संघर्ष पर उद्धरण

असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।

जयशंकर प्रसाद

हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

सामाजिक चेतना सामाजिक संघर्षों में से उपजती है।

गोरख पांडेय

मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।

श्रीकांत वर्मा

हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे, उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।

जयशंकर प्रसाद

आँच केवल आग में ही नहीं पाई जाती। कभी एकांत मिले तो अपने लिखे हुए के तापमान को जाँचो।

सिद्धेश्वर सिंह
  • संबंधित विषय : आग

जो भी अपनी भूमि पर अँगूठे के बल खड़ा हो जाता है, वट वृक्ष हो जाता है।

श्रीनरेश मेहता

मुक्ति के बिना समानता प्राप्त नहीं की जा सकती और समानता के अभाव में मुक्ति संभव नहीं है।

ऋतुराज

सारी संभावनाएँ स्थापित होने पर ख़त्म हो जाती हैं।

ऋतुराज

किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणी मात्र का धर्म है।

प्रेमचंद

काम करके कुछ उपार्जन करना शर्म की बात नहीं, दूसरों का मुँह ताकना शर्म की बात है।

प्रेमचंद

जो मुझसे नहीं हुआ, वह मेरा संसार नहीं।

श्रीकांत वर्मा

क्या यही सच है कॉमरेड कि विचार और क्रिया में दूरी हमेशा बनी रहती है?

गोरख पांडेय

कोई यथार्थ से जूझकर सत्य की उपलब्धि करता है और कोई स्वप्नों से लड़कर। यथार्थ और स्वप्न दोनों ही मनुष्य की चेतना पर निर्मम आघात करते हैं, और दोनों ही जीवन की अनुभूति को गहन गंभीर बनाते हैं।

सुमित्रानंदन पंत

स्वप्नद्रष्टा या निर्माता वही हो सकता है, जिसकी अंतर्दृष्टि यथार्थ के अंतस्तल को भेदकर उसके पार पहुँच गई हो, जो उसे सत्य समझकर केवल एक परिवर्तनशील अथवा विकासशील स्थिति भर मानता हो।

सुमित्रानंदन पंत
  • संबंधित विषय : सच

चींटियाँ अपने भार से कई गुना अधिक वज़न उठाकर आराम से चल लेती हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि वे चींटियाँ हैं।

सिद्धेश्वर सिंह

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