निंदा पर उद्धरण
निंदा का संबंध दोषकथन,
जुगुप्सा, कुत्सा से है। कुल्लूक भट्ट ने विद्यमान दोष के अभिधान को ‘परीवाद’ और अविद्यमान दोष के अभिधान को ‘निंदा’ कहा है। प्रस्तुत चयन उन कविताओं से किया गया है, जहाँ निंदा एक प्रमुख संकेत-शब्द या और भाव की तरह इस्तेमाल किया गया है।

मुझसे पहले की पीढ़ी में जो अक़्लमंद थे, वे गूँगे थे। जो वाचाल थे, वे अक़्लमंद नहीं थे।

प्रशंसा का अधिकांश भाप बनकर उड़ जाने के लिए ही बना होता है।

ख़राब किया जा रहा मनुष्य आज जगह-जगह दिखाई देता है।

इस लज्जित और पराजित युग में कहीं से ले आओ वह दिमाग़ जो ख़ुशामद आदतन नहीं करता।

यदि स्वयं को यह पता न चल सके कि कमज़ोर कड़ी कहाँ है तो प्रसिद्ध होना बहुत आसान हो जाता है।

दोहरी ज़िंदगी की सुविधाओं से मुझे प्रेम नहीं है।