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प्रकृति पर उद्धरण

प्रकृति-चित्रण काव्य

की मूल प्रवृत्तियों में से एक रही है। काव्य में आलंबन, उद्दीपन, उपमान, पृष्ठभूमि, प्रतीक, अलंकार, उपदेश, दूती, बिंब-प्रतिबिंब, मानवीकरण, रहस्य, मानवीय भावनाओं का आरोपण आदि कई प्रकार से प्रकृति-वर्णन सजीव होता रहा है। इस चयन में प्रस्तुत है—प्रकृति विषयक कविताओं का एक विशिष्ट संकलन।

खेल प्रकृति की सबसे सुंदर रचना हैं।

लियोनार्ड कोहेन

प्रकृति सिर्फ़ वह नहीं जो आँखों को नज़र आती है… आत्मा की अंदरूनी तस्वीर में भी यह मौजूद होती है।

एडवर्ड मुंक

कविता के रंग चित्रकला के प्रकृति-रंग नहीं होते।

राजकमल चौधरी

स्त्री को पाकर, स्त्री को समझकर, उसे अपनी बाँहों और आत्मा में महसूस करके ही प्रकृति की गति और प्रकृति की सुंदरता को और प्रकृति के रहस्य को लिया, भोगा और समझा जा सकता है।

राजकमल चौधरी

बहुत से बुद्धिमान लोगों के पास समझ की कमी होती है, बहुत से मूर्खों के पास दयालु स्वभाव होता है, ख़ुशी का अंत अक्सर आँसुओं में होता है, लेकिन मन के अंदर क्या है—यह कभी नहीं बताया जा सकता है।

अमोस ओज़

मानव स्वभाव पानी जैसा है। वह अपने बर्तन के आकार में ढल जाता है।

वॉलेस स्टीवंस

प्यार… प्रकृति की तरह है, लेकिन उल्टा—पहले यह फल देता है, फिर फूलता है, फिर मुरझाने लगता है, फिर यह अपने बिल में बहुत गहराई तक चला जाता है, जहाँ कोई इसे नहीं देखता, जहाँ यह आँखों से ओझल हो जाता है और अंततः लोग अपनी आत्मा के भीतर दबे उस रहस्य के साथ मर जाते हैं।

एडना ओ’ब्रायन

हमें बुरे स्वभाव की व्याख्या हीन भावना की निशानी के रूप में करनी चाहिए।

अल्फ़्रेड एडलर

प्रकृति में हरा रंग एक बात है, साहित्य में हरे का अर्थ अलग होता है।

वर्जीनिया वुल्फ़

तितलियाँ वे फूल ही हैं जो किसी धूप वाले दिन उड़ गए, जब प्रकृति स्वयं को सबसे अधिक आविष्कारशील और उपजाऊ महसूस कर रही थी।

जॉर्ज सैंड

दया और दवा में कोई एहसानमंदी नहीं है। अगर उधार लेना प्राकृतिक नहीं हो तो देने का कोई अर्थ भी है।

गर्ट्रूड स्टाइन

कल्पना प्रकृति पर मनुष्य की हुकूमत है।

वॉलेस स्टीवंस

स्त्री किसी भी अवस्था की क्यों हो, प्रकृति से माता है और पुरुष किसी भी अवस्था का क्यों हो, प्रकृति से बालक है।

लक्ष्मीनारायण मिश्र

…फूल की प्रकृति खिलना है।

एलिस वॉकर
  • संबंधित विषय : फूल

नारी प्रकृति के विधान से नहीं, समाज के विधान से भोग्य है। प्रकृति में और समाज में स्त्री और पुरुष अन्योन्याश्रय हैं।

यशपाल

किसी विषय को अपने से ऊँचा बताने और मानने का अधिकार केवल प्रकृति को ही है, किसी अन्य को नहीं।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

प्रकृति क़तई नैतिक नहीं है।

ओनोरे द बाल्ज़ाक

ज़्यादातर समय, वे बच्चे स्वस्थ और मज़बूत होते हैं, प्रकृति अपनी देखभाल ख़ुद करती है।

डेबोरा फ़ेल्डमैन

मानव-प्रकृति को दवाब से कितनी घृणा है।

प्रेमचंद

चिकित्सा की कला में रोगी को ख़ुश करना शामिल है, जबकि बीमारी को प्रकृति ठीक करती है।

वाल्तेयर
  • संबंधित विषय : कला

भूलना प्राय: प्राकृतिक है, याद रखना प्राय: कृत्रिम।

हुआन रामोन हिमेनेज़

प्रकृति अंतहीन है जिसका केंद्र हर जगह है और जिसकी परिधि कहीं नहीं है।

होर्खे लुई बोर्खेस

'नारायण' का अभिप्राय है, ब्रह्म का वह स्वरूप जो नर-प्रकृति का अनुरंजनकारी हो।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

दुर्गम वनों में आनंद होता है और एकाकी समुद्र तट पर हर्षोन्माद। गहरे समुद्र के तट के जनशून्य स्थान में भी समाज होता है और सागर के गर्जन में संगीत। मैं मानव को कम प्रेम नहीं करता, पर प्रकृति को अधिक प्रेम करता हूँ।

लॉर्ड बायरन

धर्म कोई व्यक्ति नहीं बना सकता, प्रकृति बनाती है धर्म और प्रकृति के कर्म को जो तोड़ता है, वह अनाचारी है, वस्त्र उसके चाहे किसी रंग में रंगे हों।

लक्ष्मीनारायण मिश्र

पृथ्वी पर भारत उत्तम है, उसमें भी मधुपुरी सुंदर है, उसमें वृंदावन श्रेष्ठ है और उसमें भी रासस्थली यमुना का किनारा उत्तम है।

रूप गोस्वामी

ब्राह्मण किसी के राज्य में रहता है और किसी के अन्न से पलता है, स्वराज्य में विचरता है और अमृत होकर जीता है। वह तुम्हारा मिथ्या गर्व है। ब्राह्मण सब कुछ सामर्थ्य रखने पर भी, स्वेच्छा से इन माया-स्तूपों को ठुकरा देता है, प्रकृति के कल्याण के लिए अपने ज्ञान का दान देता है।

जयशंकर प्रसाद

अपने ही सुख-दुख के रंग में रंग कर प्रकृति को देखा तो क्या देखा? मनुष्य ही सब कुछ नहीं है। प्रकृति का अपना रूप भी है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

संपूर्ण प्रकृति में कठोर अनुशासन व्याप्त है। प्रकृति थोड़ी-सी क्रूर है ताकि वह बहुत दयालु हो सके।

एडमंड स्पेंसर

प्राकृतिक सौंदर्य के साथ अपने हृदय को एकाकार करना, मन को संयत करके, प्रकृति की भाषा समझने का प्रयास करना, कष्टसाध्य अवश्य है, परंतु सामान्य रूप में यदि कोई यह कर सके तो उसका हृदय आनंद से ओत-प्रोत हो जाएगा।

सुभाष चंद्र बोस

पुरुष, प्रकृति, बुद्धि, पाँच विषय, दस इंद्रियों, अहंकार, अभिमान और पंच महाभूत इन पच्चीस तत्त्वों का समूह ही 'प्राणी', नाम से कहा जाता है।

वेदव्यास

प्रकृति में विषमता तो स्पष्ट है। नियंत्रण के द्वारा उसमें व्यावहारिक समता का विकास होगा। भारतीय आत्मवाद की मानसिक समता ही उसे स्थायी बना सकेगी। यात्रिंक सभ्यता पुरानी होते ही ढीली होकर बेकार हो जाएगी। उसमें प्राण बनाए रखने के लिए व्यावहारिक समता के ढाँचे या शरीर में, भारतीय आत्मिक साम्य की आवश्यकता कब मानव समाज समझ लेगा, यही विचारने की बात है। मैं मानता हूँ कि पश्चिम एक शरीर तैयार कर रहा है किंतु उसमें प्राण देना पूर्व के अध्यात्मवादियों का काम है। यही पूर्व और पश्चिम का वास्विक संगम होगा।

जयशंकर प्रसाद

कठिन समय, विपत्ति और घोर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छाँट हैं।

गणेश शंकर विद्यार्थी
  • संबंधित विषय : समय

पशुओं को अपने मित्रों की पहचान करना प्रकृति सिखाती है।

विलियम शेक्सपियर

प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, वरन् हर एक को वह कुछ-कुछ देती है और इस प्रकार सभी को मिलाकर वह समस्त उपहार देती है।

लाला हरदयाल

हे नारी! हमें वही मिलता है जो कुछ हम देते हैं और हमारे जीवन में ही प्रकृति वास करती है।

सैम्युअल टेलर कॉलरिज

प्रकृति, आदर्श, जीवन-मूल्य, परंपरा, संस्कार, चमत्कार—इत्यादि से मुझे कोई मोह नहीं है।

राजकमल चौधरी

प्रकृति एक बात कहे और बुद्धिमत्ता दूसरी, ऐसा नहीं हुआ, नहीं-नहीं, कभी नहीं।

एडमंड बर्क

जब प्रकृति को कोई कार्य संपन्न कराना होता है तो उन वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है।

राल्फ़ वाल्डो इमर्सन

भारत में सब कुछ है—प्रचंड गर्मी, प्रबल शीत, अधिक वर्षा, मनोहर शरद् और वसंत।

सुभाष चंद्र बोस

सूरज नहीं चाँद तारे संगीत चित्र भी नहीं कविता से भी सुंदर लगता है मनुष्य।

नवीन सागर

मनुष्य की रचना प्रकृति ने उसके ‘स्व’ के लिए की ही नहीं है।

श्रीनरेश मेहता

प्रकृति कभी-कभी रोने के लिए भी विवश करती है।

लक्ष्मीनारायण मिश्र

कोयल के कूकने और गेट के भीतर अख़बार के गिरने की आवाज़ एक साथ आए तो सबसे पहले क्या—कान या आँख?

सिद्धेश्वर सिंह

यह सापेक्ष समय जब बीतता है तो हमें वैसे ही तराशता चलता है जैसे कि जल अपनी मसृणता में भी, कैसी ही चट्टान क्यों हो, शताब्दियों तक टकराते-टकराते अंततः ढहा कर रख देता है।

श्रीनरेश मेहता
  • संबंधित विषय : समय

नितांत बेबस अथवा निरुपाय के लिए ही प्रकृति का सहायक हाथ पहुँचता है।

किशनचंद 'बेवस'

मैं प्रकृति को कभी नहीं छूता। मैं उसे वैसे ही लेता हूँ जैसे मुझे वह मिली है।

हेनरी मातीस

प्रकृति से मेरा क्या अभिप्राय है, शायद इसे मैं समझा सकूँगा। अगर किसी वस्तु को बिना सोचे-विचारे, केवल उसका मुख देखकर, मेरे मन ने स्वीकार किया है, तो वह प्रकृति है।

सुमित्रानंदन पंत

प्रकृति कभी भी अपने नियमों को नहीं तोड़ती है।

लियोनार्डो दा विंची

किअर्केगार्ड के अनुसार सभी चीजों में पक्षियों की तरह पर्याप्त धैर्य और उड़ान की इच्छा रखता हूँ। स्वेच्छा से आँख मूँद कर पूरे धैर्य के साथ, प्रतिरोध के बीच चमकने का मक़सद लिये किये गये दैनन्दिन के कार्य दरअसल ऐसे विधान हैं, जो हमें नियन्त्रित करने की ईश्वर की आकांक्षा में बाधक नहीं हैं। रात दर रात हम जीवन के अध्यायों को बिना व्यवधान के ढक सकते हैं, बिना उनसे कोई विचार लिये जो ईश्वर की शरण में होते हैं।

रेनर मारिया रिल्के