
जिन्होंने सभ्यता को रुटीन के रूप में स्वीकार कर लिया है, उनके भीतर कोई बेचैनी नहीं उठती। वे दिन-भर दफ्तरों में काम करते हैं और रात में क्लबों के मज़े लेकर आनन्द से सो जाते हैं और उन्हें लगता है, वे पूरा जीवन जी रहे हैं।

सर्जक या रचनाकार के लिए ‘नॉनकन्फर्मिस्ट’ होना ज़रूरी है। इसके बिना उसकी सिसृक्षा प्राणवती नहीं हो पाती और नई लीक नहीं खोज पाती।

हर नई पीढ़ी अपने पुरखों से वसीयत के रूप में 'शब्द-ज्ञान' का भंडार प्राप्त करती है और अपने नए अनुभवों द्वारा आवश्यकता पड़ने पर, उन परम्परागत शब्दों को नए अर्थों का नया बाना पहनाती रहती है।

हमारे आधुनिक राष्ट्र भविष्य के दुश्मन को जाने बिना ही युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।

साहित्य की आधुनिक समस्या यह है कि लेखक शैली तो चरित्र की अपनाना चाहते हैं, किन्तु उद्दामता उन्हें व्यक्तित्व की चाहिए।
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आधुनिकता का अर्थ है—मोहभंग न होते हुए बिना भ्रम का जीवन जीना।


केशव और बिहारी की नायिका का आकर्षक शरीर, आज नमक और हल्दी से भी सस्ता हो गया है।

भाषा, समाज और परंपरा के जरिये मनुष्य के ज्ञान में विकास होता है; उस नए ज्ञान से भौतिक जगत के नए तत्वों का अनुसंधान होता है। नए तत्वों का संपर्क फिर मनुष्य के मानस में नए ज्ञान का सर्जन करता है।

व्यक्ति मानव की गरिमा की स्थापना भारतीय इतिहास में पहली बार जिस दृढ़ता के साथ भक्त ने की, यह उसकी आधुनिकता का प्रमाण है।
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आज के सभ्य मानव के लिए सत्य की अपेक्षा; मिथ्या को व्यक्त करने के ख़ातिर ही, भाषा की अधिक आवश्यकता है।

इंडिविजुअल ह्यूमन बीइंग्स—जिस पर यूरोप को गर्व है कि उनकी देन है—मैं कहना चाहता हूँ कि भारत में वह भक्ति की देन है। वह अंग्रेजों का तोहफ़ा नहीं है।

वाद्य-संगीत कविता के अभाव की पराकाष्ठा है तो आधुनिक गद्य-गीत, संगीत के अभाव का परला किनारा है।

आधुनिकता का प्रभाव बीमारी के रूप में लोगों के मन में घुस गया है। इस बीमारी का पहला दुष्परिणाम यह है कि आदमी जो जीता है, उससे भिन्न रूप दिखाता है।

आधुनिकता के नाम पर फूहड़, ग्राम्य और भदेस की वकालत मैंने कभी नहीं की।

एक प्रकार की निःसंगता वह है, जो आधुनिकता के प्रसार के साथ बढ़ती जा रही है।

आधुनिकता यदि धरती की धूल से विलग करती हो, आत्मलीन बनाती हो, उसके स्पर्श से यदि आदमी समाज के साथ हँसना-रोना भूल जाता हो तो मुझे नहीं चाहिए आधुनिकता की ऐसी दुम।

आधुनिकतावादियों के उस हठ का इलाज़ नहीं है कि कोई पुरा-व्यवस्था और प्रकृति-उल्लास उन्हें कहीं से स्पर्श नहीं करता।

हमारी जो नई पीढ़ी है, वही हमारी पिछली पीढ़ी तक के लोगों की घूँघट के प्रति जो एक नैतिक आस्था है, उसे अत्यन्त उपहासास्पद मानने लगी है।
