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आचार्य रामचंद्र शुक्ल

1884 - 1941 | बस्ती, उत्तर प्रदेश

समादृत आलोचक, निबंधकार, साहित्य-इतिहासकार, कोशकार और अनुवादक। हिंदी साहित्य के इतिहास और आलोचना को व्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिए प्रतिष्ठित।

समादृत आलोचक, निबंधकार, साहित्य-इतिहासकार, कोशकार और अनुवादक। हिंदी साहित्य के इतिहास और आलोचना को व्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिए प्रतिष्ठित।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 58

पद 5

 

कहानी 1

 

आत्मकथ्य 1

 

आलोचनात्मक लेखन 1

 

निबंध 2

 

उद्धरण 7

इसी1 के द्वारा सत्ता का आभास मिल सकता है। यही अभेद ज्ञान और धर्म दोनों का लक्ष्य है। विज्ञान इसी अभेद की खोज में है, धर्म इसी की ओर दिखा रहा है।
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ह्रदय के लिए अतीत एक मुक्ति-लोक है जहाँ वह अनेक प्रकार के बंधनों से छूटा रहता है और अपने शुद्ध रूप में विचरता है।

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अज्ञान अंधकार-स्वरूप है। दिया बुझाकर भागने वाला यही समझता है कि दूसरे उसे देख नहीं सकते, तो उसे यह भी समझ रखनी चाहिए कि वह ठोकर खाकर गिर भी सकता है।

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‘भेदों में अभेद’ दृष्टि ही सच्ची तत्त्व-दृष्टि है।

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हमारा भविष्य जैसे कल्पना के परे दूर तक फैला हुआ है, हमारा अतीत भी उसी प्रकार स्मृति के पार तक विस्तृत है।

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पुस्तकें 2

 

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