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समाज पर उद्धरण

पुरुषों और स्त्रियों को जिस समाज में वे रहते हैं, मुख्यतः उसकी राय और शिष्टाचार के अनुरूप शिक्षित होना चाहिए।

मैरी वोलस्टोनक्राफ़्ट

लेखक—जो कोई भी सही अर्थ में आधुनिक है और बुद्धिजीवी है, उसे अपने जीवन और अपने समाज के हर मोर्चे पर पूरी सचाई, पूरी ईमानदारी के साथ पक्षधर होकर, क्रांतिकारी होकर, अपने वर्ग, अपने समूह, अपने जुलूस का मुखपात्र, प्रवक्ता होकर सामने आना होगा—उसे आख़िरी क़तार में सिर झुकाए हुए खड़े रहना नहीं होगा।

राजकमल चौधरी

सभी विफल व्यक्ति—विक्षिप्त व्यक्ति, मनोरोगी, अपराधी, शराबी, समस्याग्रस्त बच्चे, आत्महत्या करने वाले, विकृत और वेश्याएँ—इसलिए विफल हैं, क्योंकि उनमें सामाजिक संबंध की कमी है।

अल्फ़्रेड एडलर

समाज ने स्त्रीमर्यादा का जो मूल्य निश्चित कर दिया है, केवल वही उसकी गुरुता का मापदंड नहीं। स्त्री की आत्मा में उसकी मर्यादा की जो सीमा अंकित रहती है, वह समाज के मूल्य से बहुत अधिक गुरु और निश्चित है, इसी से संसार भर का समर्थन पाकर जीवन का सौदा करने वाली नारी के हृदय में भी सतीत्व जीवित रह सकता है और समाज भर के निषेध से घिर कर धर्म का व्यवसाय करने वाली सती की साँसें भी तिल-तिल करके असती के निर्माण में लगी रह सकती हैं।

महादेवी वर्मा

समाज धर्म के कारण से संगठित रहते हैं चाहे लोग उसका (धर्म का प्रदर्शन करें या उसे अपने हृदय में रखें। जब धर्म समाप्त हो जाता है तब पारस्परिक विश्वास भी नष्ट हो जाता है, लोगों का आचरण भ्रष्ट हो जाता है और उसका फल राष्ट्र को भुगतना पड़ता है। धर्म सुलाने वाला नहीं है अपितु शक्ति का आधार-स्तंभ है।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

एक पुरुष के प्रति अन्याय की कल्पना से ही सारा पुरुष समाज उस स्त्री से प्रतिशोध लेने को उतारू हो जाता है और एक स्त्री के साथ क्रूरतम अन्याय का प्रमाण पाकर भी सब स्त्रियाँ उसके अकारण दंड को अधिक भारी बनाए बिना नहीं रहतीं।

महादेवी वर्मा

कोई समाज और धर्म स्त्रियों के नहीं। बहन! सब पुरुषों के हैं। सब हृदय को कुचलने वाले क्रूर हैं, फिर भी मैं समझती हूँ कि स्त्रियों का एक धर्म है, वह है आघात सहने की क्षमता रखना। दुर्देव के विधान ने उसके लिए यही पूर्णता बना दी है। यह उनकी रचना है।

जयशंकर प्रसाद

भारतीय धर्म ने और भारतीय संस्कृति ने कभी नहीं कहा कि केवल हमारा ही एक धर्म सच्चा है और बाक़ी के झूठे हैं। हम तो मानते हैं कि सब धर्म सच्चे हैं, मनुष्य के कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं। सब मिल कर इनका एक विश‍ाल परिवार बनता है। इस पारिवारिकता को और आत्मीयता को को जो चीज़ें खंडित करती है उनकी छोड़ देने के लिए सब को तैयार रहना ही चाहिए। हर एक धर्म-समाज अंतर्मुख होकर अपने दिल को टटोल कर देखे कि जागतिक मानवीय एकता का द्रोह हमसे कहाँ तक हो रहा है।

काका कालेलकर

समाज तुम्हें जो छवि देता है उसके बजाय, अपनी ख़ुद की छवि गढ़ने का निर्णय लेने के लिए बहुत साहस और स्वतंत्रता की ज़रूरत है, लेकिन जैसे-जैसे तुम आगे बढ़ते जाते हो, यह आसान हो जाता है।

जेर्मेन ग्रीयर

सच्चे लेखक का सिद्धांत : अच्छा काम, अच्छी कविता की तरह संक्रामक होता है। इसका आरंभ एक ख़ामोश कमरे में होता है। फिर यह लहर की तरह समाज में फैलता है और सामाजिक जीवन को बदल डालता है। एक व्यक्ति की पूर्णता की पिपासा से गहरा सामाजिक बदलाव जन्म ले सकता है।

हुआन रामोन हिमेनेज़

मनुष्य की सार्थक उपलब्धियाँ वे हैं जो सामाजिक रूप से उपयोगी हैं।

अल्फ़्रेड एडलर

रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज सत्य।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

मेरा यह मानना है कि आजकल भले मानव का अस्तित्व केवल समाज के सीमांत पर ही संभव है, जहाँ आदमी को भूखे मरने या मौत तक पत्थरबाज़ी का जोख़िम उठाना पड़ता है। इन परिस्थितियों में, विनोदपूर्णता बहुत मदद करती है।

हाना आरेन्ट

उदासी की कोख से बोध और व्यंग्य उत्पन्न होते हैं; उदासी असहज और अप्रिय है, इसीलिए उपभोक्ता समाज इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता है।

जेर्मेन ग्रीयर

जो समाज इन्हें वीरता, साहस और त्याग भरें मातृत्व के साथ स्वीकार नहीं कर सकता, क्या वह इनकी कायरता और दैन्य भरी मूर्ति को ऊँचे सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर पूजेगा?

महादेवी वर्मा

नारी प्रकृति के विधान से नहीं, समाज के विधान से भोग्य है। प्रकृति में और समाज में स्त्री और पुरुष अन्योन्याश्रय हैं।

यशपाल

तुम उसी सनातन पुरुष-समाज के नवीन प्रतिनिधि हो जिसने युगों से नारी को छल से ठगकर, बल से दबाकर विनय से बहकाकर और करुणा से गलाकर उसे हाड़माँस की बनी निर्जीव पुतली का रूप देने में कोई बात उठा नहीं रखी है।

इलाचंद्र जोशी

संस्कृति का नेतृत्व करना जिस वर्ग के हाथ में होता है, वह समाज और संस्कृति के क्षेत्र में अपनी भाव-धारा और अपनी जीवन-दृष्टि का इतना अधिक प्रचार करता है, कि उसकी एक परंपरा बन जाती है। यह परंपरा भी इतनी पुष्ट, इतनी भावोन्मेषपूर्ण और विश्व-दृष्टि-समन्वित होती है, कि समाज का प्रत्येक वर्ग आच्छन्न हो जाता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

संसार में शरीरधारियों की दरिद्रता ही मृत्यु है और ही आयु है।

क्षेमेंद्र

आप मेरे शरीर पर बंधन लगा सकते हैं, मेरे हाथों को बाँध सकते हैं, मेरे कार्यों को नियंत्रित कर सकते हैं : आप सबसे मज़बूत हैं, और समाज आपकी शक्ति को बढ़ा देता है; लेकिन मेरी इच्छा के साथ, आप कुछ नहीं कर सकते हैं।

जॉर्ज सैंड

परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चोड़ाई में ले जाता है। परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही समाज की असली प्रगति है।

रामधारी सिंह दिनकर

अच्छा काम है लघु उद्योग चलाना। सामाजिक अपराध-बोध से आदमी बचा रहता है। लघु शब्द बड़ा करामाती है। बड़े उद्योग चलाओगे तो शोषक कहलाओगे, लघु उद्योग चलाओगे तो देश सेवक।

मृदुला गर्ग

इतिहास घटनाओं के रूप में अपनी पुनरावृत्ति नहीं करता। परिवर्तन का सत्य ही इतिहास का तत्त्व है परंतु परिवर्तन की इस श्रृंखला में अपने अस्तित्व की रक्षा और विकास के लिए व्यक्ति और समाज का प्रयत्न निरंतर विद्यमान रहा है। वही सब परिवर्तनों की मूल प्रेरक शक्ति है।

यशपाल

अपने मंदिरों को अछूतों के लिए खोलकर सच्चे देव-मंदिर बनाइए। आपके ब्राह्मण-ब्राह्मणेतर के झगड़ों की दुर्गंध भी कँपकँपी लाने वाली है। जब तक आप इस दुर्गंध को नहीं मिटाएँगे, तब तक कोई काम नहीं होगा।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

जगत् में सब कुछ क्षण-भंगुर है, केवल एक वस्तु नष्ट नहीं होती और वह वस्तु है भाव या आदर्श, हमारे आदर्श ही हमारे समाज की आशा हैं।

सुभाष चंद्र बोस

जब संस्कार और अनुकरण की आवश्यकता समाज में मान ली गई, तब हम परिस्थिति के अनुसार मानसिक परिवर्तन के लिए क्यों हिचकें? मेरा ऐसा विश्वास है कि प्रसन्नता से परिस्थिति को स्वीकार करके जीवन-यात्रा सरल बनाई जा सकती है।

जयशंकर प्रसाद

मेरी अहिंसा का सिद्धांत एक अत्यधिक सक्रिय शक्ति है। इसमें कायरता तो दूर, दुर्बलता तक के लिए स्थान नहीं है। एक हिंसक व्यक्ति के लिए यह आशा की जा सकती है कि वह किसी दिन अहिंसक बन सकता है, किंतु कायर व्यक्ति के लिए ऐसी आशा कभी नहीं की जा सकती। इसीलिए मैंने इन पृष्ठों में अनेक बार कहा है कि यदि हमें अपनी, अपनी स्त्रियों की और अपने पूजास्थानों की रक्षा सहनशीलता की शक्ति द्वारा अर्थात् अहिंसा द्वारा करना नहीं आता, तो अगर हम मर्द हैं तो, हमें इन सबकी रक्षा लड़ाई द्वारा कर पाने में समर्थ होना चाहिए।

महात्मा गांधी

आज के समाज में प्रतिभा तो बहुत है, परंतु श्रद्धा नहीं है। ज्ञान तो है परंतु व्यावहारिक बुद्धि नहीं है। आडंबरपूर्ण सभ्यता तो है, परंतु प्रेम सहानुभूति नहीं है।

सैमुअल स्माइल्स

दुर्गम वनों में आनंद होता है और एकाकी समुद्र तट पर हर्षोन्माद। गहरे समुद्र के तट के जनशून्य स्थान में भी समाज होता है और सागर के गर्जन में संगीत। मैं मानव को कम प्रेम नहीं करता, पर प्रकृति को अधिक प्रेम करता हूँ।

लॉर्ड बायरन

लोगों की मदद करने से बढ़कर ख़तरनाक काम कोई नहीं है। भलाई योजनाबद्ध तरीके से की जाए तो भले के बजाय बुरा होने की पूरी गुंजाइश रहती है।

मृदुला गर्ग

अगर समाज में रहने वाले हर पति को अपनी पत्नी से प्यार होगा और हर पत्नी को पति से, तो समाज की भला कौन परवाह करेगा? बच्चों की परवरिश बन्द हो जाएगी। व्यापार-व्यवसाय ठप्प हो जाएँगे। राजनीति का भट्टा बैठ जाएगा। बड़े-बूढ़े मर-खप जाएंगे। सभी स्त्री-पुरुष एक-दूसरे में डूबे रहेंगे और देश रसातल को चला जाएगा। प्यार होने पर और कुछ नहीं सूझता, है न? हमारा समाज कितना सूझ-बूझ वाला है, अपनी सुरक्षा का कितना बढ़िया उपाय ढूंढ निकाला है। तयशुदा ब्याह (अरेंज्ड मैरिज)। है न?

मृदुला गर्ग

भारत में जो ईश्वर को मानव-मन से निकालने का उपदेश देता है, वह सामाजिक विघटन का उपदेश देता है।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

बुरी पुस्तकें एक ऐसा विष होती हैं, जो समाज में बुराई के बीज डालती हैं। इन पुस्तकों के लेखक अपनी क़ब्रों से भी भावी पीढ़ियों की हत्या करते रहते हैं।

सैमुअल स्माइल्स

अभिमान एक व्यक्तिगत गुण है, उसे समाज के भिन्न-भिन्न व्यवसायों के साथ जोड़ना ठीक नहीं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

तुम झूठ से शायद घृणा करते हो, मैं भी करता हूँ; परंतु जो समाजव्यवस्था झूठ को प्रश्रय देने के लिए ही तैयार की गई हैं, उसे मानकर अगर कोई कल्याण-कार्य करना चाहो, तो तुम्हें झूठ का ही आश्रय लेना पड़ेगा।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

अजनबीपन प्रेम के अभाव का द्योतक है; संन्यास भविष्य की उज्ज्वलता के विषय में निराशा का परिणाम है। और अनास्था समाज के प्रतिष्ठित कहे जाने वाले लोगों के आचरणों के भोग-परायण होने का फल है। इसमें आशा का केवल एक ही स्थान है—वह है साधारण जनता का स्वस्थ मनोबल।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

अस्पृश्य तो वे हैं जो पापात्मा होते हैं। एक सारी जाति को अस्पृश्य बनाना एक बड़ा कलंक है।

महात्मा गांधी

मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है।

अरस्तु

आदमी सभ्य जो हो गया, समाज से विद्रोह करता है तो स्वयं अपने को अपराधी मान, सजा सुना देता है।

मृदुला गर्ग

कौन कहेगा कि महत्त्वशाली व्यक्तियों के सौभाग्य-अभिनय में धूर्तता का बहुत हाथ होता है। जिसके रहस्यों को सुनने से रोम कूप स्वेद जल से भर उठे, जिसके अपराध का पात्र छलक रहा है, वही समाज का नेता है। जिसके सर्वस्व-हरणकारी करों से कितनों का सर्वनाश हो चुका है, वही महाराज है। जिसके दंडनीय कार्यो का न्याय करने में परमात्मा के समय लगे, वही दंड-विधायक है।

जयशंकर प्रसाद

धर्म और रिलिजन' एक नहीं है। ये अलग धर्म, पंथ और संप्रदाय जिस हद तक धर्म या सार्वभौम धर्म का उपजीवन करते हैं उस हद तक ही इन सारे धर्मों की शक्ति और पवित्रता है। इन सारे अलग-अलग धर्मों ने विशिष्ट ग्रंथ, विशिष्ट रूढ़ि और विशिष्ट व्यक्तियों के साथ लोगों को बाँधकर अपने को बिगाड़ दिया है। धर्म के ग्रंथ-परतंत्र, व्यक्ति-परतंत्र, या रूढ़ि-परतंत्र नहीं करना चाहिए था। धर्म के स्वयं-शासित और स्वयंभू रखना चाहिए। हर-एक युग के श्रेष्ठ पुरुषों के हृदय में जो धर्मभाव जाग्रत होता है। उसी के अनुसार सबको चलना चाहिए। ऐसे सारवभौम, सर्वकल्याणकारी, सर्वोदयी धर्म के द्वारा ही व्यक्ति का और समाज का जीवन कृतार्थ होता है।

काका कालेलकर

प्रकृति में विषमता तो स्पष्ट है। नियंत्रण के द्वारा उसमें व्यावहारिक समता का विकास होगा। भारतीय आत्मवाद की मानसिक समता ही उसे स्थायी बना सकेगी। यात्रिंक सभ्यता पुरानी होते ही ढीली होकर बेकार हो जाएगी। उसमें प्राण बनाए रखने के लिए व्यावहारिक समता के ढाँचे या शरीर में, भारतीय आत्मिक साम्य की आवश्यकता कब मानव समाज समझ लेगा, यही विचारने की बात है। मैं मानता हूँ कि पश्चिम एक शरीर तैयार कर रहा है किंतु उसमें प्राण देना पूर्व के अध्यात्मवादियों का काम है। यही पूर्व और पश्चिम का वास्विक संगम होगा।

जयशंकर प्रसाद

सामाजिक और राजनैतिक उन्नति प्रेम और लगन से पैदा होती है, कि उपदेशों और लेक्चरबाजी से।

लाला हरदयाल

भारतीय नारी चाहे समाज के किसी भी स्तर में, किसी भी स्थिति में जीवन क्यों बिताती हो, उसकी आत्मा अपनी मूलगत महानता का त्याग कभी नहीं करती।

इलाचंद्र जोशी

शब्दों की शक्तियों का जितना ही अधिक बोध होगा अर्थबोध उतना ही सुगम्य होगा। इसके लिए पुरातन साहित्य का अनुशीलन तो करना ही चाहिए, समाज का व्यापक अनुभव भी प्राप्त करना चाहिए।

त्रिलोचन

भारतीय समाज ने बंधन को सत्य मानकर संसार को बहुत बड़ी चीज़ दी है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

समाज की गति के संचालन का कार्य जो शक्ति करती है, वह मुख्यतः प्रतिबंधक नियमों पर बल देती है।

त्रिलोचन

जब मैं वापस चीन लौटा (अमेरिका से), मेरे पास तो अमेरिकी पासपोर्ट था, ही पत्नी थी और ही यूनिवर्सिटी की कोई डिग्री। चीनी समाज के हिसाब से मैं बिल्कुल असफल था।

आई वेईवेई

किसी भी समाज को अनिवार्यतः अपनी भाषा में ही जीना होगा। नहीं तो उसकी अस्मिता कुंठित होगी ही होगी और उसमें आत्म-बहिष्कार या अजनबियत के विचार प्रकट होंगे ही।

अज्ञेय

आज हर वो शख़्स दानिशवर, शाइर और नक़्क़ाद होने का मुद्दई है; जो समाज का सबसे नालायक़ फ़र्द (व्यक्ति) हो।

जौन एलिया