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नक़ल पर उद्धरण

जो कला होती है वह सुंदर और सत्य होती है, जो बनावट होती है वह असुंदर और असत्य होती है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

दूसरे कवियों के शब्दप्रयोगों को देखकर; जो काव्यप्रणयन किया जाता है, भला उसमें कहाँ आनंद मिलेगा?

भामह

नक़ली चीज़ असली का कितना भी भान कराए, कहीं-ना-कहीं उसमें ऐसी कमी रह ही जाती है, जिससे उसकी क़िस्म के बारे में पता चल ही जाता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

मैं जब तक जीवित रहूँगा, उनकी नक़ल नहीं करूँगा या उनसे अलग होने के लिए ख़ुद से नफ़रत नहीं करूँगा।

ओरहान पामुक

बच्चे कभी भी अपने बड़ों की बातों को बहुत अच्छी तरह से नहीं सुनते हैं, लेकिन वे उनकी नक़ल ज़रूर करते हैं।

जेम्स बाल्डविन

किसी साहित्य में केवल बाहर की भद्दी नक़ल उसकी अपनी उन्नति या प्रगति नहीं कही जा सकती। बाहर से सामग्री आए, ख़ूब आए, पर वह कूड़ा-करकट के रूप में इकट्ठी की जाए। उसकी कड़ी परीक्षा हो, उस पर व्यापक दृष्टि से विवेचन किया जाए, जिससे हमारे साहित्य के स्वतंत्र और व्यापक विकास में सहायता पहुँचे।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

प्रत्येक देश और समाज के मुहावरे उसकी सभ्यता, संस्कृति और ऐतिहासिक-भौगोलिक, स्थिति की उपज हैं। पर अँग्रेज़ी की नक़ल में भी हमें इसका भी ध्यान नहीं रहता।

श्रीलाल शुक्ल

जिसके शब्द अन्य कवि के शब्द प्रयोगों पर निर्भर हों, अर्थात् जिस रचना में शब्दयोजना पूर्ववर्ती कवियों से उदाहृत हो, ऐसा काव्य सरस होने पर भी विद्वानों को उसी प्रकार आनंदित नहीं करता, जिस प्रकार दूसरों द्वारा धारण करके उतार दी गई सरस माला सहृदयों को आकर्षित नहीं करती।

भामह

हमें पश्चिम के विचार क्यों आदर्श लगें? क्या हम 'संपूर्ण' भारतीय बनकर नहीं लिख सकते हैं। अँग्रेज़ी शिक्षण से प्रभावित होकर क्या हम उनके अनुकरण के सिवाए कुछ बकर सकते हैं? हममें हीनभावना क्यों है?

यू. आर. अनंतमूर्ति

घर बदसूरत होते हैं—नक़ल की नक़ल।

मारियो वार्गास ल्योसा

नक़ली मुस्कान ओढ़ लेना, अपना दर्द बयान करने से ज़्यादा आसान है।

साइमन गिलहम

जहाँ नैसर्गिक स्वाद नहीं होता, वहाँ तीख़े मिर्च-मसाले डालकर इस स्वादहीनता को (यानी खाना और खाने वाले के बीच की संवादहीनता को), छुपाने की कोशिश की जाती है—भले ही वे स्वास्थ्य को चौपट कर दें।

अमृतलाल वेगड़

हमारी सारी बौद्धिक गतिविधियाँ, शब्दकोष से सीखी गई कृत्रिम अँग्रेज़ी के सहारे चलती हैं।

यू. आर. अनंतमूर्ति

कोई भी चीज जो आप करते हैं, उसमें अपने आप से पूछने की आदत बनाएँ–यह नकल है या प्रेरणा?

अशदीन डॉक्टर

एक विचार जो संभवतः किसी और ने अपने जीवन के महीनों शोध और समझने में लगाया, तीन मिनट में कॉपी किया जा सकता है।

अशदीन डॉक्टर

विश्वविद्यालय की प्रवेशिका-परीक्षा में दस-बीस हज़ार छात्र बैठते हैं; लेकिन सबको एक ही प्रश्नपत्र मिलता है—एक ही स्याही से, एक ही जैसे अक्षरों में छपा हुआ। एक ही प्रश्न का एक ही सत्य उत्तर देकर छात्रगण परीक्षा पास करके डिग्री पाते हैं। इसके लिए निकटवर्ती परीक्षार्थी के उत्तर को नक़ल करके भी काम चल सकता है। लेकिन विधाता की परीक्षा का नियम इतना सरल नहीं। प्रत्येक देश के सामने उसने अलग समस्या भेजी है। उस समस्या की सत्य मीमांसा देश को अपने-आप करनी होती है, तभी वह विधाता के विश्वविद्यालय में सम्मान का स्थान प्राप्त कर सकता है। भारत के सामने भी एक विशेष समस्या रखी गई है: जब तक उसकी सत्य मीमांसा नहीं होगी, भारत के दुःख का अंत नहीं होगा। हम चतुराई से युरोप के उत्तर की नक़ल करते हैं—किसी दिन मर्खतावश ज्यों-का-त्यों उतार लिया करते थे, आज बुद्धिमानी से भाषा में कुछ परिवर्तन कर लेते हैं। लेकिन परीक्षक अपनी नीली पेंसिल से बार-बार जो शून्य बनाता है उन सबको जोड़ने से परिणाम शून्य ही निकलता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

ऑनलाइन वे लोग अच्छा कर रहे हैं जो अपना ख़ुद का कॉन्टेंट बना रहे हैं। आज जिस तरह से रील्स हैं, वे बस हमें दूसरों की नकल करना सिखा रही हैं।

अशदीन डॉक्टर

राम ने लौकायतिकों के लिए दुर्बुध—इस विशेषण का प्रयोग किया है। आज की भाषा में इसे छद्म बुद्धिजीवी कह सकते हैं।

राधावल्लभ त्रिपाठी

आज सोशल मीडिया पर, इस नकल के विचार के दो बड़े तरीक़े हैं। पहला है लोगों के ज्ञान को लगभग शब्दशः कॉपी करना और दूसरा उसे अपना बताना।

अशदीन डॉक्टर

नकल तब होती है, जब आप किसी चीज़ का नब्बे प्रतिशत ले लेते हैं और उसे थोड़ा सा बदलते हैं।

अशदीन डॉक्टर