अहं का स्वभाव होता है अपनी ओर खींचना, और आत्मा का स्वभाव होता है बाहर की तरफ़ देना—इसलिए दोनों के जुड़ जाने से एक भयंकर जटिलता की सृष्टि हो जाती है।
सबकी भलाई में हमारी भलाई निहित है।
हम एक-दूसरे का भलाई में मुक़ाबला करें तो हम सब ऊँचे होकर काम कर सकते हैं।
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संबंधित विषय : महात्मा गांधी
ईश्वर मुझे काफ़ी सेहत और विवेक दे जिससे मैं मानव जाति की सेवा कर सकूँ।
दुनिया के जितने धर्म हैं वे सब अच्छे हैं, क्योंकि वे भलाई सिखाते हैं। जो दुश्मनी सिखाते हैं, उनको मैं धर्म नहीं मानता।
टेढ़े रास्तें से सीधी बातको नहीं पहुँचा जा सकता।
जो सुखकर हैं उन्हें प्रणाम करो और जो दु:खकर हैं उन्हें भी प्रणाम करो, ऐसा होने पर ही तुम स्वास्थ्य लाभ करोगे, शक्ति लाभ करोगे—जो शिव हैं, जो शिवकर हैं, उन्हें ही प्रणाम करना होगा।
रामकृष्ण परमहंस ने भिन्न-भिन्न धर्मों की साधना स्वयं करके, सब धर्मों की एकरूपता प्रत्यक्ष कर ली। तुकराम ने अपनी उपासना के सिवा दूसरे किसी की भी उपासना न करते हुए भी, सारी उपासनाओं का सार जान लिया। जो स्वधर्म का निष्ठा से आचरण करेगा, उसे स्वभावतः ही दूसरे धर्मों के लिए आदर रहेगा।
अहिंसा को ठीक रूप में अपनाने में हमारी ही नहीं, संसार की भलाई है।
जो लोग छोटे हैं उनकी दृष्टि केवल इसी बात पर पड़ती है कि कामना के आघात से मनुष्य बार-बार नीचे गिरता है। केवल महापुरुष ही यह बात देख सकते हैं कि सत्य के आकर्षण से मनुष्य पाशविकता से मनुष्यत्व की ओर अग्रसर हो रहा है। इसलिए वही मनुष्य को बार-बार निर्भयता से क्षमा कर सकते हैं, वही मनुष्य के लिए आशा कर सकते हैं, वही मनुष्य को सबसे बड़ा सत्य सुना सकते हैं, वही मनुष्य को बड़े-से-बड़ा अधिकार देने में नहीं हिचकते।
स्वदेशी व्रत केवल स्वदेशाभिमान के विचार में से नही उपजा है, बल्कि धर्म के विचार में से उपजा है।
अच्छे काम के प्रति आदर और बुरे के प्रति तिरस्कार होना ही चाहिए। भले-बुरे काम करने वालों के प्रति सदा आदर अथवा दया रहनी चाहिए।
राम और रावण के बीच की भारी लड़ाई में, राम भलाई की ताक़तों के प्रतीक थे और रावण बुराई की ताक़तों का। राम ने रावण पर विजय पाई, और इस विजय से हिंदुस्तान में रामराज्य क़ायम हुआ।
अच्छा करने वाले के मन में स्वार्थ नहीं रहता। वह जल्दी नहीं करेगा। वह जानता है कि आदमी पर अच्छी बात का असर डालने में बहुत समय लगता है।
सहित शब्द से साहित्य शब्द की उत्पत्ति हुई है। अतः धातुगत अर्थ लेने पर साहित्य शब्द में एक मिलन का भाव दिखाई पड़ता है।
व्यापार तो ऐसा ही किया जाए जिसमें किसी के प्रति अपराध न हो, जिसमें किसी की कौड़ी भी न लेनी पड़े।
मनुष्य-मनुष्य में आत्मीय संबंध स्थापित करना, यही भारत का मुख्य प्रयास चिरकाल से रहा है। दूर के नातेदारों से भी संबंध रखना चाहिए, संतानों के वयस्क होने पर भी उनसे शिथिल नहीं होने चाहिए, गाँव के लोगों के साथ वर्ण या अवस्था का विचार किए बग़ैर, आत्मीयता की रक्षा करनी चाहिए—यही हमारी परंपरा रही है।
जो साधु पुरुष होते हैं उनका अहं नज़र नहीं आता है, उनकी आत्मा को ही हम देखते हैं।
अभिलाषा के बिना, इतने पदार्थ जगत के लिए पैदा होने ही चाहिए—यह समझकर परिश्रम करने का नाम निष्काम कर्म है और वह यज्ञ है।
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संबंधित विषय : महात्मा गांधी
अहिंसा का साधक केवल प्राणियों को उद्वेग पहुँचाने वाली वाणी और कर्म न बोल करके अथवा मन में भी उनके प्रति द्वेषभाव न आने देकर संतोष नहीं मानता, बल्कि जगत में फैले हुए दुःखों को देखने और उनके उपायों का ध्यान धरने का प्रयत्न करता रहेगा, और दूसरों के सुख के लिए स्वयं प्रसन्नता से कष्ट सहेगा।
जब मैं अच्छा करता हूँ तो मुझे अच्छा महसूस होता है। जब ग़लत करता हूँ तो बुरा महसूस होता है—यही मेरा धर्म है।
जो व्यक्ति छोटा है वह विश्व-संसार को असंख्य बाधाओं का राज्य समझता है। बाधाएँ उसकी दृष्टि को अवरुद्ध करती हैं और उसकी आशाओं पर आघात करती हैं, इसीलिए वह सत्य को नहीं जानता, बाधाओं को ही सत्य के रूप में देखता है। लेकिन जो व्यक्ति महान् है, वह बाधाओं से मुक्त होकर सत्य को देख सकता है। तभी महान् लोगों की बातें छोटे व्यक्तियों की बातों के बिल्कुल विपरीत होती हैं।
सुख सिर्फ़ हमारा होता है, और कल्याण नामक वस्तु सारे जगत की होती है।
श्रेष्ठ महापुरुष वही होते हैं जो सारे धर्म, इतिहास और नीति से पृथ्वी के श्रेष्ठ दान को ग्रहण करते हैं।
जनसाधारण का मंगल बहुत-सी बातों के समन्वय से ही होता है।
जिन्होंने मनुष्य को दुर्गम मार्ग पर बुलाया है, उन्हें मनुष्य की श्रद्धा मिली है—क्योंकि उन्होंने स्वयं मनुष्य की श्रद्धा की है। उन्होंने मनुष्य को दीनात्मा कहकर उसकी अवज्ञा नहीं की।
ईसा का श्रेष्ठ संदेश है कि जो विनम्र है; उसी की विजय होती है, लेकिन ईसाई देश कहते हैं कि निष्ठुर धृष्टता द्वारा विजय प्राप्त होती है।
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संबंधित विषय : रवींद्रनाथ ठाकुर
बहुमत को दूसरों को दबाने का हक़ नहीं है। बहुमत के ज़ोर से या तलवार के ज़ोर से मिली हुई ताक़त सच्ची ताक़त नहीं है। दरअसल सचाई ही सच्ची ताक़त है।
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संबंधित विषय : महात्मा गांधीऔर 1 अन्य
भलाई कि निशानी यह है कि हम दुष्टता का बदला दुष्टता से न दें, दुष्टता का बदला हम साधुता से दें।
सबके लिए काम करना, केवल अपने लिए काम करने की अपेक्षा श्रेयस्कर माना जाता है।
अपकार का बदला अपकार नहीं, उपकार ही हो सकता है।
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संबंधित विषय : महात्मा गांधी
सत्य तभी जाना जा सकता है जब जीव गुरु से सच्ची शिक्षा लेकर; उस शिक्षा पर चलते हुए सब जीवों पर दया करता है और ज़रूरतमंदों को कुछ दान देता है।
क्षमा करना अच्छा है। भूल जाना सर्वोत्तम है।
भलाई तो इसी में है कि बुरे काम को बुरा समझना और पीछे उसका बदला देना है—वह भलाई से देना।
यह संसार नीति पर टिका हुआ है।
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संबंधित विषय : महात्मा गांधीऔर 1 अन्य
सच्चा वह इंसान है, जो बुरे का बदला भले से करता है।
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संबंधित विषय : महात्मा गांधी
जो दुःख है वह दुःख तो है ही, उसको कोई बाहर वाला हटाने वाला नहीं है। उसको छोटा करके कहें। दूसरों का जो भला काम है, उसको बढ़ाकर बताएँ और बुरे को छोटा करके बताएँ, तब तो हम दुनिया में काम कर सकते हैं।
हरेक धर्म में जो रत्नकी-सी बात हाथ आवे उसको ले लें और अपने धर्म की अच्छाई को बढ़ाते चलें।
बुराई का अस्तित्व है और दु:ख की बात यह है कि अच्छाई कभी उससे आगे नहीं बढ़ पाती।
भले मनुष्य तीर्थों पर स्नान किए बिना ही भले हैं, और चोर तीर्थों पर स्नान करके भी चोर ही रहते हैं।
ज़िंदगी तो कुल एक पीढ़ी भर की होती है, पर नेक काम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।
यदि कोई आदमी बुरा भी होता है तो उसकी बुराई उसके साथ चली जाती हे, केवल भलाई ही पीछे रहती है।
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संबंधित विषय : महात्मा गांधी
पूर्ण मनुष्य का प्रकाश तो केवल उन्हीं का है जिन्होंने सभी देशों, युगों और लोगों पर अधिकार किया है, जिनकी चेतना राष्ट्र, जाति या देश-काल सीमाओं से खंडित नहीं हुई।
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संबंधित विषय : रवींद्रनाथ ठाकुर
वही नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल आए तो बदी है।