सभी जानते हैं कि हमारे कवि और कहानीकार वास्तव में दार्शनिक हैं और कविता या कथा-साहित्य तो वे सिर्फ़ यूँ ही लिखते हैं।
जो सब प्राणियों की रात्रि होती है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है और जिस अवस्था में सब प्राणी जागते हैं, वह तत्त्वज्ञ मुनि की रात्रि होती है।
पारंगत दार्शनिक हुए बिना कोई भी व्यक्ति कभी महान कवि नहीं हुआ।
दार्शनिक की आत्मा उसके मस्तिष्क में निवास करती है। कवि की आत्मा उसके हृदय में, गायक की गले में, किंतु नर्तकी की आत्मा उसके अंग-प्रत्यंग में बसती है।
इतिहास की अपेक्षा काव्य अधिक दार्शनिक और गंभीरतर अभिप्राययुक्त वस्तु है।
दार्शनिक के लिए सत्य कहने का साहस प्रथम अर्हता है।
मैं कई बड़े सवालों को लेकर अब भी स्पष्ट नहीं हूँ, लेकिन ये मेरा काम नहीं है। मैं उपन्यासकार हूँ, दार्शनिक नहीं।
एक दार्शनिक के लिए कितनी भी क्षुद्र परिस्थिति गौण नहीं होती।
दार्शनिक जिन्हें सिद्धांत कहता है, राजनेता उनमें वहम देखता है। और राजनेता जिसे पद और प्रभुता मानता है, दार्शनिक उसे माया का खेल और फ़रेब मानता है।
सब विद्वत्ता व्वर्थ है और दर्शनशास्त्र मिथ्या है।
जैसे सर्वोतम धर्म वह है जो सभी धर्मों के सत्य को स्वीकारे, वैसे ही सर्वोतम दार्शनिक मत वह है जो सभी दर्शनों के सत्य को स्वीकारे और प्रत्येक को उसका उचित स्थान दे।