सौंदर्य पर उद्धरण
सौंदर्य सुंदर होने की
अवस्था या भाव है, जो आनंद और संतोष की अनुभूति प्रदान करता है। सौंदर्य के मानक देश, काल, विषय और प्रसंग में बदलते रहते हैं। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है; जिनमें सुंदरता शब्द, भाव और प्रसंग में प्रमुखता से उपस्थित है।

पृथ्वी अपनी गणना में अद्वितीय है। इसकी सुंदरता को केवल पैदल यात्री ही महसूस कर सकता
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हमारा सारा सौंदर्य जिए हुए और सोचे हुए के बीच के दुखद अंतर्विरोध की छवि है।
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स्त्री को पाकर, स्त्री को समझकर, उसे अपनी बाँहों और आत्मा में महसूस करके ही प्रकृति की गति और प्रकृति की सुंदरता को और प्रकृति के रहस्य को लिया, भोगा और समझा जा सकता है।

स्त्रियों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि सुंदरता उनका छत्र है, इसलिए मन शरीर को आकार देता है और अपने चमकदार पिंजरे में घूमते हुए केवल अपनी जेल को सजाना चाहता है।

जीवन में जो सुंदर है, वह पेंटिंग में ख़राब हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इसमें बहुत अधिक सुंदरता है। एक अच्छी तस्वीर को जिस तरह से चमकना चाहिए, उसके लिए उसमें कुछ बुरा होना आवश्यक है। उसे अँधेरे की आवश्यकता होती है।

जीवन के किसी क्षण में दुनिया की सुंदरता पर्याप्त हो जाती है। आपको इसके फ़ोटो लेने, इसे रँगने, या यहाँ तक कि इसे याद रखने की भी ज़रूरत नहीं है। वह स्वयं में पर्याप्त है।

चेहरे को चेहरा कहने की अपेक्षा उसे अनंत सौंदर्य का दर्शन कहना सत्य के अधिक निकट होगा।

संसार भर में कहाँ है नारी के नेत्र के समान सौंदर्य सिखाने वाला अन्य लेखक?

जो लोग सौंदर्य के उपभोग में उन्मत्त हैं, उनकी यंत्रणा कैसी है, इसका अनुभव मैं भोजन करने के लिए बैठने पर ही करता हूँ। मेरे जीवन में घोर दुःख यह है कि अन्न-व्यंजन थाली में रखते-रखते ही ठंडे हो जाते हैं। उसी प्रकार सौंदर्य-रूपी मोटे चावल का भात है, प्रेम-रूपी केला के पत्तल पर डालते ही ठंडा हो जाता है—फिर कौन रुचि से उसे खाए? अंत में वेश-भूषा-रूपी इमली की चटनी मिलाकर, ज़रा अदरक-नमक के क़तरे डालकर किसी तरह निगल जाना पड़ता है।

दर्पण में उसकी छवि को देख कर एक ख़ूबसूरत महिला पूरी तरह से मान सकती है कि छवि उसकी ही है। एक बदसूरत महिला जानती है कि ऐसा नहीं है।

अगर आप कहीं जाने की राह पर हैं तो ज़िंदगी ख़ूबसूरत है।

दो लोगों का प्यार में दुनिया से दूर, अकेले होना, यह सुंदर है।

जब भी आप अपने आस-पास सुंदरता का निर्माण कर रहे होते हैं, आप अपनी आत्मा को बहाल कर रहे होते हैं।

जो रहस्य से घिरा होता है, वह अधिक सुंदर दिखता है।

ख़ूबसूरत चीज़ें कुछ नहीं बिगाड़तीं।

देखा; किंतु मुझे उसकी सुंदरता के बारे में बताया गया है। मैं जानती हूँ कि उसकी सुंदरता सदैव ही अधूरी और टूटी-फूटी होती है। वह आसमान पर कभी भी पूर्णाकार में प्रकट नहीं होता। यही बात उन सभी चीज़ों के बारे में सही है जिन्हें हम पृथ्वी वाले जानते हैं। जिस तरह इंद्रधनुष का वृत्त खंडित होता है, उसी तरह जीवन भी अधूरा है और हममें से हरेक के लिए टूटा-फूटा है। हम ब्राउनिंग के इन शब्दों, ‘‘पृथ्वी पर टूटे हुए बिंब, स्वर्ग में एक पूर्ण चंद्र’’ का अर्थ तब तक नहीं समझ सकेंगे, जब तक हम अपने खंड जीवन से अनंत की ओर क़दम नहीं बढ़ा लेते।

औरत जब लड़की में बदल जाए तो बिल्कुल चुप रहो। थक जाए, चुप हो जाए, तो मर्दों का बनाया सबसे झूठा वाक्य बोलो, आप तो ग़ुस्से में और सुंदर हो जाती हैं।

तुम्हें मुझे समझना होगा, क्योंकि मैं कोई किताब नहीं हूँ। इसलिए मेरे मरने के बाद मुझे कोई नहीं पढ़ सकता, मुझे जीते जी ही समझना होगा।

यह सब झूठ था, सब बदबू कर रहा था, झूठ की बदबू, यह सब अर्थ, ख़ुशी और सुंदरता का भ्रम देता था।

मौत सुंदरता की जननी है। केवल नाशवान वस्तु सुंदर हो सकती है, इसीलिए हम पर नक़ली फूलों का कोई असर नहीं होता है।

हर स्त्री जानती है कि उसकी अन्य सभी उपलब्धियों के बावजूद, अगर वह सुंदर नहीं है तो वह असफल है।

वह कभी नहीं जान पाएगा कि मैं उससे प्रेम करती हूँ : और यह भी कि ऐसा उसकी ख़ूबसूरती के चलते नहीं है, बल्कि वह मुझसे भी बढ़कर मेरा हिस्सा है। हम दोनों की आत्माएँ जिस भी चीज़ की बनी हों, वे एक हैं।

आप जैसे ही अपनी आँखों से सौंदर्य का आनंद लेते हैं, आपका दिमाग़ आपको बताता है कि सुंदरता खोखली है और सौंदर्य ख़त्म हो जाता है।

सौंदर्यानुभूति, मनुष्य की अपने से परे जाने की, व्यक्ति-सत्ता का परिहार कर लेने की, आत्मबद्ध दशा से मुक्त होने की, मूल प्रवृत्ति से संबद्ध है।

जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचि एक विशेष शैली को दूसरी शैली के विरुद्ध स्थापित करती है।

दुनिया में सबसे ख़ूबसूरत चीज़, निस्संदेह, दुनिया ही है।

आंतरिक सत्यों में हमारी अंधता के कारण कोई अंतर नहीं पड़ता। अधिकतम सौंदर्य-दृष्टि तक केवल कल्पना के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है।

हमें अपनी असंभव सुंदर योजनाओं पर यक़ीन करना पड़ता है।

इस तंत्र (जो प्रॉपगैंडा को फैलाने में मदद करता है) की ख़ूबसूरती ही यही है कि वह असहमतियों और असुविधाजनक जानकारियों को नियंत्रण में और हाशिए पर रखता है। ताकि उनका होना यह तो तय कर ही दे कि तंत्र अखंड नहीं है, लेकिन ये असहमतियाँ इतनी बड़ी भी न हों कि अधिकारिक एजेंडे में कोई मानीख़ेज़ हस्तक्षेप कर सकें।

मनोहारी वस्तु सुंदर नहीं हो सकती।

अगर कोई सुंदर चीज़ हमेशा के लिए सुंदर रहती, तो मुझे ख़ुशी होती, लेकिन फिर भी मैं उसे ठंडी नज़र से देखता।

समुद्र हमारी नज़रों में सिर्फ़ इस वजह से कम सुंदर नहीं हो जाता है, क्योंकि हम जानते हैं कि यह कभी-कभी जहाज़ों को तबाह कर देता है।

हमारे यहाँ के मज़दूर, चित्रकार तथा लकड़ी और पत्थर पर काम करने वाले भूखों मरते हैं तब हमारे मंदिरों की मूर्तियाँ कैसे सुंदर हो सकती हैं?

स्त्री का गौरव, सौंदर्य, महत्त्व स्थिरता में है।

रचना भव्य होती है, किंतु किसी अन्य के आलोक से प्रकाशित होकर उसके सौंदर्य में और भी अधिक निखार आ जाता है।


अगर मैं कोई ऐसा सुंदर वाक्य लिखूँ जिसमें संयोगवश दो लयबद्ध पंक्तियाँ हों तो वह एक भारी भूल होगी।

सच्चाई हमेशा सुंदर नहीं है, लेकिन इसके लिए ललक सुंदर है।

सुंदरता में हमेशा कुछ सुदूर होता है।

रिल्के के शब्दों में—हम जिसे सौंदर्य कहते हैं, वह आतंक का पहला संकेत है।

अगर सभी इतने अकर्मण्य नहीं होते तो उन्हें मालूम होता कि सुंदरता सुंदरता ही है, चाहे जब वह चिड़चिड़ी और उत्तेजक हो, केवल तभी नहीं जब वह स्वीकार्य और शास्त्रीय हो।

निश्चय ही पति नारी के लिए आभूषणों की अपेक्षा भी अधिक शोभा का हेतु है।


शास्त्रों के द्वारा प्रदत्त विवेक विद्वानों के मन में तभी तक प्रभाव दिखलाता है, जब तक वह कमलनयनी सुंदरियों के नेत्रबाणों का शिकार नहीं बनता।

इस सुंदरी का शरीर मनोहर है, वाणी रम्य है तथा चरण-निक्षेप अलौकिक है।


कुरूप व्यक्ति जब तक दर्पण में अपना मुँह नहीं देख लेता, तब तक वह अपने को दूसरों से अधिक रूपवान समझता है।

आत्म-संयम अर्थात् आत्मानुशासन ही कलात्मक सौंदर्य को सुंदर एवं व्यवस्था को सुव्यवस्थित और आनंददायक बनाता है।
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उपासना बाह्य आवरण है उस विचार-निष्ठा का, जिसमें हमें विश्वास है। जिसकी दुःख-ज्वाला में मनुष्य व्याकुल हो जाता है, उस विश्व-चिता में मंगलमय नटराज के नृत्य का अनुकरण, आनंद की भावना, महाकाल की उपासना का बाह्य स्वरूप है और साथ ही कला की, सौंदर्य की अभिवृद्धि है, जिससे हम बाह्य में, विश्व में, सौंदर्य-भावना को सजीव रख सके हैं।

सवाल यह नहीं कि सुंदर कौन है। सवाल यह है कि हम सुंदर किसे मानते हैं।
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