आँसू पर उद्धरण
मानवीय मनोभाव के एक
प्रकट चिह्न के रूप में आँसू हमेशा से काव्य के विषय-वस्तु रहे हैं और वृहत रूप से इनके बहाने से कवियों ने विविध दृश्य और संवाद रचे हैं।
 
            बहुत से बुद्धिमान लोगों के पास समझ की कमी होती है, बहुत से मूर्खों के पास दयालु स्वभाव होता है, ख़ुशी का अंत अक्सर आँसुओं में होता है, लेकिन मन के अंदर क्या है—यह कभी नहीं बताया जा सकता है।
 
             
            विफलता को लेकर ही इस जीवन-संगीत की मैंने रचना की है। दोनों आँखों से आँसू की बूंदें टपकती हैं। इस विशाल विश्व में केवल नयनाश्रुओं से ही मेरा सागर-तट भर गया।
 
            काम का अंदाज़ा यह है कि इस मुल्क में ऐसे कितने लोग हैं—जिनकी आँखों से आँसू बहते हैं, उनमें से कितने आँसू हमने पोंछे, कितने आँसू हमने कम किए। वह अंदाज़ा है इस मुल्क की तरक़्क़ी का, न कि इमारतें जो हम बनाएँ, या कोई शानदार बात जो हम करें।
 
            वह लोक कितना नीरस और भोंडा होता होगा जहाँ विरह वेदना के आँसू निकलते ही नहीं और प्रिय-वियोग की कल्पना से जहाँ हृदय में ऐसी टीस पैदा ही नहीं होती, जिसे शब्दों में व्यक्त न किया जा सके।
 
            हे प्रभु! कब ऐसा होगा कि आपका नाम लेने में मेरे मुख पर अश्रुधारा बहने लगे, वाणी गद्गद होकर रुँध जाए और सारा शरीर पुलकित होकर रोमांचित हो जाए?
 
            प्रियजनों में दृढ़ हुए प्रेम को छोड़ना कठिन है। बार-बार उसका स्मरण करने से दुःख नया-सा हो जाता है। इस दशा में आँसू बहाना ही एकमात्र उपाय है। इससे प्रिय जन के प्रेम से उऋण होकर मन प्रसन्न होता है।
 
            धरती के आँसू ही उसकी मुस्कानों को खिलाते हैं।
 
            आँसू भी समय-असमय की बात जानते हैं।
 
             
            धन्यता आँसुओं की पुत्री है और सत्य पीड़ा का पुत्र।
 
            स्मृतियों का प्रतिफल आँसू है
 
            आँसू में जीवन तरंगित होता रहता है।
 
            जो औरों के लिए रोते हैं, उनके आँसू भी हीरों की चमक को हरा देते हैं।
 
            यादों को भी पानी की ज़रूरत होती है—आँसुओं के पानी की।
 
            वह लोक कितना नीरस और भोंडा होता होगा जहाँ विरह-वेदना के आँसू निकलते ही नहीं और प्रिय-वियोग की कल्पना से जहाँ ह्रदय में ऐसी टीस पैदा ही नहीं होती, जिसे शब्दों में व्यक्त न किया जा सके।
 
            कड़वाहट का गोला जब गले में पिघलता है तो आँखों में आँसुओं की चुभन शुरू हो जाती है।
 
            कोई भी व्यक्ति आपके आँसुओं के लायक नहीं है और जो इसके लायक होगा, वह आपको रुलाएगा नहीं।
 
            क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे?
 
            आँसुओं की सीमा तक जीओ।
 
             
            कोई यह आँसू आज माँग ले जाता!
 
            आँसू में जीवन तरंगित होता रहता है।
