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निंदा पर कविताएँ

निंदा का संबंध दोषकथन,

जुगुप्सा, कुत्सा से है। कुल्लूक भट्ट ने विद्यमान दोष के अभिधान को ‘परीवाद’ और अविद्यमान दोष के अभिधान को ‘निंदा’ कहा है। प्रस्तुत चयन उन कविताओं से किया गया है, जहाँ निंदा एक प्रमुख संकेत-शब्द या और भाव की तरह इस्तेमाल किया गया है।

शीघ्रपतन

प्रकृति करगेती

अस्मिता

ज़ुबैर सैफ़ी

इतिहास में अभागे

दिनेश कुशवाह

समय

आशीष त्रिपाठी

मेरा गला घोंट दो माँ

निखिल आनंद गिरि

स्‍त्री और आग

नवीन रांगियाल

भव्यता के विरुद्ध

रविशंकर उपाध्याय

तो फिर वे लोग कौन हैं?

गुलज़ार हुसैन

कवि

महेंद्र भल्ला

फिर जो होना था

संजय चतुर्वेदी

अमीरी रेखा

कुमार अम्बुज

उस वक़्त कहाँ थे तुम

नाज़िश अंसारी

कभी-कभी ऐसा भी होता है

पंकज चतुर्वेदी

मौत

अतुल

दुःख से कैसा छल

ज्याेति शोभा

एक अन्य युग

अविनाश मिश्र

जंगल बनाम जंगल

कुमार विकल

गिद्ध कलरव

अणुशक्ति सिंह

बकवास

ज़ुबैर सैफ़ी

नगड़ची की हत्या

रमाशंकर सिंह

ज़िबहख़ाने

अखिलेश श्रीवास्तव

नागरिक पराभव

कुमार अम्बुज

कोरोना काल में

पंकज चतुर्वेदी

सन् 3031

त्रिभुवन

मेट्रो में रोना

अविनाश मिश्र

शहर का नाम

कुमार विकल

भादों की संध्या का जब

कृष्ण मुरारी पहारिया

भरोसा

सारुल बागला

कचरा

निखिल आनंद गिरि

जुमला

रचित

हम गवाही देते हैं

संजय चतुर्वेदी

जनादेश

संजय चतुर्वेदी

लड़कियाँ

अर्पिता राठौर

देशभक्त हे!

आर. चेतनक्रांति

हमारी लाचारी

असद ज़ैदी

हैंगओवर

निखिल आनंद गिरि