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राजेंद्र माथुर

1935 - 1991 | बदनावर, मध्य प्रदेश

समादृत संपादक। 'नई दुनिया' और नव-भारत टाइम्स के प्रधान संपादक रहे।

समादृत संपादक। 'नई दुनिया' और नव-भारत टाइम्स के प्रधान संपादक रहे।

राजेंद्र माथुर की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 4

जैसे उपन्यास का सच संसार के सच से ज़्यादा सच्चा होता है, उसी तरह हमारा पुराण-सत्य, हमारा मिथक-सत्य—आपके इतिहास-सत्य से कहीं ज़्यादा ऊँचा है।

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धर्म के बिना तो हिंदुस्तान का या किसी भी देश का काम चल सकता है; लेकिन एक साझा मिथकावली के बिना, किसी देश का काम नहीं चल सकता।

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नेहरू ने अपने देश को सौंदर्य-प्रतीकों, प्रेरणा-प्रतीकों और स्मृति-प्रतीकों में देखा। इन सबने उन्हें बिजली दी। इस बिजली के बग़ैर कोई हिंदुस्तान में रह कैसे सकता है?

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स्मरण और विस्मरण की एक शैली हमारे पास हज़ारों वर्ष से है और यह मानने का कोई कारण नहीं कि आज बीसवीं सदी में वह हमारे साथ नहीं है। इसलिए आज जो शोधकर्ता गाँव में जाकर भारत के लोकगीतों को भविष्य के लिए लिपिबद्ध अथवा टेपबद्ध करना चाहता है, वह मूलतः एक अभारतीय कर्म कर रहा है। कहने को वह कहेगा कि मैं जड़ों से जुड़ रहा हूँ, इत्यादि, लेकिन जड़ों से जुड़ने की यह अवधारणा ही पश्चिमी है।

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