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कवि पर उद्धरण

कवि को लिखने के लिए कोरी स्लेट कभी नहीं मिलती है। जो स्लेट उसे मिलती है, उस पर पहले से बहुत कुछ लिखा होता है। वह सिर्फ़ बीच की ख़ाली जगह को भरता है। इस भरने की प्रक्रिया में ही रचना की संभावना छिपी हुई है।

केदारनाथ सिंह

कविता आदमी को मार देती है। और जिसमें आदमी बच गया है, वह अच्छा कवि नहीं है।

धूमिल

जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ?

जनकवि हूँ मैं, साफ़ कहूँगा, क्यों हकलाऊँ।

नागार्जुन

सही कवि भविष्य में देख सकते हैं।

स्वदेश दीपक

कविता तो एक जीवन को तोड़कर सकल जीवन बनाती है। और जीवन टूटता है, वह कवि का है।

त्रिलोचन

सुकवि की मुश्किल को कौन समझे, सुकवि की मुश्किल। सुकवि की मुश्किल। किसी ने उनसे नहीं कहा था कि आइए आप काव्य रचिए।

रघुवीर सहाय

जिसे संसार दुःख कहता है, वही कवि के लिए सुख है।

प्रेमचंद

जितना कवि समय को, उतना ही समय कवि को गढ़ता है।

अशोक वाजपेयी
  • संबंधित विषय : समय

देखो वृक्ष को देखो वह कुछ कर रहा है।

किताबी होगा कवि जो कहेगा कि हाय पत्ता झर रहा है।

रघुवीर सहाय
  • संबंधित विषय : पेड़

जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।

श्रीकांत वर्मा

एक लेखक की शुरुआत हमेशा बहुत जटिल होती है - वह कई खेल एक साथ खेल रहा होता है।

होर्खे लुई बोर्खेस

यदि कवि अपनी कविता की व्याख्या करने के लिए व्याकुल होता है तो इसका यही अर्थ हो सकता है कि या तो उसे पाठक के विवेक पर भरोसा नहीं है अथवा अपनी कृति के सामर्थ्य पर।

विष्णु खरे

उस भाषा के साहित्य का दुर्भाग्य तय है, जहाँ आलोचक महान् हों, कवि नहीं।

स्वदेश दीपक

अच्छा कवि बहुत ज़िद्दी होता है और कविता लिखते समय अपने विवेक और शक्ति के अलावा किसी और को नहीं मानता।

विष्णु खरे

अगर कविता (जिसे कहते हैं) ‘जीवन से फूटकर’ निकलती है, तो उसमें जीवन की सारी बेताब उलझनें और आशाएँ और शंकाएँ और कोशिशें और हिम्मतें कवि के अंदर की पूरी ईमानदारी के साथ अपने सरगम के पूरे बोल बजाने लगेंगी।

शमशेर बहादुर सिंह

कितना अच्छा होता कि जिस संख्या में कवियों के संग्रह छपे बताए जाते हैं, लगभग उतनी ही संख्या में उन्होंने कविताएँ भी लिखी होतीं।

सिद्धेश्वर सिंह

कविता अगर बनती जाएगी तो कवि नष्ट होता जाएगा।

त्रिलोचन

कोई कवि सहज और स्वस्थ रहे तो समझ लीजिए, कुछ क़सर है।

त्रिलोचन
  • संबंधित विषय : रोग

कवि को कविता के बाहर और भीतर दोनों जगह एक साथ रहने का जोखिम उठाना होता है।

मंगलेश डबराल

अगर कवि की कोई यात्रा हो सकती है तो वह अवश्य ही किसी ऐसी जगह जाने की होगी जिसको वह जानता नहीं।

रघुवीर सहाय

प्रभाव सभी कवियों और कलाकारों पर पड़ते हैं।

शमशेर बहादुर सिंह

निस्संदेह एक श्रेष्ठ मौलिक कवि की शक्ति की पहचान आगे चलकर इसी बात से की जाएगी कि वह अपने समय की रचना के सामूहिक व्यक्तित्व से किस हद तक अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने में समर्थ हो सका है।

केदारनाथ सिंह

शब्दों में अभिव्यक्ति अभ्यास के द्वारा होती है। यह सब एक निमिष में हो सकता है, इसको एक युग भी लग सकता है; कवि-कवि पर निर्भर है।

विजय देव नारायण साही

विचार और कलात्मकता के संतुलन पर ही आधुनिक कवि की सफलता या असफलता, शक्ति या दुर्बलता निर्भर करती है।

ऋतुराज
  • संबंधित विषय : समय

कवि वह सपेरा है जिसकी पिटारी में सर्पों के स्थान पर हृदय बंद होते हैं।

प्रेमचंद

कवि जब पाठक की स्थिति में होता है, तब उसकी स्थिति रचना-काल से भिन्न होती है।

त्रिलोचन

काव्य में वस्तुओं के गुण या दोष कवि की उक्ति पर ही निर्भर करता है।

गंगानाथ झा

कवि वस्तु-स्वभाव के अधीन नहीं है।

गंगानाथ झा

कवि की अमरता ग़लतफ़हमी पर निर्भर करती है। जिस कवि में ग़लत समझे जाने का जितना अधिक सामर्थ्य होता है, वह उतना ही दीर्घजीवी होता है।

विजय देव नारायण साही

मैं थोड़ा-सा कवि हूँ और आलोचक तो बिल्कुल नहीं हूँ।

मंगलेश डबराल

प्रत्येक कवि हर समय ऐसा नहीं लिखता जो ‘साहित्य’ भी हो तथा प्रकाश्य भी।

विष्णु खरे

कोई भी अच्छा कवि किसी भी आलोचक की गिरफ़्त में पूरा नहीं आता।

विष्णु खरे

‘अभी रहने दें फिर समाप्त कर लूँगा’—‘फिर इससे शुद्ध करूँगा’—‘मित्रों के साथ सलाह करूँगा’—इत्यादि प्रकार की यदि कवि के मन में चंचलता हो तो इससे (भी) काव्य का नाश होता है।

गंगानाथ झा

कवि कोई खोज नहीं करता। वह सुनता है।

ज़्यां कॉक्त्यू

लहर की भाँति कवि भी समाज-सागर से अभिन्न अस्तित्व नहीं रख सकता।

विजय देव नारायण साही

मैं कविता से ही सब कुछ क्यों चाहता हूँ, ख़ुद से क्यों नहीं?

मलयज

ख़ामोश होता हूँ तो वैसी कविता नहीं लिख सकता जैसी लिखना चाहता हूँ और बातूनी होने पर ख़राब आदमी होने का भय है।

मंगलेश डबराल

कुछ कवि और कुछ कविताएँ इतने असली होते हैं कि किसी भी ऐसे समीक्षक के लिए, जो बेशर्मी से समसामयिक रूढ़ियाँ नहीं दुहरा रहा है, बहुत बड़ी कठिनाई हो जाते हैं।

विष्णु खरे

कवि अपनी विचारधारा को बिना कलात्मक रूप दिए अवाम पर कोई भरपूर प्रभाव नहीं डाल सकता।

ऋतुराज

मैं एक कवि के रूप में प्रकट हुआ, एक कवि के रूप में मरूँगा।

श्रीकांत वर्मा

कवि तीन प्रकार के होते हैं—(1) शास्त्रकवि, (2) काव्यकवि, (3) शास्त्रकाव्योभयकवि। कुछ लोगों का सिद्धांत है कि इनमें सबसे श्रेष्ठ शास्त्रकाव्योभयकवि, फिर काव्यकवि, फिर शास्त्रकवि। पर यह ठीक नहीं। अपने-अपने क्षेत्र में तीनों ही श्रेष्ठ हैं—जैसे राजहंस चंद्रिका का पान नहीं कर सकता, पर नीरक्षीरविवेक वही करता है।

गंगानाथ झा

सबसे पहले कवि को अपनी योग्यता का विचार कर लेना चाहिए—मेरा संस्कार कैसा है, किस भाषा में काव्य करने की शक्ति मुझमें है, जनता की रुचि किस ओर है, यहाँ के लोगों ने किस तरह की किस सभा में शिक्षा पाई है, किधर किसका मन लगता है; यह सब विचार करके तब किस भाषा में काव्य करेंगे इसका निर्णय करना होगा। पर यह सब भाषा का विचार उन कवियों को आवश्यक होगा जो एकदेशी आंशिक कवि हैं। जो सर्वतंत्रस्वतंत्र हैं, उनके लिए जैसी एक भाषा वैसी सब भाषा।

गंगानाथ झा

काव्य करने के पहले कवि का कर्त्तव्य है—उपयोगी विद्या तथा उपविद्याओं का अनुशीलन करना।

गंगानाथ झा

परोक्ति का अपहरण कवि को ‘अकवि’ बना देता है। इससे यह सर्वथा त्याज्य है।

गंगानाथ झा

कवि में जिस प्रकार विधायक कल्पना की आवश्यकता है, उसी प्रकार पाठक में ग्राहक कल्पना की आवश्यकता होती है।

त्रिलोचन

गुण और अलंकारसहित वाक्य ही को ‘काव्य’ कहते हैं।

गंगानाथ झा

कवि-दर्शन तर्कसम्मत नहीं, भावना तथा प्रेरणा-सम्मत होता है।

सुमित्रानंदन पंत

प्रतिभा और व्युत्पत्ति दोनों जिसमें हैं, वही ‘कवि’ है।

गंगानाथ झा

कवि अभागा है। वह विशिष्ट अनुभूति को बदल नहीं पाता। तब तक बेचैन रहता है जब तक परिभाषा को बदल नहीं लेता।

विजय देव नारायण साही

अपनी रचना का पाठक बनकर कवि स्वयं तारतम्य की खोज करने लगता है।

त्रिलोचन

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