Font by Mehr Nastaliq Web

आत्म पर उद्धरण

आत्म का संबंध आत्मा

या मन से है और यह ‘निज’ का बोध कराता है। कवि कई बातें ‘मैं’ के अवलंब से कहने की इच्छा रखता है जो कविता को आत्मीय बनाती है। कविता का आत्म कवि को कविता का कर्ता और विषय—दोनों बनाने की इच्छा रखता है। आधुनिक युग में मनुष्य की निजता के विस्तार के साथ कविता में आत्मपरकता की वृद्धि की बात भी स्वीकार की जाती है।

अपने स्वयं के शिल्प का विकास केवल वही कवि कर सकता है, जिसके पास अपने निज का कोई ऐसा मौलिक-विशेष हो, जो यह चाहता हो कि उसकी अभिव्यक्ति उसी के मनस्तत्वों के आकार की, उन्हीं मनस्तत्वों के रंग की, उन्हीं के स्पर्श और गंध की ही हो।

गजानन माधव मुक्तिबोध

‘स्व’ से ऊपर उठना, ख़ुद की घेरेबंदी तोड़कर कल्पना-सज्जित सहानुभूति के द्वारा अन्य के मर्म में प्रवेश करना—मनुष्यता का सबसे बड़ा लक्षण है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

शांति को चाहो। लेकिन ध्यान रहे कि उसे तुम अपने ही भीतर नहीं पाते हो, तो कहीं भी नहीं पा सकोगे। शांति कोई बाह्य वस्तु नहीं है।

ओशो

तुम्हारे पास क्या है; उससे नहीं, वरन् तुम क्या हो उससे ही तुम्हारी पहचान है।

ओशो

वह (स्त्री) ख़ुद से तब प्यार कर पाती है, जब कोई पुरुष उसे प्यार के क़ाबिल पाता है।

शुलामिथ फ़ायरस्टोन

जब मैं भाषा के माध्यम से विचार करता हूँ तो मौखिक अभिव्यक्तियों के अतिरिक्त मेरे मन में कोई दूसरे ‘अर्थ’ नहीं होते : भाषा तो स्वयं ही विचार की वाहक होती है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

मैं जब तक जीवित रहूँगा, उनकी नक़ल नहीं करूँगा या उनसे अलग होने के लिए ख़ुद से नफ़रत नहीं करूँगा।

ओरहान पामुक

कैसे मैं, जो जीवन को इतनी तीव्रता से चाहता है, स्वयं को लंबे समय तक किताबों की निरर्थक बातों और स्याही से काले पड़े पन्नों में उलझा हुआ छोड़ सकता था!

निकोस कज़ानज़ाकिस

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दूसरों में रुचि का कारण मनुष्य की स्वयं में रुचि है। यह संसार स्वार्थ से जुड़ा है। यह ठोस वास्तविकता है लेकिन मनुष्य केवल वास्तविकता के सहारे नहीं जी सकता। आकाश के बिना इसका काम नहीं चल सकता। भले ही कोई आकाश को शून्य स्थान कहे…

रघुवीर चौधरी

सफल होने के लिए—एक कलाकार के पास—साहसी आत्मा होनी चाहिए। …वह आत्मा जो हिम्मत करती है और चुनौती देती है।

केट शोपैं

भाषा स्वयं सुनती है।

यून फ़ुस्से

प्यार करने का चुनाव जुड़ने का विकल्प है—दूसरे में ख़ुद को खोजने का विकल्प।

बेल हुक्स

मेरे इतने लोकप्रिय होने का कारण यह है कि मैं दूसरों को वह लौटाती हूँ जो उन्हें स्वयं में खोजने की आवश्यकता होती है।

अज़र नफ़ीसी

मैं अनावश्यक चीज़ों को छोड़ दूँगी, मैं अपना धन दे दूँगी, मैं अपने बच्चों के लिए अपनी जान दे दूँगी; लेकिन मैं ख़ुद को नहीं दूँगी।

केट शोपैं

घायल दिल पहले कम आत्म-सम्मान पर क़ाबू पाकर आत्म-प्रेम सीखता है।

बेल हुक्स

मन की अथाह गहराई में उतरकर लिखो, जो मन में आए वह लिखो।

जैक केरुआक

इंसान का गुण स्वयं का विस्तार करने, स्वयं से बाहर निकलने और अन्य लोगों में और उनके लिए मौजूद रहने की क्षमता में निहित है।

मिलान कुंदेरा

आदमी ध्यान आकर्षित करने के लिए युद्ध करते हैं। सभी हत्याएँ आत्म-घृणा की अभिव्यक्ति हैं।

एलिस वॉकर

सरल मन वाले दीवाने संत सरीखे बनो।

जैक केरुआक

जब भी आप अपने आस-पास सुंदरता का निर्माण कर रहे होते हैं, आप अपनी आत्मा को बहाल कर रहे होते हैं।

एलिस वॉकर

क्या यह सच नहीं है कि लेखक केवल अपने बारे में लिख सकता है?

मिलान कुंदेरा

जब हमें नहीं पता होता कि किससे नफ़रत करें, हम ख़ुद से शुरुआत करते हैं।

चक पैलनिक

मेरी मुश्किलें मेरी अपनी हैं।

अल्फ़्रेड एडलर

स्मरण-शक्ति के साथ लिखो और ख़ुद के आश्चर्य के लिए लिखो।

जैक केरुआक

व्यक्ति किसी और से प्यार करने और किसी और से प्यार प्राप्त करने के सरल कृत्यों से ख़ुद से प्यार करना सीखता है।

हारुकी मुराकामी

आप कितनी भी दूर की यात्रा कर लें, आप कभी भी ख़ुद से दूर नहीं हो सकते।

हारुकी मुराकामी

प्रेम की प्राप्ति के लिए एक ज़रूरी शर्त है—अपनी ‘आत्म-मुग्धता’ से उबरने में सफलता।

एरिक फ़्रॉम

मैं वही हूँ जो मेरे आस-पास है।

वॉलेस स्टीवंस

स्वयं को जानने का अर्थ किसी अन्य व्यक्ति के साथ कार्य करते हुए स्वयं का अध्ययन करना है।

ब्रूस ली

अगर आप अपनी फ़ुरसत को खो रहे हैं, तो ख़बरदार! हो सकता है कि आप अपनी आत्मा को खो रहे हों।

वर्जीनिया वुल्फ़

समुद्र की आवाज़ आत्मा से बात करती है।

केट शोपैं

दे दिया जाता हूँ।

रघुवीर सहाय

डरने वाला व्यक्ति स्वयं ही डरता है, उसको कोई डराता नहीं है।

महात्मा गांधी
  • संबंधित विषय : डर

अपने अंतरतम की गहराइयों में इस प्रश्न को गूँजने दो: 'मैं कौन हूँ?' जब प्राणों की पूरी शक्ति से कोई पूछता है, तो उसे अवश्य ही उत्तर उपलब्ध होता है।

ओशो

कला में वस्तुतः आत्माभिव्यक्ति नहीं हुआ करती। अभिव्यक्ति होती है, किंतु जीने और भोगनेवाले अपने मन की, अपनी आत्मा की, वह सच्ची अभिव्यक्ति है—यह कहने का साहस नहीं हो पाता।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अपने लिए सोचें और दूसरों को भी ऐसा करने का सौभाग्य दें।

वाल्तेयर

आत्म-चेतना को विकास के प्रश्न की दृष्टि से देखा जाए, तो यह कहना होगा कि शमशेर आत्मपरक साहित्य की यूरोपीय परंपरा से काफ़ी प्रभावित हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध

व्यक्ति-स्वातंत्र्य कला के लिए, विज्ञान के लिए—अत्यधिक आवश्यक और मूलभूत है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

तुम्हारे भीतर एक शक्ति है, जो तुम्हें जीवन देती है। उसे खोजो।

रूमी

ब्राह्मण किसी के राज्य में रहता है और किसी के अन्न से पलता है, स्वराज्य में विचरता है और अमृत होकर जीता है। वह तुम्हारा मिथ्या गर्व है। ब्राह्मण सब कुछ सामर्थ्य रखने पर भी, स्वेच्छा से इन माया-स्तूपों को ठुकरा देता है, प्रकृति के कल्याण के लिए अपने ज्ञान का दान देता है।

जयशंकर प्रसाद

आत्मज्ञान, कार्यों का सभारंभ, तितिक्षा, धर्म में स्थिरता—ये सब गुण जिसको उद्देश्य से दूर नहीं हटाते, उसी को पंडित कहा जाता है।

वेदव्यास

जिसके चित्त में ‘नहीं’ है, वह समग्र से एक नहीं हो पाता है। सर्व के प्रति ‘हाँ’ अनुभव करना जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है क्योंकि वह ‘स्व’ को मिटाती है और ‘स्वयं’ से मिलाती है।

ओशो

अंतर्तत्त्व-व्यवस्था बाह्य जीवन-जगत का, अपनी वृत्तियों के अनुसार आत्मसात्कृत रूप है। किंतु यह आत्मसात्कृत जीवन-जगत—बाह्म जीवन-जगत् की प्रतिकृति नहीं है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

आत्मपरक ईमानदारी और वस्तुपरक सत्यपरायणता का संवेदनात्मक योग, अंतःकरण में ही होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

क्या तुम नियमित रूप से अपने आपसे मिलते हो? अभी शुरू करो।

रूमी

ईश्वर कोई बाह्य सत्य नहीं है। वह तो स्वयं के ही परिष्कार की अंतिम चेतना अवस्था है। उसे पाने का अर्थ स्वयं वही हो जाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

ओशो

तू स्वयं अपना उच्च न्यायालय है। अपनी रचना का मूल्यांकन केवल तू ही कर सकता है।

अलेक्सांद्र पूश्किन

भीतर इतनी गहराई हो कि कोई तुम्हारी थाह ले सके। अथाह जिनकी गहराई है, अगोचर उनकी ऊँचाई हो जाती है।

ओशो

जो स्वयं की मृत्यु को जान लेता है, उसकी दृष्टि संसार से हटकर सत्य पर केंद्रित हो जाती है।

ओशो

अगर साहित्यिक सौंदर्य-संबंधी मीमांसा करनी है, तो आपको अपनी दृष्टि केवल आत्मपरक कविता—वह भी आजकल की कविता तक ही सीमित नहीं करनी चाहिए।

गजानन माधव मुक्तिबोध