Font by Mehr Nastaliq Web

समय पर कविताएँ

समय अनुभव का सातत्य

है, जिसमें घटनाएँ भविष्य से वर्तमान में गुज़रती हुई भूत की ओर गमन करती हैं। धर्म, दर्शन और विज्ञान में समय प्रमुख अध्ययन का विषय रहा है। भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड के लगातार सृजन, विनाश और पुनर्सृजन के कालचक्र से गुज़रते रहने की परिकल्पना की गई है। प्रस्तुत चयन में समय विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

एक दिन

अखिलेश सिंह

हाथ और साथ का फ़र्क़

जावेद आलम ख़ान

फ़र्क़ नहीं पड़ता

केदारनाथ सिंह

विध्वंस की शताब्दी

आस्तीक वाजपेयी

बीते हुए दिन

राजेंद्र धोड़पकर

रात दस मिनट की होती

विनोद कुमार शुक्ल

यह कैसी विवशता है?

कुँवर नारायण

अगले सबेरे

विष्णु खरे

दुर्दिन है आज

ओसिप मंदेलश्ताम

सेवानिवृत्ति

अविनाश मिश्र

समतल

आदर्श भूषण

सात दिन का सफ़र

मंगलेश डबराल

अवांछित लोग

कुमार अम्बुज

चश्मा

राजेंद्र धोड़पकर

आषाढ़

अखिलेश सिंह

उदाहरण के लिए

नरेंद्र जैन

सन् 3031

त्रिभुवन

विदा

तादेऊष रूज़ेविच

नए युग में शत्रु

मंगलेश डबराल

समय

आशीष त्रिपाठी

शब्दों से परे

तादेऊष रूज़ेविच

मेज़

गिरिराज किराडू

जयंती

व्लादिमीर मायाकोव्स्की

आगतों के प्रति

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

रंगीन चित्र

प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी

समय के उलट

अंजुम शर्मा

वापसी

तादेऊष रूज़ेविच

समय ही सामर्थ्य देता है

कृष्ण मुरारी पहारिया

आख़िरी प्याला

निकानोर पार्रा

नया बारामासा

कृष्ण कल्पित

उनकी सनातन करुणा

नामदेव ढसाल

प्रेमालाप

निकानोर पार्रा

एक दृश्य

सारुल बागला

व्यंग्योक्तियाँ

अर्नेस्तो कार्देनाल

फ़ैमिली अलबम

विजया सिंह