नेता पर उद्धरण
भारतीय राजनीति और लोकतंत्र
की दशा-दिशा से संवाद को हिंदी कविता ने किसी कर्तव्य की तरह अपने ऊपर हावी रखा है और इस क्रम में इसके प्रतिनिधि के रूप में नेता या राजनेता से प्रश्नरत बनी रही है। प्रस्तुत चयन में ऐसी ही कविताओं का है।

नेता? नेता कौन है? मनुष्य? एक मनुष्य सब विषयों की पूर्णता पा सकता है? 'न"। इसीलिए नेता मनुष्य नहीं। सभी विषयों की संकलित ज्ञान-राशि का नाम नेता है।

थोड़ा भाषण देना आ जाने से, और अख़बारों मे लिखना सीख जाने से ही नेता बन जाने की नौजवानों मे कल्पना हो तो वह ग़लत है। सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ना चाहिए

जो आदमी सीधा नेता बन जाता है, वह किसी-न-किसी दिन लुढ़क जाता है।

यह रोज़ का क़िस्सा है। मंत्री महोदय अपनी गणना में यह भूल गए हैं कि उनकी अपनी मीयाद बँधी है।

हर नेता अन्ततः उबाऊ हो जाता है।

नेता हो जाना बड़ा अच्छा धंधा है।

राजा का कर्त्तव्य यह है कि कवि-समाज का आयोजन करे।

सभी नेताओं को पहले कार्यकर्ता होना चाहिए। जो कार्यकर्ता नहीं बन सकता, वह नेता भी नहीं हो सकता।