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न्याय पर उद्धरण

इतिहासकार को हरेक के साथ न्याय करने का अपना मिशन कभी भूलना नहीं चाहिए। निर्धन और संपत्तिवान सब उसकी क़लम के आगे बराबर हैं; उसके सामने किसान अपनी दरिद्रता की भव्यता के साथ उपस्थित होता है, और धनवान अपनी मूर्खता की क्षुद्रता के साथ।

ओनोरे द बाल्ज़ाक

न्याय के बिना प्रेम नहीं हो सकता।

बेल हुक्स

दुनिया में परोपकार की नहीं, बल्कि न्याय की कमी है।

मैरी वोलस्टोनक्राफ़्ट

आज के ज़माने में ऐसा होता है कि बहुत सी बातें क़ानून के अनुकूल होने पर भी न्यायबुद्धि के प्रतिकूल होती हैं। इसलिए न्याय के रास्ते धन कमाना ही ठीक हो, तो मनुष्य का सबसे पहला काम न्याय-बुद्धि को सीखना है।

महात्मा गांधी

और न्याय-प्रिय न्यायाधीशों!

तुम उसे क्या सज़ा दोगे जो शरीर से ईमानदार है लेकिन मन से चोर है?

और तुम उस व्यक्ति को क्या दंड दोगे जो देह की हत्या करता है लेकिन जिसकी अपनी आत्मा का हनन किया गया है?

और उस पर तुम मुक़दमा कैसे चलाओगे जो आचरण में धोखेबाज़ और ज़ालिम है लेकिन जो ख़ुद सत्रस्त और अत्याचार-पीड़ित है?

और क्या उन्हें कैसे सज़ा दोगे जिनको पश्चात्ताप पहले ही उनके दुष्कृत्यों से अधिक है?

और क्या यह पश्चात्ताप ही उस क़ानून का दिया हुआ न्याय नहीं जिसका पालन करने का प्रयास तुम भी करते रहते हो?

खलील जिब्रान

न्याय तो होता है वास्तव में मनुष्य के हृदय में, और विचारक का काम करती है उसकी आत्मा।

लक्ष्मीनारायण मिश्र

कौन कहेगा कि महत्त्वशाली व्यक्तियों के सौभाग्य-अभिनय में धूर्तता का बहुत हाथ होता है। जिसके रहस्यों को सुनने से रोम कूप स्वेद जल से भर उठे, जिसके अपराध का पात्र छलक रहा है, वही समाज का नेता है। जिसके सर्वस्व-हरणकारी करों से कितनों का सर्वनाश हो चुका है, वही महाराज है। जिसके दंडनीय कार्यो का न्याय करने में परमात्मा के समय लगे, वही दंड-विधायक है।

जयशंकर प्रसाद

राजा न्याय कर सकता है, परंतु ब्राह्मण क्षमा कर सकता है।

जयशंकर प्रसाद

एक तरफ़ निर्दयता में यह सदी बहुत बढ़ी हुई है, तो दूसरी तरफ़ न्याय की इच्छा में भी।

राममनोहर लोहिया

अभी भी स्वर्ग सर्वोपरि है, वहाँ एक न्यायाधीश विराजमान है जिसे कोई भी राजा भ्रष्ट नहीं कर सकता।

विलियम शेक्सपियर

जिस प्रकार बिरले ही दुराचारियों को अपने कुकर्मों का दंड मिलता है, उसी प्रकार सज्जनता का दंड पाना अनिवार्य है।

प्रेमचंद

न्याय की अदालतों से भी एक बड़ी अदालत होती है। वह अदालत अंतर की आवाज़ की है और वह अन्य सब अदालतों से ऊपर की अदालत है।

मोहनदास करमचंद गांधी

यह निश्चित है कि अज्ञान, ताक़त के साथ मिलकर; न्याय के लिए सबसे क्रूर शत्रु हो सकता है।

जेम्स बाल्डविन