
दिन-रात गर्द के बवंडर उड़ाती हुई जीपों की मार्फ़त इतना तो तय हो चुका है कि हिंदुस्तान, जो अब शहरों ही में बसा था, गाँवों में भी फैलने लगा है।

जिन्होंने सभ्यता को रुटीन के रूप में स्वीकार कर लिया है, उनके भीतर कोई बेचैनी नहीं उठती। वे दिन-भर दफ्तरों में काम करते हैं और रात में क्लबों के मज़े लेकर आनन्द से सो जाते हैं और उन्हें लगता है, वे पूरा जीवन जी रहे हैं।

सर्जक या रचनाकार के लिए ‘नॉनकन्फर्मिस्ट’ होना ज़रूरी है। इसके बिना उसकी सिसृक्षा प्राणवती नहीं हो पाती और नई लीक नहीं खोज पाती।

बंबई के सिनेमा वाले संगीत का सलाद तैयार करने में परम निपुण हैं।

हर नई पीढ़ी अपने पुरखों से वसीयत के रूप में 'शब्द-ज्ञान' का भंडार प्राप्त करती है और अपने नए अनुभवों द्वारा आवश्यकता पड़ने पर, उन परम्परागत शब्दों को नए अर्थों का नया बाना पहनाती रहती है।

रघुवीर सहाय का एक रूप आधुनिक मिज़ाज के प्रतिनिधि का है, दूसरा आधुनिकता के समीक्षक का।

हमारे आधुनिक राष्ट्र भविष्य के दुश्मन को जाने बिना ही युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।

साहित्य की आधुनिक समस्या यह है कि लेखक शैली तो चरित्र की अपनाना चाहते हैं, किन्तु उद्दामता उन्हें व्यक्तित्व की चाहिए।
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आधुनिकता का अर्थ है—मोहभंग न होते हुए बिना भ्रम का जीवन जीना।


स्कूल में हर दौर का नाम होता था। हम जिस दौर में भागे जा रहे हैं, उसे क्या नाम दें—यह सवाल समाजशास्त्रीय दृष्टि से बड़ा महत्व रखता है। सरकारी लोग और आम समाज वैज्ञानिक इसे आधुनिकीकरण का नाम देते हैं।

आधुनिक हिंदी उपन्यास का प्रसंग उठने पर जो सबसे पहली बात ध्यान में आती है वह यह है कि हिंदी उपन्यास के साथ ‘आधुनिक’ का विशेषण अनावश्यक है।

आधुनिक भारत का विकास; घरों के ख़ाली हो जाने की, परिवार के सिकुड़कर सूख जाने की कहानी है।

केशव और बिहारी की नायिका का आकर्षक शरीर, आज नमक और हल्दी से भी सस्ता हो गया है।

भाषा, समाज और परंपरा के जरिये मनुष्य के ज्ञान में विकास होता है; उस नए ज्ञान से भौतिक जगत के नए तत्वों का अनुसंधान होता है। नए तत्वों का संपर्क फिर मनुष्य के मानस में नए ज्ञान का सर्जन करता है।

हृदय-परिवर्तन के लिए रोब की ज़रूरत है, रोब के लिए अँग्रेज़ी की ज़रूरत है।

हमने विलायती तालीम तक देसी परंपरा में पाई है और इसलिए हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृत हैं! हमारे इतना पढ़ लेने पर भी हमारा पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है, बंद कमरे में ऊपर चढ़ जाता है।

व्यक्ति मानव की गरिमा की स्थापना भारतीय इतिहास में पहली बार जिस दृढ़ता के साथ भक्त ने की, यह उसकी आधुनिकता का प्रमाण है।
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इंडिविजुअल ह्यूमन बीइंग्स—जिस पर यूरोप को गर्व है कि उनकी देन है—मैं कहना चाहता हूँ कि भारत में वह भक्ति की देन है। वह अंग्रेजों का तोहफ़ा नहीं है।

आज के सभ्य मानव के लिए सत्य की अपेक्षा; मिथ्या को व्यक्त करने के ख़ातिर ही, भाषा की अधिक आवश्यकता है।

विश्वास के साथ दुविधा और भय रघुवीर सहाय का प्रतिनिधि स्वभाव है, इसीलिए उन्हें आधुनिकता का प्रतिनिधि और समीक्षक दोनों कहना सही है।

बाल साहित्य एक आधुनिक चीज़ है जिसकी प्रेरणा के स्त्रोत लोक साहित्य निधि में पहचाने जा सकते है।

आधुनिकता का प्रभाव बीमारी के रूप में लोगों के मन में घुस गया है। इस बीमारी का पहला दुष्परिणाम यह है कि आदमी जो जीता है, उससे भिन्न रूप दिखाता है।

हिंदी में तो जैसे अब जो कुछ है, स्मार्ट फ़ोन पर है। अख़बारों में शायद ही कभी कोई क़ायदे की विवेचना छपती हो।

आधुनिक और प्रासंगिक बने रहने के लिए ज़रूरी है कि पानी, वायु, मिट्टी जैसे विषयों पर कुछ-कुछ बोलते रहा जाए, पर दबाव बनाने से परहेज किया जाए। यही अच्छे नागरिक का गुण है।

वाद्य-संगीत कविता के अभाव की पराकाष्ठा है तो आधुनिक गद्य-गीत, संगीत के अभाव का परला किनारा है।

आधुनिक विज्ञान ने सभ्यता के देश-काल-विषयक भावों को बहुत परिमार्जित और उपबृंहित किया है।

आधुनिकता के नाम पर फूहड़, ग्राम्य और भदेस की वकालत मैंने कभी नहीं की।

कुलीनता का मार्ग सचमुच में ऊबड़-खाबड़ होता है।

आधुनिकता यदि धरती की धूल से विलग करती हो, आत्मलीन बनाती हो, उसके स्पर्श से यदि आदमी समाज के साथ हँसना-रोना भूल जाता हो तो मुझे नहीं चाहिए आधुनिकता की ऐसी दुम।

ऑर्केस्ट्रा के सभी बाजों में केवल सितार ही सम्मानित होकर निकल पाता है।

एक प्रकार की निःसंगता वह है, जो आधुनिकता के प्रसार के साथ बढ़ती जा रही है।

निश्चय ही आजकल हमारी जीवन-यात्रा को कहीं कोई मशीन बिगाड़ गई है, जिससे हमारा जीवन व्यर्थ और बेढंगे के रूप में लँगड़ाकर चल रहा है।

हम आधुनिक साहित्य की सबसे बड़ी विषयवस्तु थे, कथानक, प्रतीक और अर्थालंकार थे। 'आषाढ़ का एक दिन' हमारी विडम्बना को व्यक्त करने के लिए लिखा गया था।
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आधुनिकतावादियों के उस हठ का इलाज़ नहीं है कि कोई पुरा-व्यवस्था और प्रकृति-उल्लास उन्हें कहीं से स्पर्श नहीं करता।

हमारी जो नई पीढ़ी है, वही हमारी पिछली पीढ़ी तक के लोगों की घूँघट के प्रति जो एक नैतिक आस्था है, उसे अत्यन्त उपहासास्पद मानने लगी है।

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