
मनुष्य के लालच और आत्मघात का ज़हर धरती के केंद्र में काफ़ी जमा हो चुका है।

जानवर इंसानों जितने बुद्धिमान नहीं होते, इसलिए उन्होंने छिपने की कला नहीं सीखी है। लेकिन मनुष्य में और उनमें बुद्धि को छोड़कर बाक़ी सभी चीज़ें समान स्तर की होती हैं। उन्होंने अपनी कुटिल बुद्धि से वितरण की व्यवस्था बनाकर अपने पशुवत कर्मों को छुपाने के लिए सुरक्षित अंधकार पैदा कर लिया है।

मनुष्य अकेला नहीं है, वह समग्र से जुड़ा हुआ है, अनेकों पर उसकी निर्भरता अपरिहार्य है।

मुझसे सीखें, यदि मेरे उपदेशों से नहीं, तो मेरे उदाहरण से सीखें कि ज्ञान की खोज कितनी ख़तरनाक है और वह व्यक्ति जो अपने मूल शहर को ही दुनिया मानता है, वह उस व्यक्ति की तुलना में कितना ख़ुश है जो अपनी शक्ति से बड़ा होने की आकांक्षा रखता है।

मनुष्य की उपस्थिति में रेगिस्तान आभासी हो जाता है।

मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई आदमी वास्तव में किसी किताब का आनंद ले और उसे केवल एक बार पढ़े।

मुझे लगता है कि जीवन के हर आयाम में सत्ता, अनुक्रमों और राज करने की कोशिश में लगे केंद्रों को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए और उनको चुनौती देनी चाहिए। जब तक उनके होने का कोई जायज़ हवाला न दिया जा सके, वे ग़ैरक़ानूनी हैं और उन्हें नष्ट कर देना चाहिए। मनुष्य की आज़ादी की उम्मीद इससे ही बढ़ेगी।

मानव-हृदय की तरह, रेगिस्तान सागर बन जाता है और सागर रेगिस्तान बन जाता है।

मैं एक बहुत ही साधारण इंसान हूँ, मुझे बस किताबें पढ़ना पसंद है।

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दूसरों में रुचि का कारण मनुष्य की स्वयं में रुचि है। यह संसार स्वार्थ से जुड़ा है। यह ठोस वास्तविकता है लेकिन मनुष्य केवल वास्तविकता के सहारे नहीं जी सकता। आकाश के बिना इसका काम नहीं चल सकता। भले ही कोई आकाश को शून्य स्थान कहे…

हाथ को ध्यान से देखो तो तुम्हें दिखेगा कि वह आदमी की सच्ची तस्वीर है, वह मानव-प्रगति की कहानी है, संसार की शक्ति और निर्बलता का माप है।

मनुष्य किसी भी चीज़ से उतना नहीं डरता जितना कि अज्ञात के स्पर्श से।

मनुष्य जितना समझता है, उससे कहीं अधिक जानता है।

मनुष्य की सार्थक उपलब्धियाँ वे हैं जो सामाजिक रूप से उपयोगी हैं।
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हे भगवान! दार्शनिक को सभी व्यक्तियों की आँखों के सामने रखी वस्तुओं को देखने की अंतर्दृष्टि प्रदान कर।

सब कुछ एक धोखा है—न्यूनतम माया की तलाश, सब कुछ एक सामान्य सीमांत में समेटकर रखना या अधिकतम की इच्छा। पहली स्थिति में मनुष्य अच्छाई को धोखा देता है, उसे अपने लिए बहुत आसानी से प्राप्य बनाकर, और शैतान को भी उसके ऊपर युद्ध की छेड़ने की असंभव कोशिश करके। दूसरी स्थिति में, मनुष्य अच्छाई को धोख़ा देता है, सामान्य स्थितियों में भी उसे पाने की इच्छा न रखकर। तीसरी स्थिति में, मनुष्य अच्छाई से अधिकतम दूरी बनाकर उसे धोखा देता है और शैतान को अधिकतम पाने की लालसा में ख़ुद को शक्तिहीन बना लेता है। इसलिए इन तीनों में से दूसरी स्थिति अधिक इच्छित होनी चाहिए क्योंकि अच्छाई तो हमेशा ही धोखा खाती है, लेकिन इस स्थिति में, कम से कम सतही भाषा में ही शैतान के साथ कोई धोखा नहीं होता।

मनुष्य का लक्ष्य विजय, पूर्णता, सुरक्षा और श्रेष्ठता है।

प्यार नहीं मिल पाने की हालत में संभोग से ही मनुष्य को सांत्वना मिलती है।

मैं स्वयं को असफल मनुष्य, असफल कवि, असफल पशु, असफल देवता और असफल ब्रह्मराक्षस मानता हूँ। सफल होना मेरे लिए संभव नहीं है। मेरे लिए केवल संभव है—होना।

प्रतिभा के कारण हम योग्य व्यक्ति की उच्चतम योग्यता को भी भूल जाते हैं।

हे मेरे शरीर, मुझे ऐसा आदमी बनाओ जो हमेशा सवाल करता रहे!

क्या हमें किसी ऐसे व्यक्ति की कल्पना नहीं करना चाहिए, जिसने कभी संगीत नहीं सुना हो, और जो एक दिन अचानक शोपां की कोई अंतर्गुम्फित रचना सुने और यह मान बैठे कि यह एक ऐसी गुप्त भाषा है, जिसके अर्थों को दुनिया उससे छुपाए रखना चाहती है?

पुरुष को मनुष्य के रूप में और स्त्री को स्त्री के रूप में परिभाषित किया जाता है—जब भी वह मनुष्य की तरह व्यवहार करती है, उस पर पुरुष की नक़ल करने का आरोप लगाया जाता है।

बूढ़ा हो जाने का डर इस बात से पैदा हुआ है कि मनुष्य अब वैसा जीवन नहीं जी रहा है, जैसा कि वह चाहता है।

एक बुद्धिमान व्यक्ति मूर्खता भरे सवाल से भी सीख सकता है, जबकि एक मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमानी भरे जवाब से उतना नहीं सीख सकता।

सिर्फ़ सामान्य लोग ही होते हैं, जिन्हें आप बहुत अच्छी तरह से नहीं जानते हैं।

मानव को जो बहुत बड़े-बड़े अंगों वाला बहुत मज़बूत प्राणी नहीं बनाया गया, वह केवल इसलिए कि वह अपनी दुनिया स्वयं संकुचित करने का प्रयत्न करे; जहाँ उसके लिए ठीक हो, दीवार खड़ी कर ले।

नाम पुकारे जाने पर पशु भागे आते हैं, बिल्कुल मनुष्यों की तरह।

लोगों को सब कुछ समझाया जा सकता है, बस एक शर्त पर कि आप वास्तव में चाहते हैं कि वे समझें।

धर्म भटक जाता है, क्योंकि मनुष्य भटक जाता है।

प्रतिभा के कारण हम योग्य व्यक्ति की उच्चतम योग्यता को देख ही नहीं पाते हैं।

सत्य केवल वही व्यक्ति बोल सकता है जो पहले से ही उसका ‘आदी’ हो, न कि कोई ऐसा व्यक्ति जो असत्याचरण करता हो और कदाचित् ही असत्य से सत्य की ओर बढ़ता हो।

वासनात्मक प्रेम मनुष्य को स्वार्गिक प्रेम से वंचित करता है, हालाँकि वह ऐसा अकेले नहीं कर सकता, चूँकि इसके अंदर स्वार्गिक प्रेम के तत्व होते हैं, यह ऐसा कर पाता है।

सौंदर्यानुभूति, मनुष्य की अपने से परे जाने की, व्यक्ति-सत्ता का परिहार कर लेने की, आत्मबद्ध दशा से मुक्त होने की, मूल प्रवृत्ति से संबद्ध है।

इंसान होने का मतलब है—तुच्छ महसूस करना।

मनुष्य होना मेरी नियति थी, और लेखक मैं स्वेच्छा से, अर्जित प्रतिभा और अर्जित संस्कारों से हुआ हूँ।

थोड़ा भी शालीन व्यक्ति अपने आपको बेहद अपूर्ण मानता है, किंतु धार्मिक मनुष्य हो अपने आपको ‘दयनीय’ मानता

कमज़ोर नज़र वाले व्यक्ति को कहीं जाने की राह बताना कठिन होता है; क्योंकि उसे आप यह नहीं कह सकते, ‘‘दस मील दूर स्थित उस चर्च की मीनार को देखो और उसी दिशा में चलते चले जाओ।’’


बदनामी मनुष्य को गंदगी से भर देती है, उसका दम घुटता है, क्योंकि वह अपना बचाव नहीं कर सकता।

एक मनुष्य इस बात से अचंभित था कि वह कितनी आसानी से अमरता की ओर बढ़ रहा है, जबकि वास्तविकता में वह नीचे गिर रहा था।




मानव-दृष्टि में वस्तुओं को प्रेय बनाने की सामर्थ्य है, यद्यपि यह सच ही है कि इसी कारण वस्तुएँ बहुमूल्य भी बन जाती हैं।

मनुष्य अपने भीतर की सभी बुराइयों को मति-भ्रम समझ सकता है।

इसमें कोई शक नहीं कि मनुष्य के अध्ययन की अभी शुरुआत भर हुई है, साथ ही उसका अंत नज़र आने लगा है।

खिन्न व्यक्ति को ही दूसरों पर तरस खाने का अधिकार है।

जिज्ञासावाला व्यक्ति एक बर्बर असभ्य मनुष्य होता है। वह आदिम असभ्य मानव की भाँति हरेक जड़ी और वनस्पति चखकर देखना चाहता है। ज़हरीली वस्तु चखने का ख़तरा वह मोल ले लेता है। वह अपना ही दुश्मन होता है। वह अजीब, विचित्र, गंभीर और हास्यास्पद परिस्थिति में फँस जाता है।

क्योंकि दो शरीर, नग्न और गुथे हुए, समय को पार कर जाते हैं, और वे अजेय हो जाते हैं।