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अमृतलाल वेगड़

1928 - 2018 | जबलपुर, मध्य प्रदेश

समादृत लेखक और चित्रकार। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत।

समादृत लेखक और चित्रकार। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत।

अमृतलाल वेगड़ की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 71

विष्णु पोषण करते हैं इसलिए उनके अवतार राम और कृष्ण की पूजा भी कम नहीं होती।

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कभी-कभी लगता है कि हमारा यह शरीर मानो नदी किनारे का एक गाँव है। ज्यों-ज्यों नदी आगे बढ़ती है, एक के बाद एक गाँव आते जाते हैं। उसी तरह अनेक देहों में से होती हुई जीवन-नदी आगे बढती जाती है। अंत में नदी समुद्र में मिल जाती है, आत्मा परमात्मा में मिल जाती है।

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ख़ुशी के साथ प्रायः दुःख का पुछल्ला लगा रहता है।

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भगवान उधारी रखता ही क्यों है? इस जनम की सज़ा इसी जनम में क्यों नहीं? ज़ुर्म एक जनम में, सज़ा किसी दूसरे जनम में। मानो भगवान हमें ललचा रहा हो—अभी पाप कर लो, सज़ा किसी और जनम में भोग लेना।

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सौंदर्य की उपासना हमें कई बार असुंदरता की देहरी पर ला देती है।

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