आदमी जब बिगड़ता है तो स्वभाव से ही कुछ ऐसा है कि जब वह एक चीज़ में बिगड़ता है, तो पीछे सब चीज़ों में ही बिगड़ जाता है।
एक फ़ालतू विचार कोई विचार नहीं होता।
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बंबई के सिनेमा वाले संगीत का सलाद तैयार करने में परम निपुण हैं।
बाहर से हमारे मन में सुंदर जिस मार्ग से आता है, असुंदर भी इसी मार्ग से आता रहता है।
हमें बुरे स्वभाव की व्याख्या हीन भावना की निशानी के रूप में करनी चाहिए।
हम अपने हृदय को साफ़ करें, गंदी चीज़ को पसंद न करें। गंदी चीज़ को पढ़ना छोड़ दें। अगर ऐसा करेंगे तो अख़बार अपना सच्चा धर्म पालन करेंगे।
लोग कहते हैं—दुष्ट के सारे ही काम अपराध होते हैं। दुष्ट कहता है— मैं भला आदमी हो जाता किंतु लोगों के अन्याय ने मुझे दुष्ट बना दिया है।
राजन्! दूसरों की निंदा करना या चुग़ली खाना दुष्टों का स्वभाव ही होता है। श्रेष्ठ पुरुष तो सज्जनों के समीप दूसरों के गुणों का ही वर्णन करते हैं।
नापाक साधन से ईश्वर नहीं पाया जा सकता और बुरी चीज़ को पाने का साधन साफ़ नहीं हो सकता।
जिस तरह दानशीलता मनुष्य के दुर्गुणों को छिपा लेती है, उसी तरह कृपणता उसके सद्गुणों पर पर्दा डाल देती है।
लक्षणरहित (सदोष या दूषित) काव्य से दुष्टपुत्र के समान सर्वत्र निंदा होती है।
अच्छे काम के प्रति आदर और बुरे के प्रति तिरस्कार होना ही चाहिए। भले-बुरे काम करने वालों के प्रति सदा आदर अथवा दया रहनी चाहिए।
यह हमारी प्राचीन परंपरा है, वैसे तो हमारी हर बात प्राचीन परंपरा है, कि लोग बाहर जाते हैं और ज़रा-ज़रा सी बात पर शादी कर बैठते हैं।
किताब लिखना—घटिया किताब तक लिखना नरक है।
हे निशाचर! जैसे विषमिश्रित अन्न का परिणाम तुरंत ही भोगना पड़ता है, उसी प्रकार लोक में किए गए पापकर्मों का फल भी शीघ्र ही मिलता है।
दुःसमय में जब मनुष्य को आशा और निराशा का कोई किनारा नहीं दिखाई देता तब दुर्बल मन डर के मारे आशा की दिशा को ही ख़ूब कस कर पकड़े रहता है।
जो ज़ालिम है उसको यह हक़ नहीं कि दूसरे ज़ालिम को सज़ा दे।
राम और रावण के बीच की भारी लड़ाई में, राम भलाई की ताक़तों के प्रतीक थे और रावण बुराई की ताक़तों का। राम ने रावण पर विजय पाई, और इस विजय से हिंदुस्तान में रामराज्य क़ायम हुआ।
दूसरों को अपमानित करके लोग अपने को सम्मानित कैसे समझ सकते हैं, इस पहेली को मैं आज तक हल नहीं कर सका हूँ।
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कुसंग से बढ़कर पाप संसार में नहीं है और कुसंगी के साथ रहने के कारण बहुत दुःख झेलना पड़ता है।
जब मैं अच्छा करता हूँ तो मुझे अच्छा महसूस होता है। जब ग़लत करता हूँ तो बुरा महसूस होता है—यही मेरा धर्म है।
माशूक़ वह बला है, जिसमें कोई ख़ामी नज़र नहीं आती, जिससे प्यार के बदले प्यार नहीं माँगा जाता, जो हाड़-माँस का होकर भी अशरीरी होता है, जिसकी हर ख़ता माफ़ होती है, हर ज़ुल्म पोशीदा।
साथ निवास करने वाले दुष्टों में जल तथा कमल के समान मित्रता का अभाव ही रहता है। सज्जनों के दूर रहने पर भी कुमुद और चंद्रमा के समान प्रेम होता है।
संतों के द्वारा दिया गया संताप भी भला होता है और दुष्टों के द्वारा दिया गया सम्मान भी बुरा होता है। सूर्य तपता है तो जल की वर्षा भी करता है। परंतु दुष्ट के द्वारा दिया गया भक्ष्य भी मछली का प्राण ले लेता है।
कुमार्गी मनुष्य को सही मार्ग पर ले जाने के लिए, माया-मोह में अंधे हुए मन को शारीरिक रोगों के द्वारा सज़ा मिलती है।
बुरे स्वभाव के कारण प्राप्त क्लेश को कोई नहीं मिटा सकता, जैसे काजल का कलुष नहीं धोया जा सकता।
कोई बुरा आदमी अच्छा कवि नहीं हो सकता।
घर बदसूरत होते हैं—नक़ल की नक़ल।
यदि कोई दुर्बल-चित्त सहज को अपना धर्म कहता है या धर्म को अपनी सुविधा के अनुसार सहज बना लेता है, तो उसकी दुर्गति का अंत नहीं रहता।
बुरा कर्म बुरा है चाहे वह कृत हो, चाहे कारित और चाहे अनुमोदित।
अंधा वही है जो कुटिल कर्म करता है, उसका हृदय तो है, मगर ज्ञान की आँखें नहीं।
बुराई का अस्तित्व है और दु:ख की बात यह है कि अच्छाई कभी उससे आगे नहीं बढ़ पाती।
बुरी बात ही तेजी से बढ़ सकती है। घर बनाना मुश्किल है, तोड़ना सरल है।
वे दुर्व्यवहार, हत्याओं, भ्रष्टाचार, जासूसी, अलगाव, भय को भूल गए थे, डरावनी कहानियाँ मिथक बन गई थीं। हर किसी के पास नौकरी थी और इतना अपराध नहीं था।
सबको पीड़ित करने वाली भगवती भवितव्यता ही प्रायः प्राणी के शुभ और अशुभ का विधान करती है।
ख़राब बर्ताव के द्वारा आपके मूल्य ध्वस्त नहीं होने चाहिए।
रिश्ते में ज़हर घुल रहा है तो वह ज़हर ही रहेगा।
बदमाश को देखकर हमें भी बुराई पर नहीं उतर आना चाहिए।
देशभक्ति दुष्टों की अंतिम शरणस्थली है।
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जो बुराई करता है, वह वहशियाना बात करता है, वह जंगली बन जाता है, मूर्ख बन जाता है।
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पुण्य या पाप केवल कथनमात्र नहीं हैं; मात्र कहने की बातें नहीं हैं, वास्तव में जैसे कर्म तू करेगा वैसे ही संस्कार अपने अंदर अंकुरित करके उसका प्रभाव अपने साथ ले जाएगा। जो कुछ तुम बोओगे, वही फल स्वयं ही खाओगे।
जो मनुष्य अपने चेहरे पर पापों के धब्बे लगवाकर दुनिया से चल देता है, उसे प्रभु के दरबार में बैठने हेतु स्थान नहीं मिलता।
ऐसे दुष्ट बहुत होने चाहिए। हम पर उनका उपकार है। वे हमारे पापों का प्रक्षालन, बिना कोई मूल्य लिए और बिना साबुन के करते हैं। वे मुफ़्त में मज़दूर हैं जो हमारा बोझा ढोते हैं। वे हमें भवसागर से पार कर देते हैं और स्वयं नरक चले जाते हैं।
कड़वी बात बोलने वाले तथा मिथ्या कलंक ढूँढ़ने वाले दुष्ट जन कटुध्वनि करने वाली तथा अंगों को मलिन करने वाली बाँधने की बेड़ियों की भाँति दुःख देते हैं। सज्जन लोग अच्छी वाणी से पद-पद पर मन को वैसे ही प्रसन्न कर देते हैं, जैसे पग-पग पर मधुर ध्वनि करने वाले नूपुर।
दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। वह एक बुराई नहीं कर जाता है तब तक उसकी सो बुराइयाँ फैल जाती हैं। मैं तेरी भलाई चाहता हूँ, और तू भी मेरी बुराई, तो इसका फल यही होगा कि तुझे भलाई प्राप्त नहीं होगी और मुझे बुराई नहीं पहुँचेगी।
दुर्जन विद्वान हो तो भी उसे त्याग देना ही उचित है। क्या मणि से अलंकृत सर्प भयंकर नहीं होता है।
प्रायः दुनिया का हर देश यह विश्वास करता है कि स्रष्टा ने उसे कुछ विशेष गुण देकर भेजा है, कि वही दूसरों की अपेक्षा श्रेष्ठ जाति या समुदाय का है। चाहे दूसरे अच्छे हों या बुरे, लेकिन उनसे कुछ घटिया प्राणी हैं।
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