हवा पर उद्धरण
समीर को पंचतत्त्व या
पंचमहाभूत में से एक माना गया है। इसका विशिष्ट गुण स्पर्श कहा गया है। प्रस्तुत चयन में हवा को विषय बनाती अथवा हवा के प्रसंग का उपयोग करती कविताओं को शामिल किया गया है।

हवा ने बारिश को उड़ा दिया, उड़ा दिया आकाश को और सारे पत्तों को, और वृक्ष खड़े रहे। मेरे ख़याल से, मैं भी, पतझड़ को लंबे समय से जानता हूँ।

अगर आप हवा के सामने आत्मसमर्पण कर दें, तब आप उस पर सवारी कर सकते हैं।

हे माता! तुम्हारी यह धूलि, जल, आकाश और वायु—सभी मेरे लिए स्वर्ग तुल्य हैं। तुम मेरे लिए मर्त्य की पुण्य मुक्ति भूमि एवं तीर्थस्वरूपा हो।

हमें चार चीज़ों की ज़रूरत है। हवा, पानी, रोटी और कपड़ा। दो चीज़ें भगवान ने मुफ़्त दी हैं। और जैसे रोटी घर में तैयार होती है, वैसे ही कपड़ा भी हमारे घर में बनना चाहिए।

मनुष्य भोजन, जल और शुद्ध हवा से जितना छुटकारा पा सकता है, उससे अधिक छुटकारा ईश्वर से नहीं पा सकता।

आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है। उसी प्रकार न तो इसको पानी गला सकता है और न वायु सुखा सकता है। यह आत्मा कभी न कटने वाला, न जलने वाला, न भीगने वाला और न सूखने वाला तथा नित्य सर्वव्यापी, स्थिर, अचल एवं सनातन है।

मुक्त वायु में सुप्त शिशिर अपने सस्मित अधरों पर वसंत का स्वप्न देखता है।
