

महात्मा गांधी

हिंदुओं की भाँति यहूदियों ने अपने को ईश्वर का प्रीतिपात्र और दूसरों को अप्रीति-पात्र मानकर जो अपराध किया था, उसका दंड उन्हें विचित्र और अनुचित रीति से प्राप्त हुआ था।

महात्मा गांधी

मैं दावा करता हूँ कि हिंदुस्तान में या उससे बाहर भी सबसे आला दर्जे का जो हिंदू है, उससे मैं कम नहीं हूँ क्योंकि मैं वेद को मानने वाला हूँ, गीता को पढ़ता हूँ और उसमें जो लिखा है उस पर अमल करता हूँ।

महात्मा गांधी

अच्छे काम के प्रति आदर और बुरे के प्रति तिरस्कार होना ही चाहिए। भले-बुरे काम करने वालों के प्रति सदा आदर अथवा दया रहनी चाहिए।

महात्मा गांधी

यह वह बात नहीं है जो वकील बताए कि मुझे करनी चाहिए, अपितु यह वह बात है जो मानवता, विवेक और न्याय बताते हैं कि मुझे करनी चाहिए।

एडमंड बर्क

बुद्धदेव ने अपने शिष्यों को उपदेश देते समय एक बार कहा था कि मनुष्य के मन में कामना अत्यंत प्रबल है, लेकिन सौभाग्यवश उससे भी अधिक प्रबल एक वस्तु हमारे पास है। यदि सत्य की पिपासा हमारी प्रवृत्तियों से अधिक प्रबल होती तो हममें से कोई धर्म के मार्ग पर चल सकता।

रवींद्रनाथ टैगोर

उपकारी की संपत्ति बढ़ती ही रहती है, कहा भी है: ‘पुण्य की जड़ पाताल तक जाती है।’

महात्मा गांधी

मनुष्य के सारे कर्म-कलाप के मूल में है उसकी इच्छाशक्ति। यह इच्छाशक्ति उसके रसबोध और सौंदर्य-रुचि से सीधे जुड़ी है। रसबोध और रुचि ही हमारे दैनन्दिन जीवन के शुभ और अशुभ का स्रोत है।

कुबेरनाथ राय

प्राणी का मनस्तत्व जितना जटिल है, उतना ही अनंत है। सुंदर भी उसी तरह विचित्र और अपरिमेय है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

जिन्होंने जीव-मात्र को अपने समान समझा है, उन्होंने ही सत्य को समझा है।

रवींद्रनाथ टैगोर

हमारे दिलों में प्रेम की रोशनी पैदा होनी चाहिए।

महात्मा गांधी

जब हमारे दिल में शक पैदा हो जाता है तो अच्छा तरीक़ा यही है कि हम धैर्य रखकर बैठे रहें, बजाए इसके कि कोई पत्थर फेंककर मामले को और बिगाड़ें।

महात्मा गांधी

जो आदमी जीव को बना नहीं सकता, उसको लेने का अधिकार कैसे आया?

महात्मा गांधी

धर्म में ही मनुष्य का श्रेष्ठ परिचय मिलता है। धर्म का मनुष्य के ऊपर जिस मात्रा में अधिकार होता है, उसी के अनुसार मनुष्य अपने-आपको पहचानता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

प्रयोजन के अतीत पदार्थ का ही नाम सौंदर्य है, प्रेम है, भक्ति है, मनुष्यता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

गांधी जी ने जो परिवर्तन चाहा था; वह व्यक्ति का भीतरी परिवर्तन था और वह समाज का था, क्योंकि भीतर और बाहर में कोई विभेद करने वाला दर्शन था वह। सामाजिक पीड़ा को भी गांधी जी ने व्यक्ति की आंतरिक वेदना के रूप में देखा।

यू. आर. अनंतमूर्ति