भीतर के साथ बाहर का निश्चित विभाजन अगर बना रहे तो हमारा जीवन सुविहित, सुश्रृंखलित, सुसंपूर्ण हो जाता है, किंतु वही हमारे जीवन में नहीं हो पा रहा है।
शांति को चाहो। लेकिन ध्यान रहे कि उसे तुम अपने ही भीतर नहीं पाते हो, तो कहीं भी नहीं पा सकोगे। शांति कोई बाह्य वस्तु नहीं है।
चाय ऐसा सर्वगुणसंपन्न पेय है कि उसका गिलास हाथ में लेते ही क्लांत पथिक तरोताज़ा हो जाता है।
स्मरण रहे कि महत्वाकांक्षा अशांति का मूल है। जिसे शांति चाहनी है, उसे महत्वकांक्षा छोड़ देनी पड़ती है। शांति का प्रारंभ वहाँ से है, जहाँ कि महत्वाकांक्षा का अंत होता है।
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जीवन में आप जो सबसे अच्छा सबक़ सीख सकते हैं, वह है शांत रहने में महारत हासिल करना। शांति एक महाशक्ति है।
स्पष्ट और शांत उसकी आवाज़ श्रोताओं के ऊपर तैरती रही, जैसे एक प्रकाश, जैसे एक तारा भरा आकाश।
लेखन कितना शांत है, छपना उतना ही शोर-शराबे वाला।
आपके भीतर एक शांति और आश्रय है जहाँ आप किसी भी समय वापस जा सकते हैं और स्वयं बन सकते हैं।
अनुभव ने मुझे यह भी सिखाया है कि सत्य के प्रत्येक पुजारी के लिए मौन का सेवन इष्ट है।
मानसिक रस की विकृति से भी हममें उन्मत्तता आ जाती है, तब फिर वह किसी तरह के बंधन को नहीं मानता है, अधैर्य, अशांति से वह उच्छ्वसित हो उठता है।
धर्म पालन करते हुए मन को जो शांति रहनी चाहिए, वह न रहे ; तो यह माना जा सकता है कि कहीं न कहीं हमारी भूल हुई होगी।
शांति से ही हिन्दू-मुस्लिम एकता क़ायम हो सकेगी। मैं जानता हूँ कि यह बड़ा कठिन काम है।
यदि एक पुरुष को मार देने से कुटुंब के शेष व्यक्तियों का कष्ट दूर हो जाए और एक कुटुंब का नाश कर देने से सारे राष्ट्र में शांति छा जाए तो वैसा करना सदाचार का नाशक नहीं है।
भीड़ की सतही कार्यवाहियों की अपेक्षा, कला और साहित्य राष्ट्र की आत्मा को महान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। वे हमें शांति और निरभ्र विचार के राज्य में ले जाते हैं, जो क्षणिक भावनाओं और पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं होते।
जो परस्पर भेद-भाव रखते हैं, वे कभी धर्म का आचरण नहीं करते। वे सुख भी नहीं पाते। उन्हें गौरव नहीं प्राप्त होता तथा उन्हें शांति की वार्ता भी नहीं सुहाती।
जीवन अविकल कर्म है, न बुझने वाली पिपासा है। जीवन हलचल है, परिवर्तन है; और हलचल तथा परिवर्तन में सुख और शांति का कोई स्थान नहीं।
सीमित लोगों से परिचय हो, ज़िंदगी में ख़ुद के लिए वक़्त हो, बिना मतलब दूसरों की दख़लअंदाज़ी न हो, दिमाग़ शांत रहे तो दिल ख़ुश रहता है।
वस्त्र उतारने के काल में ही तीर्थ जल से शीतजन्य त्रास होता है, स्नान कर लेने पर अनुपम ब्रह्मानंद सदृश आह्नदसुख की उपलब्धि होती है। इसी प्रकार प्रारंभ में रणभूमि में शरीर का त्याग करने वालों को विह्वलता होती है किंतु उसके पश्चात् तो मोक्ष-सुख की प्राप्ति से परम शांति मिलती है।
हे सौम्य, जब तक घातक काल समीप नहीं आता, तब तक बुद्धि को शांति में लगाओ क्योंकि मृत्यु इस संसार में सब अवस्थाओं में रहने वाले की सब प्रकार से हत्या करती है।
काफ़्का को उस अजनबी की पूरी पहचान थी जिसे वह अपने अंदर लिए चलता था—वह जानता था कि उसे शांति चाहिए क्योंकि वह मृत्यु का अभिलाषी था।
चेतना जब आत्मा में ही विश्रांति पा जाए, वही पूर्ण अहंभाव है।
‘जनता शांति चाहती है’, ‘हमारी सभ्यता की नींव विश्वबंधुत्व और प्रेम पर पड़नी चाहिए’ आदि-आदि किताबी बातें सुनकर कमीना-से-कमीना देश भी सिर हिलाकर ‘हाँ’ करने से बाज़ नहीं आता और उस राजनीतिज्ञ का यह भ्रम और भी फूल जाता है कि उसने कितनी सच्ची बात कही है।
यह संगीत ही है जो दिल का विस्तार करता है और श्रोता को परमानंद और भय से शांत कर देता है।
हमारे सभी कवियों ने यह माना है कि तपोवन शांतरसास्पद है। तपोवन का जो एक विशेष रस है, वह है शांत रस।
युद्ध इसी मेज़ पर शुरू हुए हैं और समाप्त भी । यह आतंक की परछाईं से छिपने की सटीक जगह है। एक भयावह जीत का जश्न मनाने की जगह भी।
शरद ऋतु की पहली ठंडी रातों की शांति जैसी कोई शांति नहीं है।
हे पृथ्वी! तुम आज की नहीं, जन्म से ही चिरंतन सुंदरी हो! तुम मेरी अनन्त शांति की विश्रामस्थली और अतीत की स्वप्नलीला-भूमि हो।
अशांति असल में असंतोष है।
यदि आदमी शांति से न रहे, कभी अपने विचारों को भीतर से न देखे, जीवन भर दौड़-दंगल में ही रहे और हर वक्त गरम बना रहे तो वह उस शक्ति को पैदा नहीं कर सकता जिसे शौकत अली साहब ‘ठंडी ताकत’ कहा करते थे।
जहाँ-कहाँ भी जो कुछ खाकर, जैसा तैसा वस्त्र पहन कर, जहाँ-कहाँ भी रहकर, जो आत्मतुष्ट रहता है, निर्जन स्थान में रहता है, और दूसरों के संसर्ग को ऐसे त्यागता है, जैसे काँटे को, वह बुद्धिमान शांति-सुख के रस को जानता है और वही ज्ञानी है।
जो पुरुष निश्चय ही अंतरात्मा में ही सुख वाला है, अंतरात्मा में ही शांति वाला है तथा जो अंतरात्मा ज्ञान वाला है, वह योगी स्वयं ब्रह्मरूप होकर ब्रह्म की शांति प्राप्त करता है।
शांत कमरा इतना शांतिपूर्ण और आरामदायक था कि उसमें चिंता नहीं की जा सकती थी।
हे प्रभु! मेरे अंदर दूसरों का ज़ुल्म सहने का स्वभाव और धैर्य पैदा कर, यही मेरे लिए दुधारू गाय है, ताकि मेरा मन बहुत शांत अवस्था में रहता हुआ शांति का दूध पी सके।
शांत रस है परिपूर्णता का रस।
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सत्य शांतम् होने के कारण ही शिवम् है।
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शांति ही प्रार्थना है।
जितेंद्रिय, तत्पर और श्रद्धावान पुरुष ज्ञान को प्राप्त करता है। ज्ञान प्राप्त हो जाने से शीघ्र ही उसको परम शांति प्राप्त हो जाती है।
भारतीय जीवन धीरे-धीरे जीने का जीवन है। उसमें उद्वेग और आवेग नहीं, संतोष और शांति ही उसके मूल आधार हैं।
ओ मेरे स्नेही देश! तुम्हारी दुखी कुटिया में स्वर्ग की शांति है। ऐसी प्रीति, सहज प्राणस्पर्शी भाषा और सेवा का महिमामय त्याग, मैं कहाँ पाऊँगी?
मृत्यु का शोक जैसा बड़ा है उसकी शांति और माधुर्य भी वैसे ही बड़े हैं।
युद्ध की जिम्मेवारी केवल उन्हीं लोगों पर नहीं होती, जो उसकी घोषणा करते हैं। उसकी जिम्मेवारी उन लोगों पर भी होती है, जो समय पर उसे रोकने का प्रयास नहीं करते।
पीढ़ी की निरंतरता की सुनिश्चितता से मिलने वाली शांति में हम अपने तनावों से मुक्ति पाते हैं।
क्या कभी ऐसा हुआ कि आप सोने गए और जागने के बाद भी थकान ही महसूस हो रही हो? ऐसा है तो इसका मतलब आपका मन अशांत है। उसे सच में आराम नहीं मिल रहा।
जब भी आपको ग़ुस्सा आए, तो उसे शांति से गुजरने दें। ग़ुस्सा शांत होने दें। जब आपका ग़ुस्सा शांत हो जाए, तो सोचें और लिखें कि कौन सी भावना ने इस ग़ुस्से को जन्म दिया।
प्रेम, लज्जा, सद्योग, दयार्द्रता तथा सत्य वचन—ये पाँच शांति के स्तम्भ हैं।
देखो कि ईसाई कितनी शांतिपूर्वक मर सकता है।
पृथ्वी पर शांति के लिए, मनुष्य का नए रूप में विकास होना चाहिए जो पहले संपूर्णता को देख सके।
कभी भी अच्छा युद्ध या बुरी शांति नाम की वस्तु नहीं
तुम्हारा 'यदि' एकमात्र शांति-निर्माता है; 'यदि' में बहुत गुण हैं।
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