देश पर उद्धरण

देश और देश-प्रेम कवियों

का प्रिय विषय रहा है। स्वंतत्रता-संग्राम से लेकर देश के स्वतंत्र होने के बाद भी आज तक देश और गणतंत्र को विषय बनाती हुई कविताएँ रचने का सिलसिला जारी है।

अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।

जयशंकर प्रसाद

बड़े राष्ट्र की पहचान यही है कि अपने समाजों में साथ-साथ रहने-पहनने का चाव और स्वीकारने-अस्वीकारने का माद्दा जगाता है।

रघुवीर सहाय

शरीर के महत्त्व को, अपने देश के महत्त्व को समझने के लिए बीमार होना बेहद ज़रूरी बात है।

राजकमल चौधरी

बदसूरती आम हिंदुस्तानी आँख को दिखाई ही नहीं देती।

कृष्ण बलदेव वैद

इस्लाम ने भारतीयता की स्थूलता को एक हज़ार वर्ष में छिन्न-भिन्न किया तो उसे ही सूक्ष्म स्तर पर पहले ईसाइयत ने और बाद में साम्यवादी-दर्शन ने गत पचास वर्षों में संपन्न किया।

श्रीनरेश मेहता

हम हिंदुस्तानी सब कुछ अधूरे अनमने ढंग से क्यों करते हैं—काम, आराम, रियाज़, प्यार, नफ़रत, लड़ाई, दया, खोज, शोध, ऐश, इबाद, सख़ावत, सयासत... सब कुछ।

कृष्ण बलदेव वैद

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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