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वर्षा पर उद्धरण

ऋतुओं का वर्णन और उनके

अवलंब से प्रसंग-निरूपण काव्य का एक प्रमुख तत्त्व रहा है। इनमें वर्षा अथवा पावस ऋतु की अपनी अद्वितीय उपस्थिति रही है, जब पूरी पृथ्वी सजल हो उठती है। इनका उपयोग बिंबों के रूप में विभिन्न युगीन संदर्भों के वर्णन के लिए भी किया गया है। प्रस्तुत चयन में वर्षा विषयक विशिष्ट कविताओं का संकलन किया गया है।

हवा ने बारिश को उड़ा दिया, उड़ा दिया आकाश को और सारे पत्तों को, और वृक्ष खड़े रहे। मेरे ख़याल से, मैं भी, पतझड़ को लंबे समय से जानता हूँ।

ई. ई. कमिंग्स

कितनी ही बार मैं घर के बारे में सोचते हुए, बारिश में किसी अजनबी छत पर सो चुका हूँ।

विलियम फॉकनर
  • संबंधित विषय : घर

यह बारिश दिवंगत की आत्माओं द्वारा बहाए गए आँसू हैं।

हान कांग

मैं बारिश की याद के साथ, अचानक फिर से धूप वाले रास्ते पर अकेली रह गई हूँ।

अज़र नफ़ीसी

मुझे आश्चर्य है कि चींटियाँ बरसात के दिनों में क्या करती हैं?

हारुकी मुराकामी

मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि वह भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है।

संत तुकाराम

संतों के द्वारा दिया गया संताप भी भला होता है और दुष्टों के द्वारा दिया गया सम्मान भी बुरा होता है। सूर्य तपता है तो जल की वर्षा भी करता है। परंतु दुष्ट के द्वारा दिया गया भक्ष्य भी मछली का प्राण ले लेता है।

दयाराम

संसार का अस्तित्व वर्षा पर आधारित होने के कारण वही संसार की सुधा कहलाने योग्य है।

तिरुवल्लुवर

मुझे वैसे सुनो जैसे बारिश को सुना जाता है, साल गुज़र जाते हैं, बीते हुए पल लौट आते हैं।

ओक्ताविओ पाज़

सब ऋतुओं में वर्षा ही एक ऐसी ऋतु है जिसमें गति है—जो अपना एहसास अपनी गति से कराती है : हवा, उड़ते मेघ, झूमते पेड़, बहता पानी, भागते लोग…

मलयज

बारिश होती है और पत्तियाँ काँपती हैं

रवींद्रनाथ टैगोर