गांधीवाद पर उद्धरण
गांधीवाद महात्मा गांधी
के आदर्शों, आस्थाओं और जीवन-दर्शन पर आधारित विचारधारा है। इसका प्रभाव युगीन और परवर्ती काव्य पर भी परिलक्षित होता है।

श्री गोपालकृष्ण गोखले का नाम मेरे लिए एक पवित्र नाम है। वह मेरे राजनीतिक गुरु हैं।

गौ-सेवा के बारे में दिल की बात कहूँ तो आप रोने लग जाएँ, और मैं रोने लग जाऊँ... इतना दर्द मेरे दिल में भरा हुआ है।

आत्मविश्वास रावण का सा नहीं होना चाहिए जो समझता था कि मेरी बराबरी का कोई है ही नहीं। आत्मविश्वास होना चाहिए विभीषण जैसा, प्रह्लाद जैसा। उनके जी में यह भाव था कि हम निर्बल हैं, मगर ईश्वर हमारे साथ है और इस कारण हमारी शक्ति अनंत है।
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गांधी मानते हैं कि मनुष्य का लोभ ही उसके नाश का कारण है। लेकिन मार्क्स के अनुसार यह लोभ ही मानव के इतिहास की प्रगति का लक्षण है। मार्क्स की तरह गांधी पूर्वग्रह से पीड़ित नहीं थे।
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हिंदुस्तान का जीवन देहातों के जरिए ही है।

राम ईश्वर का भक्त था, इसलिए बात भी वैसी ही करता था। उसको मैंने भगवान नहीं माना है—भक्त ही माना है।

शांति से ही हिन्दू-मुस्लिम एकता क़ायम हो सकेगी। मैं जानता हूँ कि यह बड़ा कठिन काम है।

ईश्वर जब आपके हृदय में आ जायेगा, तो आप वही करेंगे जो वह करायेगा। इसलिए हमें विचारशील प्राणी रहना चाहिए।

यदि गांधीवाद ग़लत बात के लिए है तो इसे नष्ट हो जाने दो। सत्य और अहिंसा तो कभी नष्ट नहीं होगे। परंतु यदि गांधीवाद मतांधता का दूसरा नाम है, तो यह नष्ट कर देने योग्य ही है।

यदि आपको झगड़ा करके ईश्वर का नाम लेना है; तो वह नाम तो ईश्वरका होगा, पर काम शैतान का होगा।

जो ख़ुदा का यानी ईश्वर का दुश्मन है, वह राक्षस है।

गांधी और मार्क्स, दोनों अपनी-अपनी संस्कृति के विशेष अनुभव के कारण ही सार्वत्रिक सच की स्थापना कर सके।
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सत्य से ही धर्म बढ़ता है और यह बात तो मैंने हिंदू-धर्म से ही सीखी है।

हमारे दिल में ज्वालामुखी दहक रहा हो, तब भी ठंडा रहने में हमारी अहिंसा की परीक्षा है।

शास्त्रों का यानी वेद का निचोड़ इतना ही है कि ईश्वर है और वह एक ही है। कुरान का और बाइबिल का भी यही निचोड़ है।
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क्रोध-भरे दिल से प्रार्थना करने में दिल की स्वच्छता नहीं हो सकती, इसलिए शांति को ही प्रार्थना समझें।

असली भंगी को भीतर की भी सफाई करनी होती है, जो मैं कर रहा हूँ।

जो धर्म ईश्वर का नहीं है वह शैतान का है और वह किसी काम का नहीं हो सकता।

जब नई बातें नहीं कही जातीं, तो हक़ीक़तों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है।
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गांधी जी ने जो परिवर्तन चाहा था; वह व्यक्ति का भीतरी परिवर्तन था और वह समाज का था, क्योंकि भीतर और बाहर में कोई विभेद न करने वाला दर्शन था वह। सामाजिक पीड़ा को भी गांधी जी ने व्यक्ति की आंतरिक वेदना के रूप में देखा।

जो भूमि अमर हिमालय से घिरी हुई है और गंगा की स्वास्थ्य-प्रद धाराओं से सिंचित होती है क्या वह हिंसा से अपना नाश कर लेगी?

हमारे महाभारत में जो बात कही गई है; वह सिर्फ हिंदुओं के काम की ही नहीं है, दुनियाभर के काम की है।
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शांति ही प्रार्थना है।
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मैं सनातनी हिंदू हूँ, इसलिए ईसाई, बौद्ध और मुसलमान होनेका दावा करता हूँ।

मेरा विश्वास है कि अगर मैं अपने यक़ीन पर मजबूती से क़ायम रहा तो मैं सिर्फ हिंदू-धर्म की ही नहीं, इस्लाम की भी सेवा करूंगा।
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मेरी प्रार्थना जगत को दिखाने के लिए नहीं है। मेरी प्रार्थना मन की शांति के लिए है, दिल की सफाई के लिए है।

मेरी दृष्टि से अणु-परमाणु में जो है, वही ब्रह्मांड भर में है—'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे'—इसी सूत्र का मैं माननेवाला हूँ।

मैं यह कहने की हिम्मत करता हूँ कि बदला लेने की भावना छोड़कर अगर सब हिंदू और सिख अपने मुसलमान भाइयों के हाथों दिल में गुस्सा लाये बिना मर भी जाए तो वे सिर्फ हिंदू और सिख मज़हब की ही नहीं, इस्लाम और दुनियाकी भी रक्षा करेंगे।

स्वराज्य-प्राप्ति के लिए अस्पृश्यता को हटाने की बात गांधीजी की मौलिक देन थी।
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यदि आदमी शांति से न रहे, कभी अपने विचारों को भीतर से न देखे, जीवन भर दौड़-दंगल में ही रहे और हर वक्त गरम बना रहे तो वह उस शक्ति को पैदा नहीं कर सकता जिसे शौकत अली साहब ‘ठंडी ताकत’ कहा करते थे।
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'गीता' में आए हुए महान् शब्दों के अर्थ प्रत्येक युग में बदलेंगे और व्यापक बनेंगे। परंतु 'गीता' का मूल-मंत्र कभी नहीं बदलेगा। यह मंत्र जिस रीति से जीवन में साधा जा सके, उस रीति को दृष्टि में रखकर जिज्ञासु 'गीता' के महा-शब्दों का मनचाहा अर्थ कर सकता है।

गांधीजी की वाणी भारतीय विश्वात्मा की वाणी है।
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गांधीवाद ज़रूर गांधी का सरलीकृत रूप है। वैसे तो कोइ भी विचारधारा उस आदमी के विचारों का सलीकरण होती है जिसके नाम के इर्द-गिर्द वह उभरती है, पर गांधीवाद गांधी के मुक़ाबले ज़्यादा ही सरलीकृत है।

जैसे अनेक नाम होने पर भी ईश्वर एक ही है, वैसे ही अनेक नाम होते हुए धर्म एक ही है; क्योंकि सारे धर्म ईश्वर से आए हैं। अगर वे ईश्वर से नहीं आए हैं तो वे निकम्मे हैं।

चरख़ा हिंदू-मुसलमान-ऐक्य की, हमारी अहिंसा की, हमारे नियम-पालन की, हमारी परिश्रमशीलता की, योजना-शक्ति की, हमारी व्यापारिक शक्ति की, हमारी परोपकार-वृत्ति की, निर्धनों के प्रति हमारे प्रेम की और अपने स्त्री-वर्ग की रक्षा करने की हमारी इच्छा की निशानी है।
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अनशन भी राक्षसी हो सकता है।

महीन से महीन खादी भी असमतल होगी ही।

पूजा पैर से हो सकती है, हाथ से हो सकती है और जिह्वा से हो सकती है। पूजा का तरीका कुछ भी हो—पूजा सच्ची होनी चाहिए।
