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संघर्ष पर उद्धरण

हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।

जयशंकर प्रसाद

बिना आत्मशुद्धि के प्राणिमात्र के साथ एकता का अनुभव नहीं किया जा सकता है और आत्मशुद्धि के अभाव से अहिंसा धर्म का पालन करना भी हर तरह नामुमकिन है।

महात्मा गांधी

अभिव्यक्ति का अभ्यास कलाकार का एक मुख्य कर्त्तव्य है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

सक्षम सुंदर अभिव्यक्ति तो अविरत साधना और श्रम के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

हमारे पूर्वजों ने अधिकारों के लिए संघर्ष किया, आज की पीढ़ी को कर्तव्य के लिए संघर्ष करना है।

सैमुअल स्माइल्स

पक्षी अंडे से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करता है। अंडा ही दुनिया है। जो जन्म लेना चाहता है उसे एक दुनिया को नष्ट करना होगा।

हरमन हेस

हमारा संघर्ष भी भूलने के ख़िलाफ़ स्मृति का संघर्ष है।

बेल हुक्स

किसी ने एक संघर्ष, एक दर्द, एक मौत सही।

हरमन हेस

जो पहले से मन में पूर्ण हो, उस प्रवाह को बह जाने से रोकने के लिए संघर्ष करो।

जैक केरुआक

अपना संघर्ष ख़ुद चुनो।

मार्क मैंसन

किसी किसी तरह की तपस्या का ख़याल; हिंदुस्तानी विचारधारा का एक अंग है और ऐसा ख़याल सिर्फ़ चोटी के विचारकों के यहाँ है, बल्कि साधारण अनपढ़ जनता में फैला हुआ है।

जवाहरलाल नेहरू

भीत तो मज़बूत होना चाहिए, नहीं तो वह सहारा नहीं दे सकती। जो कुछ धारण करता है, जो आकृति देता है, वह कठोर होता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चोड़ाई में ले जाता है। परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही समाज की असली प्रगति है।

रामधारी सिंह दिनकर

हम भाषा से जूझ रहे हैं।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

तुम्हें मुझे माफ़ कर देना चाहिए, क्योंकि मैंने सिर्फ़ तुम्हारे लिए संघर्ष किया था।

एमिली ब्रॉण्टे

हम भाषा के साथ संघर्ष में उलझे हुए हैं।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

भारतीय भाषाओं में जब साहित्यकार के संघर्षशील क्षणों या उसकी गर्दिश के दिनों का प्रसंग उठता है, तो वह प्रायः उसकी ग़रीबी या अभाओं का प्रसंग होता है—अपने परिवेश से टकराने या रचना-प्रक्रिया के तनावों को झेलने का नहीं।

श्रीलाल शुक्ल

किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणी मात्र का धर्म है।

प्रेमचंद

अभावग्रस्त बचपन, मेहनत और चिंताओं से भरा विद्यार्थी-जीवन, बाद में मँझोली हैसियत की एक सरकारी नौकरी—अपने इन अनुभवों की कहानी सुनाना बेकार है क्योंकि इस तरह की कहानियाँ बहुत बासी हैं और बहुत दोहराई जा चुकी हैं।

श्रीलाल शुक्ल

वस्तुतः कला का संघर्ष तत्त्व के संकलन, परिष्कार और विकास का संघर्ष है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

श्रम, सौंदर्य और स्वास्थ्य की नींव है।

अमृतलाल वेगड़

हमारे जीवन की एकमात्र साधना यही है कि हमारी आत्मा का जो स्वभाव है, उसी को हम बाधा मुक्त बना लें।

रवींद्रनाथ टैगोर

अभिव्यक्ति-प्रयत्न एक-दूसरे प्रकार का, एक अन्य स्तर का अंग है कि जिस स्तर में शब्द, मुहावरे, बिंब, स्वर आदि के स्वरूप की तुलना, हृदय में उठते हुए भावों के स्वरूप से करते हुए, प्रतिकूल शब्दों, बिंबों आदि को निकालकर अनुकूल को रखा जाता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

दुःख उठाने वाला प्रायः टूट जाया करता है, परंतु दुःख का साक्षात् करने वाला निश्चय ही आत्मजयी होता है।

श्रीनरेश मेहता
  • संबंधित विषय : दुख

कथाकार यदि सचमुच जीवन का गहरा और व्यापक ज्ञान रखता है, तो वह प्रसंग-स्थिति में बद्ध मनुष्य की संवेदनात्मक प्रतिक्रियाओं को ही महत्त्व नहीं देगा वरन् उस स्थिति से संबंध रखने वाले जो वस्तु-सत्य हैं, उनको बनाने वाले तत्त्वों पर अर्थात् व्यक्ति-स्वभाव की विशेषताओं, वास्तविकता की पेचीदगियों और अब तक चलते आए इन सबके विकास-क्रम पर, इन सब पर अवश्य ही ध्यान देकर, इस प्रसंग-स्थिति के वस्तु-सत्य के सारे ताने-बाने (कलात्मक प्रभावशाली रूप से, भोंड़े ढंग से नहीं) प्रस्तुत करेगा।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अनिश्चय, आशंका, आकर्षण, मोह, सत्य-प्रेरणा और आत्मविश्वास की आकस्मिक हानि—ऐसे दुर्धर भावःप्रसंगों में से गुज़रता हुआ लेखक पाता है कि वह अग्नि-पीड़ा की एक दीर्घ वीथी में झुलसता हुआ आगे बढ़ रहा है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

महिलाओं का दर्द, पीड़ा और असहाय जीवन—मेरे भीतर एक गहरी भावनात्मक प्रतिक्रिया पैदा करता है। मैं व्यापक शोध नहीं करती हूँ ; मेरा दिल ही मेरा अध्ययन क्षेत्र है।

बानू मुश्ताक़

वह लेखक जो रक्त से लिखता है और कहावतें रचता है; यह नहीं चाहेगा कि लोग केवल उसको पढ़ें, बल्कि यह चाहेगा कि लोग उसे कण्ठस्थ करें।

फ़्रेडरिक नीत्शे

संसार में जिन लोगों को अत्यधिक श्रद्धा की दृष्टि से देखा गया है, वे दुःख के अवतार होते हैं। सुख-चैन में जीवन बितानेवाले लक्ष्मी के दास कभी पूजनीय नहीं हुए, और भविष्य में होंगे।

रवींद्रनाथ टैगोर

अपनी व्यक्तिमत्ता के आस-पास टकरानेवाली (मानव-जीवन की) मार्मिक वास्तविकताओं को प्रकट करने के लिए, जिस प्रकार की शैली और शब्द-संपदा चाहिए, उसके लिए संघर्ष करना आवश्यक है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

सामाजिक चेतना सामाजिक संघर्षों में से उपजती है।

गोरख पांडेय

जब तक संपूर्ण मनुष्य को लेकर हम चलेंगे, तब तक उसके किसी एक ही अंश को सर्वप्रधान बनाकर हम संपूर्ण को खंडित कर देंगे। जब तक हम आज के युग के पीड़ित मनुष्य की संपूर्ण आत्मसत्ता का चित्रण नहीं करते, उसके वास्तविक सुख-दु:ख, उसके संघर्षों और आदर्शों का अंकन नहीं करते, उसके अनिवार्य भवितव्य और कर्त्तव्य का मार्ग प्रशस्त नहीं करते, तब तक नई कविता का कार्य अधूरा है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

वाल्मीकि ने यथार्थ की ठोस बंजर ज़मीन पर चलते हुए, उस पर जीवन की महनीय आदर्शों का प्रासाद खड़ा किया है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

महान संघर्षों में पाखंडपूर्ण कार्य भी साथ-साथ होते रहते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इनके प्रति सतर्क रहें।

महात्मा गांधी

सामायिक और स्थानीय कारणों से मनुष्य सीमा के अंदर सत्य को देखता है, इसलिए वह सत्य को छोड़कर सीमा की ही पूजा करने लगता है, देवता से अधिक पंडे को मानता है, राजा को भूल जाता है पर दरोगा को कभी नहीं भूलता।

रवींद्रनाथ टैगोर

जीवन-तथ्यों की वास्तविकता अर्थात् मानव-यथार्थ को दृष्टि से ओझल करके; सिद्धांतों को जब लागू किया जाता है, तब भूल होना स्वाभाविक होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

निराला का संघर्ष, स्थिति-रक्षा का संघर्ष है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अंतर्मम के गहन भाव-दृश्यों में उलझने की क्षमता और फ़ुर्सत, हर एक में नहीं होती।

गजानन माधव मुक्तिबोध

यदि साहित्य-सृजन एक संघर्ष है—अभिव्यक्ति के मार्ग का संघर्ष, तो समीक्षा एक प्रेम-दर्शन है। ऐसा प्रेम-दर्शन जो आवश्यक पड़ने पर अतिशय कठोर होता है, किंतु सामान्यतः उदार और कोमल रहता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जो लेखक तत्त्व के विकास और परिष्कार की चिंता नहीं करता, वस्तुतः वह प्रतिक्रिया के हाथों में खेलता है। यही नहीं, वह यह सोचता है कि उसकी अपनी संवेदना; जो अभिव्यक्ति चाहती है, अभिव्यक्ति की आतुरता-मात्र के कारण बहुत सिगनीफ़िकेंट है, मार्मिक है—उसका औचित्य वह अपनी आतुर उद्विग्नता में खोजता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

इस आधुनिक (रूसी) क्रांति का अध्ययन बहुत रोचक है। जो रूप इसने अब ग्रहण किया है, वह मार्क्सवादी सिद्धांत मतांधताओं को रूस की अनिच्छुक प्रतिभा पर लादने के प्रयत्न के फलस्वरूप है। हिंसा पुनः असफल रहेगी। यदि मैंने परिस्थिति को ठीक समझा है, तो मुझे एक प्रतिक्रांति की आशा है। कार्ल मार्क्स के समाजवाद से अपनी स्वाधीनता के लिए रूस की आत्मा अवशय संघर्ष करेगी।

चितरंजन दास

मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।

श्रीकांत वर्मा

जीवन संघर्ष की अधिकता के फलस्वरूप अंतर्मुखता और भाव-सघनता तो होती ही है, किंतु उसके साथ, शिक्षा, स्वाध्याय और समय के अभाव के कारण, काव्य-सौंदर्य के विकास के प्रति विमुखता भी दृष्टिगोचर होती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

भ्रातृ-संघर्ष निर्मम होता है।

अरस्तु

अगर इनसान पैसे और शोहरत का मोह छोड़ दे तो वह ख़तरनाक हो जाता है, कोई उसे बरदाश्त नहीं कर पाता, सब उससे दूर भागते हैं, या उसे पैसा और शोहरत देकर फिर मोह के जाल में फाँस लेना चाहते हैं।

कृष्ण बलदेव वैद

संघर्षशील साहित्यकार की एक ख़ास तस्वीर बन गई है जिसमें वह कविता या कहानी या उपन्यास नहीं लिखता, वह साहित्य-सेवा या साहित्य-साधना करता है।

श्रीलाल शुक्ल

मैं एक नम्र, किंतु अत्यंत सच्चा सत्यशोधक हूँ।

महात्मा गांधी

वाल्मीकि ने मनुष्य के अंतर्मन के उत्ताप और कामना के असीम ज्वार का दर्शन किया है, पर उन्होंने हृदय की पवित्रता और कोमलता को झुलसने नहीं दिया है।

राधावल्लभ त्रिपाठी

हे देशवासी, तू अपने आप को पहचान। अपने हृदय मस्तिष्क से काम लेकर तू परतंत्रता का दाग़ मिटा दे। तू क्रांति ला, क्रांति ला। तेरी मेहनत की कमाई से दूसरे धनवान बन रहे हैं। तू किन के सामने भटकता है और किन के भय से डरता है। अपने ख़ून-पसीने से तू जिनके लिए नींव बना रहा है, वही लोग तुझे हेय समझते हैं। हे पौरुषहीन! क्रांति ला, क्रांति ला।

अब्दुल अहद 'आज़ाद'