नफ़रत पर उद्धरण
नफ़रत या घृणा वीभत्स
रस का स्थायी भाव है। इसे चित् की खिन्नता की स्थिति के रूप में चिह्नित किया जाता है। इस चयन में नफ़रत के मनोभाव पर विचार-अवकाश लेती कविताओं का संकलन किया गया है।
हम विचारों के स्तर पर जिससे घृणा करते हैं, भावनाओं के स्तर पर उसी से प्यार करते हैं।
महान विचारकों के लिए दुनिया की जाँच करना, उसे समझाना और नफ़रत करना ज़रूरी हो सकता है। लेकिन मुझे लगता है कि दुनिया से प्यार करना ही सबसे महत्वपूर्ण है।
मैं जब तक जीवित रहूँगा, उनकी नक़ल नहीं करूँगा या उनसे अलग होने के लिए ख़ुद से नफ़रत नहीं करूँगा।
ऐसे व्यक्ति से नफ़रत करना बहुत थका देता है जिससे आप प्रेम करते हैं।
हम अपने हृदय को साफ़ करें, गंदी चीज़ को पसंद न करें। गंदी चीज़ को पढ़ना छोड़ दें। अगर ऐसा करेंगे तो अख़बार अपना सच्चा धर्म पालन करेंगे।
ईश्वर, मैं तुमसे नफ़रत करता हूँ। मैं तुमसे इस तरह नफ़रत करता हूँ, मानो तुम सच में मौजूद हो।
अगर आप किसी व्यक्ति से नफ़रत करते हैं, तो आप उसमें उस चीज़ से नफ़रत करते हैं जो आपके ख़ुद का हिस्सा है। जो हमारे हिस्से का नहीं है वह हमें परेशान नहीं करता।
नफ़रत की वजह कल्पना का न होना है।
जो कमज़ोर होता है वही सदा रोष करता है और द्वेष करता है। हाथी चींटी से द्वेष नहीं करता। चींटी, चींटी से द्वेष करती है।
हर व्यक्ति को आत्मप्रेम होता है इसलिए उसकी पाशविक वृत्ति, अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए दूसरों से झगड़ा करने के लिए प्रेरित करती रहती है।
वे सब, जिन्हें समाज घृणा की दृष्टि से देखता है, अपनी शक्तियों को एकत्र करें तो इन महाप्रभुओं और उच्च वंशाभिमानियों का अभिमान चूर कर सकते हैं।
हमको हमारा धर्म नहीं सिखाता है कि हम किसी से वैर करें।
अहिंसा केवल आचरण का स्थूल नियम नहीं है, बल्कि यह मन की वृत्ति है। जिस वृत्ति में कहीं भी द्वेष की गंध तक नहीं रहती उसका नाम अहिंसा है।
गन्ना चूसना हो तो अपने खेत को छोड़कर बग़ल के खेत से तोड़ता है और दूसरों से कहता है कि देखो, मेरे खेत में कितनी चोरी हो रही है। वह ग़लत नहीं कहता है क्योंकि जिस तरह उसके खेत की बग़ल में किसी दूसरे का खेत है, उसी तरह और के खेत की बग़ल में उसका खेत है और दूसरे की संपत्ति के लिए सभी के मन में सहज प्रेम की भावना है।
कंजूस आदमी के दुश्मन सब होते हैं, दोस्त कोई नहीं होता। हर व्यक्ति को उससे नफ़रत होती है।
तुम झूठ से शायद घृणा करते हो, मैं भी करता हूँ; परंतु जो समाजव्यवस्था झूठ को प्रश्रय देने के लिए ही तैयार की गई हैं, उसे मानकर अगर कोई कल्याण-कार्य करना चाहो, तो तुम्हें झूठ का ही आश्रय लेना पड़ेगा।
प्रेम का अभाव भी एक मात्रा में विद्वेष का ही एक रूप है, क्योंकि प्रेम चेतना का पूर्ण रूप है।
द्वेष से किसमें दोष नहीं आ जाता? प्रेम से किसकी उन्नति नहीं होती? अभिमान से किसका पतन नहीं हो सकता? नम्रता से किसकी उन्नति नहीं हो सकती?
माशूक़ वह बला है, जिसमें कोई ख़ामी नज़र नहीं आती, जिससे प्यार के बदले प्यार नहीं माँगा जाता, जो हाड़-माँस का होकर भी अशरीरी होता है, जिसकी हर ख़ता माफ़ होती है, हर ज़ुल्म पोशीदा।
शिक्षा पकिस्तान में भारत के प्रति संदेह और घृणा फैलाने का साधन बनी रही है।
अति डाह में घना दुःख है, मन, वचन, कर्म—तीनों हो जाते है भ्रष्ट।
जो मनुष्य स्वार्थ-प्रधान व अहंकारी होता है, वह अन्य सब वस्तुओं का हीनतम् मूल्यांकन करता है।
जाति या नाम के आधार पर यदि कोई जीव अपने आप को अच्छा कहलवाए, तो वह अच्छा नहीं बन जाता।
नेशन नामक एक शब्द ने जितने पाप और विभीषिकाएँ अपने आवरण के नीचे दबा रखी हैं, उसे उठा देने पर मनुष्य के लिए मुँह छुपाने की भी जगह नहीं रहेगी।
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प्रेम किसी चीज़ का विपरीत नहीं है।
प्रेम, घृणा या हिंसा का विपरीत नहीं है।
जो व्यक्ति सिर्फ़ अपने को बड़ा बनाना चाहता है, वह और सबको छोटा बना देता है।
ख़तरों से घृणा की जाए तो वे और बड़े हो जाते हैं।
बालकों पर प्रेम की भाँति द्वेष का असर भी अधिक होता है।
स्त्री तुमसे घृणा करेगी, यदि तुम उसकी प्रकृति को समझने का दावा करते हो।
ईर्ष्या प्रेम नहीं है।
किसी भी चीज़ से प्यार या नफ़रत तब तक नहीं किया जा सकता जब तक हम उसे अच्छी तरह से जान या समझ न लें।
प्रेम का दीप मुश्किल से जलता है, ईर्ष्या की आग आसानी से सुलगती है।
हर सामान्य आदमी आधिपत्य में रहने से घृणा करता है।
ईर्ष्या एक मानवीय गुण है लेकिन जब यह घृणा में बदल जाती है तब बात अलग है। ऐसे भी लोग हैं जो मुझे साहित्यिक सरदर्द मानते हैं लेकिन मैं उन्हें बच्चों के रूप में देखता हूँ जिन्हें निश्चय ही अपने आध्यात्मिक पिता के ख़िलाफ़ विद्रोह करना चाहिए। उन्हें मेरी हत्या करने का अधिकार है लेकिन उन्हें मेरी हत्या एक ऊँचे स्तर पर करनी चाहिए एक पाठ में।
अपराधी ग़लत दिशा में निर्देशित मानव-ऊर्जा की अधिकता का मामला है।
प्रेम सर्वथा भिन्न चीज़ है—एक ऐसी चीज़ जिसमें कोई ईर्ष्या, कोई निर्भरता तथा कोई मिल्कियत नहीं होती?
किसी से नफ़रत करना—मेरे बस का नहीं हैं। मेरे पास इसके लिए वक़्त ही नहीं है।
अमेरिका बिना किसी शंका के सबसे बड़ा तमाशा है। यह बर्बर, निर्मोही, घृणा से भरा और निर्मम हो सकता है पर यह अत्यंत चतुर भी है। एक सेल्समैन के तौर पर इसका ज़वाब नहीं है और इसकी सबसे बड़ी बिक्री की चीज़ इसका आत्म प्रेम है। यह विजेता है।
मैं टेलीविजन से घृणा करता हूँ। मैं इससे उतनी ही घृणा करता हूँ जितनी मूँगफलियों से। परंतु मैं मूँगफलियाँ खाना बंद नहीं कर सकता।
किसी को किसी भी चीज़ से प्यार या नफ़रत करने का कोई अधिकार नहीं है। यदि किसी ने उसकी प्रकृति का गहन अध्ययन नहीं किया है।
नफ़रत! शक! डर! इन्हीं तीन डोंगियों पर हम नदी पार कर रहे हैं। यही तीन शब्द बोए और काटे जा रहे हैं। यही शब्द धूल बनकर माँओं की छातियों से बच्चों के हलक़ में उतर रहे हैं। दिलों के बंद किवाड़ों की दराज़ों में यही तीन शब्द झाँक रहे हैं। आवारा रूहों की तरह ये तीन शब्द आँगनों पर मँडरा रहे हैं। चमगादड़ों की तरह पर फड़फड़ा रहे हैं और रात के सन्नाटे में उल्लुओं की तरह बोल रहे हैं। काली बिल्ली की तरह रास्ता काट रहे हैं। कुटनियों की तरह लगाई बुझाई कर रहे हैं और गुंडों की तरह ख़्वाबों की कुँआरियों को छेड़ रहे हैं और भरे रास्तों से उन्हें उठाए लिए जा रहे हैं। तीन शब्द नफ़रत, शक, डर। तीन राक्षस।