
हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।

असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।

हमारे पूर्वजों ने अधिकारों के लिए संघर्ष किया, आज की पीढ़ी को कर्तव्य के लिए संघर्ष करना है।


पक्षी अंडे से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करता है। अंडा ही दुनिया है। जो जन्म लेना चाहता है उसे एक दुनिया को नष्ट करना होगा।


जो पहले से मन में पूर्ण हो, उस प्रवाह को बह जाने से रोकने के लिए संघर्ष करो।

अपने और विश्व के बीच के संघर्ष में विश्व का साथ दो।

अपना संघर्ष ख़ुद चुनो।

हम भाषा से जूझ रहे हैं।

हम भाषा के साथ संघर्ष में उलझे हुए हैं।

तुम्हें मुझे माफ़ कर देना चाहिए, क्योंकि मैंने सिर्फ़ तुम्हारे लिए संघर्ष किया था।

किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणी मात्र का धर्म है।

परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चोड़ाई में ले जाता है। परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही समाज की असली प्रगति है।

भारतीय भाषाओं में जब साहित्यकार के संघर्षशील क्षणों या उसकी गर्दिश के दिनों का प्रसंग उठता है, तो वह प्रायः उसकी ग़रीबी या अभाओं का प्रसंग होता है—अपने परिवेश से टकराने या रचना-प्रक्रिया के तनावों को झेलने का नहीं।

अभावग्रस्त बचपन, मेहनत और चिंताओं से भरा विद्यार्थी-जीवन, बाद में मँझोली हैसियत की एक सरकारी नौकरी—अपने इन अनुभवों की कहानी सुनाना बेकार है क्योंकि इस तरह की कहानियाँ बहुत बासी हैं और बहुत दोहराई जा चुकी हैं।

दुःख उठाने वाला प्रायः टूट जाया करता है, परंतु दुःख का साक्षात् करने वाला निश्चय ही आत्मजयी होता है।

महिलाओं का दर्द, पीड़ा और असहाय जीवन—मेरे भीतर एक गहरी भावनात्मक प्रतिक्रिया पैदा करता है। मैं व्यापक शोध नहीं करती हूँ ; मेरा दिल ही मेरा अध्ययन क्षेत्र है।

सामाजिक चेतना सामाजिक संघर्षों में से उपजती है।

महान संघर्षों में पाखंडपूर्ण कार्य भी साथ-साथ होते रहते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इनके प्रति सतर्क रहें।

इस आधुनिक (रूसी) क्रांति का अध्ययन बहुत रोचक है। जो रूप इसने अब ग्रहण किया है, वह मार्क्सवादी सिद्धांत व मतांधताओं को रूस की अनिच्छुक प्रतिभा पर लादने के प्रयत्न के फलस्वरूप है। हिंसा पुनः असफल रहेगी। यदि मैंने परिस्थिति को ठीक समझा है, तो मुझे एक प्रतिक्रांति की आशा है। कार्ल मार्क्स के समाजवाद से अपनी स्वाधीनता के लिए रूस की आत्मा अवशय संघर्ष करेगी।

मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।

अगर इनसान पैसे और शोहरत का मोह छोड़ दे तो वह ख़तरनाक हो जाता है, कोई उसे बरदाश्त नहीं कर पाता, सब उससे दूर भागते हैं, या उसे पैसा और शोहरत देकर फिर मोह के जाल में फाँस लेना चाहते हैं।


हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे, उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।

कोरा किताबी ज्ञान मनुष्य को धोखा भी दे सकता है, किन्तु संघर्षों से निकली हुई शिक्षा कभी भी झूठी नहीं होती।

हम दोपहर में अपने पसीने को व्यय करते हैं और रात्रि में तेल को। हर रात्रि में चिंतन करके थकते हैं और दिन में परिश्रम करके।


कविता जब सामूहिक जीवन व मेहनत से दूर हट जाती है तो वह छंद, नियम, विधान, रीति-नीति और परम्परा आदि की गणित से अनुशासित होने लगती है।

संघर्षशील साहित्यकार की एक ख़ास तस्वीर बन गई है जिसमें वह कविता या कहानी या उपन्यास नहीं लिखता, वह साहित्य-सेवा या साहित्य-साधना करता है।

हे देशवासी, तू अपने आप को पहचान। अपने हृदय व मस्तिष्क से काम लेकर तू परतंत्रता का दाग़ मिटा दे। तू क्रांति ला, क्रांति ला। तेरी मेहनत की कमाई से दूसरे धनवान बन रहे हैं। तू किन के सामने भटकता है और किन के भय से डरता है। अपने ख़ून-पसीने से तू जिनके लिए नींव बना रहा है, वही लोग तुझे हेय समझते हैं। हे पौरुषहीन! क्रांति ला, क्रांति ला।

परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है।

अगर इस दुनिया को ईश्वर का ख़्वाब समझ लिए जाए तो ईश्वर से अपेक्षा कम हो जाए, हमदर्दी ज़्यादा।

जिसके जीवन में संघर्ष नहीं है, तनाव नहीं है, कर्मठता और उत्साह नहीं है—उसका व्यक्तित्व भी नहीं है।


कर्म के कोलाहल से भरे संघर्ष में प्रवेश करने से ही; स्वतंत्रता के भीतर, सच्ची अर्थवत्ता का समावेश होता है।

जो मुझसे नहीं हुआ, वह मेरा संसार नहीं।

तरक़्क़ी मिलने की शुरुआत आराम त्यागने के साथ ही होती है।

प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी कार्य में इसलिए उत्कृष्ट नहीं होते कि वे उसमें परिश्रम करते हैं। अपितु वे उसमें परिश्रम करते हैं क्योंकि वे उसमें उत्कृष्ट होते हैं।

परिश्रम के पश्चात् नींद, तूफ़ानी समुद्र के पश्चात् बंदरगाह, युद्ध के पश्चात् विश्राम और जीवन के पश्चात् मृत्यु अत्यधिक आनंदप्रद होते हैं।

परास्त होने पर भी जीवन तो संघर्ष करता ही रहेगा।

देवता हमें कठोर परिश्रम के मूल्य पर सभी अच्छी वस्तुएँ देते हैं।

व्यक्तित्व का आरम्भ समर का आरम्भ है, जीवन को घेरनेवाली बाधाओं पर आक्रमण का आरम्भ है।

सर्वहारा वर्ग में भी बहुत से लोग निम्न-पूँजीपति वर्ग के विचार रखते हैं, तथा किसान और शहरी निम्न-पूँजीपति वर्ग के लोग भी पिछड़े हुए विचार रखते हैं, ये सभी संघर्ष के दौरान उनके लिए एक बोझ हैं।

आँच केवल आग में ही नहीं पाई जाती। कभी एकांत मिले तो अपने लिखे हुए के तापमान को जाँचो।


आगे का कलाकार मेहनतकश की ओर देखता है।

मेहनत से धरती जो देती है, वह सोना बनता है।

जीवन प्रतिकूल भाग्य के साथ संघर्ष करने में है।

क्या यही सच है कॉमरेड कि विचार और क्रिया में दूरी हमेशा बनी रहती है?
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