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नैतिकता पर उद्धरण

जब इंसान भूखा रहता है, जब मरता रहता है, तब संस्कृति और यहाँ तक कि ईश्वर के बारे में बात करना मूर्खता है।

जवाहरलाल नेहरू

कोई भी तहज़ीब जो बुनियादी तौर पर ग़ैर-दुनियावी हो, हज़ारों साल तक अपने को क़ायम नहीं रख सकती।

जवाहरलाल नेहरू

अगर आपके दिल में रोशनी है, तो आपको अपने घर का रास्ता मिल जाएगा।

रूमी

मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आध्यात्मिक चीज़ों और नैतिक मूल्य अंततः—अन्य चीज़ों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। लेकिन एक इंसान का यह कहकर बचना कि अध्यात्म उत्कृष्ट है, उसका सीधा मतलब यह है कि वह भौतिक और वास्तविक चीज़ों में कमतर है—यह अचंभित करता है। वह किसी भी तरीक़े को अपनाता नहीं है। यह अधोगति के कारणों का सामना करने से बचना है।

जवाहरलाल नेहरू

नैतिक गिरावट स्वयं एक लक्षण है, जो अन्य घटना-क्रमों या अन्य मानसिक विकार-दृश्यों का कारण हो सकती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

मेरे देश के महान नेता महात्मा गांधी, जिनकी प्रेरणा और देखरेख में मैं बड़ा हुआ, उन्होंने हमेशा नैतिक मूल्यों पर ज़ोर दिया और हमें आगाह किया कि साध्य के फेर में कभी भी साधन को कमतर किया जाए।

जवाहरलाल नेहरू

भले ही हमारा उद्देश्य सही हो लेकिन अगर हमारे साधन ग़लत हैं, तो वो हमारे उद्देश्य को भ्रष्ट कर देंगे या फिर ग़लत दिशा में मोड़ देंगे। साध्य और साधन आपस में एक-दूसरे से बहुत सघन यौगिक रूप से जुड़े हुए हैं, और उन्हें अलग नहीं किया जा सकता।

जवाहरलाल नेहरू

केवल भारत दुनिया में ऐसा देश है जो अपनी हिंदू नैतिकता क्रमशः खो रहा है, लेकिन जो राज्य-संचालन के लिए ज़रूरी नई नैतिकता नहीं अपना पाया है।

राजेंद्र माथुर

राज्य के दायरे में नागरिकों को नियमित और संचालित करने के लिए भारत के पास कोई समग्र सामाजिक नैतिकता आज है, पहले कभी रही। लेकिन गाँव और जाति और कुनबे के दायरे में, हर आदमी की हर साँस को नियमित करने वाली नैतिकता सदियों से हमारे साथ है—उसे राजा भी मानते रहे और दीवान भी।

राजेंद्र माथुर

ग़ैर-वाजिब तरीक़ों से मिला साध्य, सही हो ही नहीं सकता।

जवाहरलाल नेहरू

अनैतिक का नैतिक के प्रति विद्रोह, नैतिकता की उन्नति और उसके परिष्कर का कारण है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जो मूल्य सत्य है, वो हमेशा सच रहता है और इस बात को हमेशा अपनी निगाह में रखना होता है।

जवाहरलाल नेहरू

ग़लत लक्ष्य वाले व्यक्ति का चुना जाना; ज़्यादा बेहतर है बजाए उस व्यक्ति के, जिसका लक्ष्य भले अच्छा हो लेकिन वो संदिग्ध तरीक़ों से जीतना चाहे।

जवाहरलाल नेहरू

बिना किसी नैतिकता के किसी को कोसते जाना, कितना अर्थहीन है और यह अर्थहीनता उस व्यक्ति के लिए कितनी विनाशकारी हो सकती है, जो केवल उपभोग करने में लगा हो।

विक्टर ई. फ्रैंकल