Font by Mehr Nastaliq Web

व्यवहार पर उद्धरण

आदमी जब बिगड़ता है तो स्वभाव से ही कुछ ऐसा है कि जब वह एक चीज़ में बिगड़ता है, तो पीछे सब चीज़ों में ही बिगड़ जाता है।

महात्मा गांधी

मनुष्य-स्वभाव की एक और विशेषता यह है कि वह अपने को प्रकट किए बिना नहीं रह सकता। असभ्य से असभ्य जंगली लोगों से लेकर, संसार के अत्यंत सभ्य लोगों तक में—अपने विचारों और मनोभावों को प्रकट करने की प्रबल इच्छा प्रस्तुत रहती है।

श्यामसुंदर दास

वैज्ञानिक ढंग या स्वभाव जीवन का ढंग है, या कम-से-कम उसे ऐसा होना चाहिए।

जवाहरलाल नेहरू

सत्य बोलना और सत्य के अनुसार आचरण करना स्वभाव होना चाहिए।

महात्मा गांधी
  • संबंधित विषय : सच

यदि आपका दृष्टिकोण अच्छा है, तो प्रतिक्रिया भी अच्छी मिलेगी। अगर दृष्टिकोण ग़लत है, तो प्रतिक्रिया भी ग़लत ही मिलेगी।

जवाहरलाल नेहरू

जलती हुई आग से सुवर्ण की पहचान होती है, सदाचार से सत्य पुरुष की, व्यवहार से श्रेष्ठ पुरुष की, भय प्राप्त पर शूर की, आर्थिक कठिनाई में धीर की और कठिन आपत्ति में शत्रु एवं मित्र की परीक्षा होती है।

वेदव्यास

धर्म विश्वास की अपेक्षा व्यवहार अधिक है।

सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

मार्ग में चलते हुए इस प्रकार चल कि लोग तुझे सलाम कर सकें और उनसे ऐसा व्यवहार कर कि वे तुझे देख कर उठ खड़े हों। यदि मस्जिद में जाता है तो इस प्रकार जा कि लोग तुझे इमाम बना लें।

उमर ख़य्याम

संसार में जो लोग बड़े काम करने आते हैं, उनका व्यवहार हमारे समान साधारण लोगों के साथ यदि अक्षर-अक्षर मिले, तो उन्हें दोष देना असंगत है, यहाँ तक कि अन्याय है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

मनुष्य जाने-अनजाने भी प्राय: अतिशयोक्ति करता है अथवा जो कहने योग्य है, उसे छिपाता है, या दूसरे ढंग से कहता है। ऐसे संकटों से बचने के लिए भी मितभाषी होना आवश्यक है।

महात्मा गांधी

ब्राह्म-व्यवहार में जो परिवर्तन होता है, उसका प्रभाव बाहर तक ही सीमित नहीं रहता—अंतःप्रकृति में भी वह काम करता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

मैं ऐसे किसी समय की कल्पना नहीं कर सकता जब पृथ्वी पर व्यवहार में एक ही धर्म होगा।

महात्मा गांधी

व्यवहार में जो काम दे, वह धर्म कैसे हो सकता है

महात्मा गांधी

नम्र व्यवहार सबके लिए अच्छा है, पर उस में भी धनवानों के लिए तो अमूल्य धन के समान होता है।

तिरुवल्लुवर
  • संबंधित विषय : धन

उपकारों को भूलना मनुष्य का स्वभाव है। अतः यदि हम दूसरों से कृतज्ञता की आशा करेंगे तो हमें व्यर्थ ही सर दर्द मोल लेना पड़ेगा।

डेल कार्नेगी

न्यायप्रिय स्वभाव के लोगों के लिए क्रोध एक चेतावनी होता है, जिससे उन्हें अपने कथन और आचार की अच्छाई और बुराई को जाँचने और आगे के लिए सावधान हो जाने का मौक़ा मिलता है। इस कड़वी दवा से अक्सर अनुभव को शक्ति, दृष्टि को व्यापकता और चिंतन को सजगता प्राप्त होती है।

प्रेमचंद

हर व्यक्ति को आत्मप्रेम होता है इसलिए उसकी पाशविक वृत्ति, अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए दूसरों से झगड़ा करने के लिए प्रेरित करती रहती है।

रवींद्रनाथ टैगोर

मनुष्य अवकाश ही अवकाश चाहता है और काम को बेगार समझता है|

महात्मा गांधी

जो योग का आचरण करता है, जिसका हृदय शुद्ध है, जिसने स्वयं को जीत लिया है, जो जितेंद्रिय है और जिसकी आत्मा सब प्राणियों की आत्मा बनी है, वह कर्म करता हुआ भी अलिप्त रहता है।

वेदव्यास

अपनी शक्ति के अनुसार उत्तम खाद्य पदार्थ देने, अच्छे बिछौने पर सुलाने, उबटन आदि लगाने, सदा प्रिय बोलने तथा पालन-पोषण करने और सर्वदा स्नेहपूर्ण व्यवहार के द्वारा माता-पिता पुत्र के प्रति जो उपकार करते हैं, उसका बदला सरलता से नहीं चुकाया जा सकता।

वाल्मीकि

जिस तरह से विधाता ने सृष्टि को गढ़ा; उस तरह से मनुष्य ने नहीं गढ़ना चाहा, उस दृष्टि से मनुष्य ने सृष्टि को देखना भी नहीं चाहा।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

यदि तदनुसार आचरण नहीं किया तो केवल कहने या पढ़ने से क्या लाभ?

संत तुकाराम

जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल चलता है, तथा माता-पिता के प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है, वास्तव में वही पुत्र है।

वेदव्यास

पुरुष का व्यवहार मोटे रूप में सुस्पष्ट हो यही अच्छा है, लेकिन स्त्रियों के व्यवहार में अनेक आवरण-आभास-इंगित रहने चाहिए।

रवींद्रनाथ टैगोर

आचरण में सामंजस्य, संगति अवश्य चाहिए।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जो उदासीन रहने के कारण त्रिगुणों से चंचल नहीं होता और गुण ही अपना कार्य करते हैं, ऐसा मानकर ही जो स्वस्थ रहता है तथा कंपायमान नहीं होता, जो सुख-दुःख को समान मानता है, जो अपने में ही आनंदित रहता है, जो मिट्टी, पत्थर और स्वर्ण को समान मानता है, जो प्रिय अथवा अप्रिय की प्राप्ति होने पर सम अवस्था में रहता है, जो धैर्यवान है, जिसको अपनी निंदा और स्तुति समान प्रिय होती है, जिसको अपने मान और अपमान समान लगते हैं, जो मित्र और शत्रु के साथ समभाव से व्यवहार करता है तथा जो सब कार्यारंभों को त्याग देता है, वही त्रिगुणातीत कहा जाता है।

वेदव्यास

नम्रता अनुकूल आचरण स्त्रियों के हृदय के लिए बंधन है।

अश्वघोष

व्यवहार में लाए जाने पर महान विचार ही महान कर्म बन जाते हैं।

विलियम हेज़लिट

कुलीन लोग स्नेह से व्याकुल होकर भी देशकाल के अनुरूप आचार का अभिनंदन करते हैं।

बाणभट्ट

हमारे समाज का सुधार हमारी अपनी भाषा से ही हो सकता है। हमारे व्यवहार में सफलता और उत्कृष्टता भी हमारी अपनी भाषा से हो जाएगी।

महात्मा गांधी

जनता का अर्थ-प्रेम की शिक्षा देकर उसे पशु बनाने की चेष्टा अनर्थ करेगी। उसमें ईश्वर भाव का, आत्मा का निवास होगा तो सब लोग उस दया, सहानुभूति और प्रेम के उद्गम से अपरिचित हो जाएँगे जिससे आपका व्यवहार टिकाऊ होगा।

जयशंकर प्रसाद

व्यवहार में गंभीरता, वचन में गंभीरता और भावों में गंभीरता—इन तीन गंभीरताओं के साथ कृष्ण का स्मरण करें तो महामंगल मिलेगा।

माधवदेव

कवि केवल सृष्टि ही नहीं करता सृष्टि की रक्षा भी करता है। जो स्वभाव से ही सुंदर है उसे और भी सुंदर करके प्रकट करना जैसे उसका एक काम है, वैसे ही जो सुंदर नहीं है, उसे असुंदर के हाथ से बचा लेना भी उसका दूसरा काम है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

भाषण अनेक बार हमारे आचरण की ख़ामियों का दर्पण होता है। बहुत बोलने वाला कदाचित् ही अपने कहे का पालन करता है।

महात्मा गांधी

यह धारणा कि काव्य व्यवहार का बाधक है, उसके अनुशीलन से अकर्मण्यता आती है, ठीक नहीं। कविता तो भावप्रसार द्वारा कर्मण्य के लिए कर्मक्षेत्र का और विस्तार कर देती है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

अत्यंत क्रोधी स्वभाव का नेत्रधारी भी अंधा ही होता है।

बाणभट्ट

घोड़ा, शस्त्र, शास्त्र, वीणा, वाणी, पुरुष और स्त्री—ये पुरुष विशेष को प्राप्त होकर योग्य अयोग्य होते हैं अर्थात् इनके स्वामी जैसे इनका व्यवहार करते हैं वैसे ही हो जाते हैं।

विष्णु शर्मा

व्यवहार की छोटी-छोटी बातें ही व्यक्ति के चरित्र का दर्पण होती हैं, कि लंबी-चौड़ी बातें।

सैमुअल स्माइल्स

बड़ी त्रासदी यह है कि मानव जाति अपने ख़ुद के अनुभवों से फ़ायदा नहीं उठाती और लगातार उसी रास्ते की ओर बढ़ती रहती है, जिसने उसे पहले बर्बादी में झोंका था।

जवाहरलाल नेहरू

मनुष्य का जागरण इतना सहज नहीं है, इसीलिए उसका इतना अधिक मूल्य है।

रवींद्रनाथ टैगोर

समूह में व्यक्ति की प्रवृत्तियाँ सामान्य स्थिति से भिन्न हो जाती हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

पहले से कोई संबंध होने पर भी जो मित्रता का व्यवहार करे वही बंधु, वही मित्र, वही सहारा और वही आश्रय है।

वेदव्यास

भय जब स्वभावगत हो जाता है, तब कायरता या भीरुता कहलाता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

सुसंस्कृत स्वभाव इस बात को जानकर परेशान होता है कि कोई उसके प्रति आभार मानता है किंतु विकृत स्वभाव यह जानकर परेशान होता है कि वह स्वयं किसी के प्रति आभारी है।

फ़्रेडरिक नीत्शे

यदि मानव का स्वभाव इतना अधिक पेचीदा नहीं होता, बल्कि भेड़ियों के किसी दल की तरह सरल होता, तो आज लुटेरों के दलों ने सारी धरती को ही रौंद डाला होता।

रवींद्रनाथ टैगोर

एक व्यक्ति की भावनाओं का अतिशय आकुल उच्छ्वास, किसी बिंदु पर सार्वभौम मनुष्यता से जुड़कर निस्सीम हो जाता है—यह वाल्मीकि परख लेते हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

आभार शब्द एक अहसास को प्रेरित करता है। यह अहसास मस्तिष्क को रसायनों के एक कॉकटेल से सुपरचार्ज करता है।

अशदीन डॉक्टर

अपने अधिकांश काम हम संस्कारों के अधीन होकर अंधभाव से करते हैं। निजत्व किसे कहते हैं, हम नहीं जानते और जानने की आवश्यकता अनुभव करते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

मनुष्य का व्यक्तित्व ऐसा नहीं होता कि वह सबसे टूटकर अलग जी सके।

रामधारी सिंह दिनकर

व्यवहार के कुछ स्वरूप अविवेकपूर्ण प्रतीत होते हो, पर उसमें भी एक आंतरिक तर्क होता है।

श्यामाचरण दुबे