कवि को लिखने के लिए कोरी स्लेट कभी नहीं मिलती है। जो स्लेट उसे मिलती है, उस पर पहले से बहुत कुछ लिखा होता है। वह सिर्फ़ बीच की ख़ाली जगह को भरता है। इस भरने की प्रक्रिया में ही रचना की संभावना छिपी हुई है।
कविता आदमी को मार देती है। और जिसमें आदमी बच गया है, वह अच्छा कवि नहीं है।
जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ?
जनकवि हूँ मैं, साफ़ कहूँगा, क्यों हकलाऊँ।
कविता तो एक जीवन को तोड़कर सकल जीवन बनाती है। और जीवन टूटता है, वह कवि का है।
सही कवि भविष्य में देख सकते हैं।
सुकवि की मुश्किल को कौन समझे, सुकवि की मुश्किल। सुकवि की मुश्किल। किसी ने उनसे नहीं कहा था कि आइए आप काव्य रचिए।
देखो वृक्ष को देखो वह कुछ कर रहा है।
किताबी होगा कवि जो कहेगा कि हाय पत्ता झर रहा है।
जितना कवि समय को, उतना ही समय कवि को गढ़ता है।
जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।
एक लेखक की शुरुआत हमेशा बहुत जटिल होती है - वह कई खेल एक साथ खेल रहा होता है।
यदि कवि अपनी कविता की व्याख्या करने के लिए व्याकुल होता है तो इसका यही अर्थ हो सकता है कि या तो उसे पाठक के विवेक पर भरोसा नहीं है अथवा अपनी कृति के सामर्थ्य पर।
उस भाषा के साहित्य का दुर्भाग्य तय है, जहाँ आलोचक महान् हों, कवि नहीं।
अच्छा कवि बहुत ज़िद्दी होता है और कविता लिखते समय अपने विवेक और शक्ति के अलावा किसी और को नहीं मानता।
अगर कविता (जिसे कहते हैं) ‘जीवन से फूटकर’ निकलती है, तो उसमें जीवन की सारी बेताब उलझनें और आशाएँ और शंकाएँ और कोशिशें और हिम्मतें कवि के अंदर की पूरी ईमानदारी के साथ अपने सरगम के पूरे बोल बजाने लगेंगी।
निस्संदेह एक श्रेष्ठ मौलिक कवि की शक्ति की पहचान आगे चलकर इसी बात से की जाएगी कि वह अपने समय की रचना के सामूहिक व्यक्तित्व से किस हद तक अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने में समर्थ हो सका है।
कितना अच्छा होता कि जिस संख्या में कवियों के संग्रह छपे बताए जाते हैं, लगभग उतनी ही संख्या में उन्होंने कविताएँ भी लिखी होतीं।
कवि को कविता के बाहर और भीतर दोनों जगह एक साथ रहने का जोखिम उठाना होता है।
अगर कवि की कोई यात्रा हो सकती है तो वह अवश्य ही किसी ऐसी जगह जाने की होगी जिसको वह जानता नहीं।
कवि जब पाठक की स्थिति में होता है, तब उसकी स्थिति रचना-काल से भिन्न होती है।
प्रभाव सभी कवियों और कलाकारों पर पड़ते हैं।
विचार और कलात्मकता के संतुलन पर ही आधुनिक कवि की सफलता या असफलता, शक्ति या दुर्बलता निर्भर करती है।
मैं थोड़ा-सा कवि हूँ और आलोचक तो बिल्कुल नहीं हूँ।
प्रत्येक कवि हर समय ऐसा नहीं लिखता जो ‘साहित्य’ भी हो तथा प्रकाश्य भी।
शब्दों में अभिव्यक्ति अभ्यास के द्वारा होती है। यह सब एक निमिष में हो सकता है, इसको एक युग भी लग सकता है; कवि-कवि पर निर्भर है।
काव्य में वस्तुओं के गुण या दोष कवि की उक्ति पर ही निर्भर करता है।
यह जीवन में सच्चा आनंद है, एक महान उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाना जिसे आप स्वयं पहचानते हैं...
यह जीवन में सच्चा आनंद है - एक ऐसे उद्देश्य के लिए उपयोग होना जिसे आप स्वयं एक महान उद्देश्य मानते हैं। प्रकृति की शक्ति बनना, न कि बीमारियों और शिकायतों से भरा हुआ एक स्वार्थी, असंतुष्ट व्यक्ति, जो यह शिकायत करता रहता है कि दुनिया ख़ुद को आपको खुश करने के लिए समर्पित नहीं करती। मेरा मानना है कि मेरा जीवन पूरे समाज का है, और जब तक मैं जीवित हूँ, यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उसके लिए जो कुछ कर सकता हूँ, वह करूं। मैं चाहता हूँ कि जब मैं मरूं तो मैं पूरी तरह से उपयोगी हो चुका हूँ, क्योंकि जितना कठिन मैं काम करता हूँ, उतना ही अधिक मैं जीवित महसूस करता हूँ। मैं जीवन का आनंद उसके अपने स्वभाव के लिए लेता हूँ। मेरे लिए जीवन एक छोटी-सी मोमबत्ती नहीं है। यह एक प्रकार की धधकती मशाल है जिसे मैंने अभी के लिए थाम रखा है और इसे जितना संभव हो सके उतनी तन्मयता से जलाना चाहता हूँ, इससे पहले कि मैं इसे आने वाली पीढ़ियों को सौंप दूँ ।
कवि वस्तु-स्वभाव के अधीन नहीं है।
कवि की अमरता ग़लतफ़हमी पर निर्भर करती है। जिस कवि में ग़लत समझे जाने का जितना अधिक सामर्थ्य होता है, वह उतना ही दीर्घजीवी होता है।
मैं एक कवि के रूप में प्रकट हुआ, एक कवि के रूप में मरूँगा।
कवि अपनी विचारधारा को बिना कलात्मक रूप दिए अवाम पर कोई भरपूर प्रभाव नहीं डाल सकता।
कोई भी अच्छा कवि किसी भी आलोचक की गिरफ़्त में पूरा नहीं आता।
‘अभी रहने दें फिर समाप्त कर लूँगा’—‘फिर इससे शुद्ध करूँगा’—‘मित्रों के साथ सलाह करूँगा’—इत्यादि प्रकार की यदि कवि के मन में चंचलता हो तो इससे (भी) काव्य का नाश होता है।
कवि कोई खोज नहीं करता। वह सुनता है।
लहर की भाँति कवि भी समाज-सागर से अभिन्न अस्तित्व नहीं रख सकता।
ख़ामोश होता हूँ तो वैसी कविता नहीं लिख सकता जैसी लिखना चाहता हूँ और बातूनी होने पर ख़राब आदमी होने का भय है।
कवि में जिस प्रकार विधायक कल्पना की आवश्यकता है, उसी प्रकार पाठक में ग्राहक कल्पना की आवश्यकता होती है।
कुछ कवि और कुछ कविताएँ इतने असली होते हैं कि किसी भी ऐसे समीक्षक के लिए, जो बेशर्मी से समसामयिक रूढ़ियाँ नहीं दुहरा रहा है, बहुत बड़ी कठिनाई हो जाते हैं।
सबसे पहले कवि को अपनी योग्यता का विचार कर लेना चाहिए—मेरा संस्कार कैसा है, किस भाषा में काव्य करने की शक्ति मुझमें है, जनता की रुचि किस ओर है, यहाँ के लोगों ने किस तरह की किस सभा में शिक्षा पाई है, किधर किसका मन लगता है; यह सब विचार करके तब किस भाषा में काव्य करेंगे इसका निर्णय करना होगा। पर यह सब भाषा का विचार उन कवियों को आवश्यक होगा जो एकदेशी आंशिक कवि हैं। जो सर्वतंत्रस्वतंत्र हैं, उनके लिए जैसी एक भाषा वैसी सब भाषा।
काव्य करने के पहले कवि का कर्त्तव्य है—उपयोगी विद्या तथा उपविद्याओं का अनुशीलन करना।
परोक्ति का अपहरण कवि को ‘अकवि’ बना देता है। इससे यह सर्वथा त्याज्य है।
कवि तीन प्रकार के होते हैं—(1) शास्त्रकवि, (2) काव्यकवि, (3) शास्त्रकाव्योभयकवि। कुछ लोगों का सिद्धांत है कि इनमें सबसे श्रेष्ठ शास्त्रकाव्योभयकवि, फिर काव्यकवि, फिर शास्त्रकवि। पर यह ठीक नहीं। अपने-अपने क्षेत्र में तीनों ही श्रेष्ठ हैं—जैसे राजहंस चंद्रिका का पान नहीं कर सकता, पर नीरक्षीरविवेक वही करता है।
गुण और अलंकारसहित वाक्य ही को ‘काव्य’ कहते हैं।
कवि-दर्शन तर्कसम्मत नहीं, भावना तथा प्रेरणा-सम्मत होता है।
कवियों को आलोचकों और वेश्याओं ने इतना बरबाद नहीं किया, जितना उनकी बीवियों ने।